" रद्दी कि टोकरी "
जिंदगी एक रद्दी कि टोकरी है …
जिंदगी एक रद्दी कि टोकरी है …
कुछ अरमान फैंक दो... !
कुछ सपने फ़ैंक दो …!
कुछ आंसू फैंक दो …!
कुछ यांदे फैंक दो … !
कभी बचपन गुजर जाता है रोटियां सेकते हुए .....
कभी जवानी चली जाती है सपने देखते हुए ....
फिर बुढ़ापा ही रह जाता है दस्तक देता हुआ.....
न ख़त्म होने वाला सिलसिला ……
जहाँ न सपने रहते है ?
न अरमान ?
न उत्साह ?
न ख्याल ?
चार दिवारी में क़ैद हो जाते है ,
झुलस जाते है ।
फ़ना हो जाते है ।
वो सपने जो जागती आँखों से देखे थे कभी मैने
अपने छोटे से घर में तुम्हारी बांहे के धेरे में बेसुध,
मन मयूर सा नाचने को बेताब,
पैरो में धुंधरू बाँध ,
मतवाली चाल ,
पिया के गीत गाने को बेकरार ---।
क्या तुम होते तो मेरे साथ नाच पाते ?
वो खूबसूरत शमा !
चारो और महक !
शहनाई कि मधुर ध्वनि ---
फूलो को अपनी अंजुमन में समेटे मैं तुम्हारे धर आती --
डोली में सवार ??????
उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ् फ्फ्फ़
फिर सपने देखने लगी
हा हा हा हा हा हा
फिर असहाय अपने टूटे -फूटे धर में अस्तित्वहीन पड़ी हूँ ---
पर होठो पर एक विजेता मुस्कान लिए हुए
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : उर्जा के वैकल्पिक स्रोत : कितने कारगर
नई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-11-2013) "गंगे" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1424” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सुन्दर रचना.
वाह .... बहुत बढिया
स्पष्ट बात कही... संवेदनशील भावों के साथ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..........
khubsurat behtreen post...
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