मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

पहाड़ो का शहर ...









पहाडों पर दूर तक जमी बर्फ----
सनसनाती हुई हवाऐ----
हड्डियों को कंपकपाती हुई ठंड----
पेंड़ो से गिरते पत्ते----
 घाटियों में गूंजती आवाजें ---.
और कल -कल बहती नदी का शोर ----

तेरी याद दिलाने के लिए काफी था ----!
जब तेरी तस्वीर उठाकर देखी तो---
ओंस की कुछ बूंदे पड़ी थी---- 
गिला -गिला अजीब -सा नज़ारा था ?
जैसे अभी रोकर उठी हो ???
मेरी उन खोई हुई आँखों में ..
एक पल को उदासी तैर गई---!


ऐसी वीरान ! ठहरी हुई जिन्दगी तो मैनें कभी नहीं चाही थी ----?
फिर क्यों चला आया मैं यहाँ सबकुछ छोड़कर ---
पहाड़ों पर मेरा दम निकलता हैं, ऐसी तो बात नहीं-----?
पर यहाँ का सन्नाटा--- !
अकेलापन ----!
तीर की तरह चलती ठंडी हवाएं ---- !
मेरे कलेजे को चीरती हैं ----!






मैं उदास अपने हाथो को जोड़े होटल की बालकनी में खड़ा हूँ---
           दूर ~~क्षितिज में हिमालय की चोटियों पे बर्फ चमक रही हैं---
मानो किसी के सर पर चांदी का ताज जड़ा हो----!


और मैं खोज रहा हूँ अपनी गुजरी हुई जिन्दगी ---
"जहाँ सब मेरे अपने थे "
जहाँ खुशियाँ थी ? खिलखिलाहटे थी ? दोस्त थे ?
-----और तुम थी ?

क्यों आ गया मैं इस अजनबी शहर में----?
इस पत्थरों के शहर में ,
जहाँ चारों और पहाड़ ही पहाड़ हैं----
आवाज देता हूँ तो पत्थरों का सीना चीर कर लौट आती हैं ----


हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
तेरी खनकती हुई हंसी !!!
जैसे मेरे कानों में शहद टपक रहा हो ----?
अभी बोल उठेगी ---"कहाँ हो, मेरी जान"
"यही हूँ, तुम्हारे पास " मैं कह उठूँगा !


अचानक मेरा चेहरा विदूषक हो उठा---
लगा ही नहीं की वो यहाँ नहीं हैं----?


मैं सहज ही उसकी मुस्कान में बंधा हुआ !
उसके बांहों के धेरे में सिमटा हुआ !!
   उसके चेहरे की कशिश में लिपटा हुआ !!!
मदहोश -सा बहा जा रहा हूँ ----
काश, तू होती ????
इन हसीं वादियों में ----
हम हाथों में हाथ डाले घूमते- फिरते----
तुम मुझ पर बर्फ के गोले मारती---
मैं तुम्हें  पकड़ता ..भागता ..चूमता----
तुम हंसती हुई भाग खड़ी होती और --
मैं तुम्हें प्यार से निहारता रहता---
इन ठंडी रातों में---
हम मालरोड पर घूमते----
ठंडी - ठंडी आइसक्रीम खाते ---
कभी ठंड से बचने के लिए---
सड़कों पर जलते अलावो पर हाथ सकते ----??? 
 चर---र्र --र्र  ---र्र-- र्र---र --


अचानक ! किसी गाडी की जोरदार आवाज से तन्द्रा भंग हुई 
मैनें चौंककर देखा ---'तू नहीं थी' ?
"अरे कहाँ गई अभी तो यहीं थी "?
मैं पागलों की तरह चारों और ढूंढता रहा --
"पर वो जा चुकी थी "


और मैं अकेला सुनसान सड़क पर खड़ा  था ---
उसका इन्तजार करता हुआ ---
मुझे पता हैं --"वो नहीं आएगी"
पराई जो हो गई हैं न वो ?  





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