चंदा -मामा
कल देर रात चाँद बादलो में छिपा रहा ****
हमने पकड़कर खिंचा---तो बैचारा टूट गया ****
आधा हमारे हाथ आया---आधा छुट गया ****
हमने भी उसी से अपने दिल के सारे अरमान पूरे किए ****
पहले तो गुस्सा दिखाया ! फिर देर से आने का सबब पूछा ?
बैचारा हमारा डिमडोल देखकर पहले तो डर गया ****
फिर, हाथ जोड़कर पीछे पड़ गया ****
"मैडम --कहाँ -कहाँ दौड़ लगाऊँ---
किस -किस की प्यास बुझाऊँ---
एक दिन की छुट्टी पर ---
कब तक डियूटी बजाऊँ---
सदियों से दौड़ रहा हूँ ---
सालो से अत्याचार झेल रहा हूँ---.
अब, तो मुझे मुआफ करो ?
कोई दुसरे चंदा-मामा को 'अपाइंट' करो---
कब तक मुझे दौडाओगे----
कुछ तो तरस खाओ ----
जल्दी करो दूसरी 'वेट' कर रही हैं ---
वहां न पहुंचा तो कयामत आ जाएगी --
यह सारी नारी जाति मेरे पीछे पड़ जाएगी --"
हमने भी उसका ज्यादा ' टाईम ' खराब नहीं किया ****
इसलिए, उसको देखा ! उसको पूजा !! फिर बिदा किया **********
10 टिप्पणियां:
:):) नारी जाति चंदा को कब से मामा कहने लगी :):)
वैसे बात तो सही है सबको चाँद ही क्यूँ चाहिए होता है :)
बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
:-)
अनु
beautiful
वाह जी क्या बात है :))))
सुंदर लेखन |
चंदा मामा ....
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
जल्दी करो दूसरी 'वेट' कर रही हैं ---
वहां न पहुंचा तो कयामत आ जाएगी --
यह सारी नारी जाति मेरे पीछे पड़ जाएगी --"
wah re mama :)
बहुत खूब
कल की डिमांड देखते हुए फिर याद आ गई शायद
आपने बहुत अच्छा लिखा है। अगर चांद भी पढ़ता तो आपको शुक्रिया अदा करता।
एक टिप्पणी भेजें