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बुधवार, 1 जून 2016

जयपुर की सैर == भाग 3 (Jaipur ki sair --bhag 3)



जयपुर की सैर == भाग 3 



15 अप्रैल 2016 


तारीख 13 को  हम बॉम्बे से 3 सहेलियां निकली थी जयपुर जाने को  'सम्पर्क क्रांति ट्रेन ' से और वो  रात कयामत की थी। ... 

अब आगे -----



चाय ....चाय...चा... य...
गरमा - गरम चाय ....
मसालेदार चाय..
अभी नही तो कभी नहीं ...
चाय..गर्म गर्म चाय ...

इस मीठी आवाज से नींद खुली ,देखा तो हमारी गाडी जयपुर स्टेशन पर खड़ी है....
बाप रे !!!!
हम सब जयपुर पहुँच गए और हमको खबर भी नहीं उफ्फ्फ्फ्फ़....
सब घोड़े बेचकर सो रहे थे और पूरा कूपा खाली था...
ख़ाली तो कोटा से ही था सिर्फ हम ही तीनों दिख रहे थे ।कहाँ परसों नर मुंडो का समुन्दर और कहाँ आज खाली रेगिस्थान ...

कल रात को जब टी टी टिकिट चेक कर के चला गया था गाड़ी चलने को थी की अचानक जोर से कुछ गिरने की आवाज़ आई ,हमारी सीट गेट के पास ही थी मैंने जाकर देखा तो 3 छोटे - छोटे बेग किसी ने बाहर से फेंके थे  गाड़ी धीमी गति से चल दी थी  और अभी प्लेटफार्म पर ही थी .. मैंने देखा, कोई दिखा नहीं अचानक चलती गाड़ी में 2 लड़के और एक लड़की चढ़े , लड़की के मुंह से उफ़ निकला और लड़के अपना सामान उठाने लगे उनमें से एक बोला --" देखा, मैंने बोला था ना गाड़ी मिल जायेगी अपना तो लक ही जोरदार है कभी मेरी गाड़ी छुटी नहीं --" और वो गे गे कर के हँसने लगा....  लड़की बड़बड़ा रही थी ...मुझे लगा अभी थप्पड़ मार देगी लेकिन वो सिर्फ बुरा - सा मुंह बनाकर उसको गालियां देती हुई  अन्दर आ गई.... 

वो तीनों हमारे ही कूपे में आये और हमसे ऊपर वाली सीट पर चढ़ गए ...वो लोग कही एग्जाम देने जा रहे थे ।
फिर उनकी  बातें चटर- पटर होती रही और धीरे धीरे मेरी आँखों में नींद खटर् - खटर्  होने लगी 
...
सुबह उठी तो देखा  वो लोग भी दिखाई नहीं दे रहे थे ,शायद रास्ते  में कही उतर गए थे, अपना सामान देखा तो वो ज्यो का त्यों पडा हुआ था।

मैंने इन दोनों को झिझोड़कर उठाया ,दोनों बेफिक्र सो रही थी  दोनों हड़बड़ा कर उठी और हम तीनो फटाफट नो जयपुर स्टेशन पर उतर गए , जयपुर हमारी सोच से भी ज्यादा ठंडा निकला वैसे इस टाईम सुबह के 4.30 बजे थे और जनरली ये टाईम हर शहर ठंडा ही होता है।

खेर, हम अपना माल मत्था उठाकर सीढ़ियों की तरफ चल दिए ।
पर ये क्या ? 
यहाँ भी इलेक्ट्रॉनिक ऐलिविटर उफ़ !!! अब मैँ क्या करूँ ...

मुझे बहुत चक्कर आते है इन सीढ़ियों में, मैंने आसपास देखा कही और कोई साधारण सीढियाँ नहीं थी अब क्या करुँ ?
अल्ज़िरा और मीना मेरा भी सामान लेकर ऊपर चली गई थी और मैं बेवकूफ की तरह सीढिया देखे जा रही थी लोग आ रहे थे और फटाफट जा रहे थे, कुछ जयपुर की मारवारणे सर ढ़के आई और अपना धाधरा संभालकर फटाफट सीढिया चढ़ गई ...  मुझे बहुत गुस्सा आया ..... आखिर मुम्बईकर कैसे पीछे रह सकता है .... जोश आ गया चक्कर वक्कर भूल सीढियाँ चढ़ने ही वाली थी की उधर से मीना वापस आती हुई दिखी अब तो इज्जत की बात हो गई थी लेकिन उसने कुछ सुना नहीं और  मेरा हाथ पकड़कर धकेलते हुए सीढियाँ चढ़ गई ... लो जी मैँ तो अरामनाल चंगी तरह से सीढियाँ चढ़ गई ...

आगे जाकर क्या देखते है की  राईट साईड पर एक लिफ्ट भी लगी हुई है जो आराम से ऊपर से निचे और निचे से ऊपर आ रही थी और मैँ बेवकूफों की तरह से सबका मुंह देख रही थी फिर हम तीनो जो ठहाका मारकर हंसे की आसपास के लोग देखने लगे ।
इस तरह हमारा जयपुर का शुभारम्भ हुआ ....

 शेष अगले अंक में 







6 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

bahut hi sundar masst sair ho rahi hai darshan g

aabhar

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

अरे वाह राकेश जी, बहुत दिनों बाद आपके दर्शन हुए धन्यवाद

प्रकाशवाणी ने कहा…

रोचक लिखती हो बुआ

रमता जोगी ने कहा…

क्या बुआ...आपने तो एकता कपूर को भी मात दे दी। जल्दी-जल्दी लिखो, प्लीज्।

Shashi Kumar chaddha ने कहा…

बुआ जी पहली बार आपका बिलॉग पढ़ा है,
आप तो कमाल का लिखती हो ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सच में कमाल का लिखती हो। :)