पहाडों पर दूर तक जमी बर्फ----
सनसनाती हुई हवाऐ----
हड्डियों को कंपकपाती हुई ठंड----
हड्डियों को कंपकपाती हुई ठंड----
पेंड़ो से गिरते पत्ते----
घाटियों में गूंजती आवाजें ---.
और कल -कल बहती नदी का शोर ----
तेरी याद दिलाने के लिए काफी था ----!
जब तेरी तस्वीर उठाकर देखी तो---
ओंस की कुछ बूंदे पड़ी थी----
गिला -गिला अजीब -सा नज़ारा था ?
जैसे अभी रोकर उठी हो ???
मेरी उन खोई हुई आँखों में ..
एक पल को उदासी तैर गई---!
ऐसी वीरान ! ठहरी हुई जिन्दगी तो मैनें कभी नहीं चाही थी ----?
फिर क्यों चला आया मैं यहाँ सबकुछ छोड़कर ---
पहाड़ों पर मेरा दम निकलता हैं, ऐसी तो बात नहीं-----?
पर यहाँ का सन्नाटा--- !
अकेलापन ----!
तीर की तरह चलती ठंडी हवाएं ---- !
मेरे कलेजे को चीरती हैं ----!
मैं उदास अपने हाथो को जोड़े होटल की बालकनी में खड़ा हूँ---
दूर ~~क्षितिज में हिमालय की चोटियों पे बर्फ चमक रही हैं---
मानो किसी के सर पर चांदी का ताज जड़ा हो----!
और मैं खोज रहा हूँ अपनी गुजरी हुई जिन्दगी ---
"जहाँ सब मेरे अपने थे "
जहाँ खुशियाँ थी ? खिलखिलाहटे थी ? दोस्त थे ?
-----और तुम थी ?
क्यों आ गया मैं इस अजनबी शहर में----?
इस पत्थरों के शहर में ,
जहाँ चारों और पहाड़ ही पहाड़ हैं----
आवाज देता हूँ तो पत्थरों का सीना चीर कर लौट आती हैं ----
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
तेरी खनकती हुई हंसी !!!
जैसे मेरे कानों में शहद टपक रहा हो ----?
अभी बोल उठेगी ---"कहाँ हो, मेरी जान"
"यही हूँ, तुम्हारे पास " मैं कह उठूँगा !
अचानक मेरा चेहरा विदूषक हो उठा---
लगा ही नहीं की वो यहाँ नहीं हैं----?
मैं सहज ही उसकी मुस्कान में बंधा हुआ !
उसके बांहों के धेरे में सिमटा हुआ !!
उसके चेहरे की कशिश में लिपटा हुआ !!!
मदहोश -सा बहा जा रहा हूँ ----
काश, तू होती ????
इन हसीं वादियों में ----
हम हाथों में हाथ डाले घूमते- फिरते----
तुम मुझ पर बर्फ के गोले मारती---
मैं तुम्हें पकड़ता ..भागता ..चूमता----
तुम हंसती हुई भाग खड़ी होती और --
मैं तुम्हें प्यार से निहारता रहता---
इन ठंडी रातों में---
हम मालरोड पर घूमते----
ठंडी - ठंडी आइसक्रीम खाते ---
कभी ठंड से बचने के लिए---
सड़कों पर जलते अलावो पर हाथ सकते ----???
चर---र्र --र्र ---र्र-- र्र---र --
अचानक ! किसी गाडी की जोरदार आवाज से तन्द्रा भंग हुई
मैनें चौंककर देखा ---'तू नहीं थी' ?
"अरे कहाँ गई अभी तो यहीं थी "?
मैं पागलों की तरह चारों और ढूंढता रहा --
"पर वो जा चुकी थी "
और मैं अकेला सुनसान सड़क पर खड़ा था ---
उसका इन्तजार करता हुआ ---
मुझे पता हैं --"वो नहीं आएगी"
पराई जो हो गई हैं न वो ?
गिला -गिला अजीब -सा नज़ारा था ?
जैसे अभी रोकर उठी हो ???
मेरी उन खोई हुई आँखों में ..
एक पल को उदासी तैर गई---!
ऐसी वीरान ! ठहरी हुई जिन्दगी तो मैनें कभी नहीं चाही थी ----?
फिर क्यों चला आया मैं यहाँ सबकुछ छोड़कर ---
पहाड़ों पर मेरा दम निकलता हैं, ऐसी तो बात नहीं-----?
पर यहाँ का सन्नाटा--- !
अकेलापन ----!
तीर की तरह चलती ठंडी हवाएं ---- !
मेरे कलेजे को चीरती हैं ----!
मैं उदास अपने हाथो को जोड़े होटल की बालकनी में खड़ा हूँ---
दूर ~~क्षितिज में हिमालय की चोटियों पे बर्फ चमक रही हैं---
मानो किसी के सर पर चांदी का ताज जड़ा हो----!
और मैं खोज रहा हूँ अपनी गुजरी हुई जिन्दगी ---
"जहाँ सब मेरे अपने थे "
जहाँ खुशियाँ थी ? खिलखिलाहटे थी ? दोस्त थे ?
-----और तुम थी ?
इस पत्थरों के शहर में ,
जहाँ चारों और पहाड़ ही पहाड़ हैं----
आवाज देता हूँ तो पत्थरों का सीना चीर कर लौट आती हैं ----
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
तेरी खनकती हुई हंसी !!!
जैसे मेरे कानों में शहद टपक रहा हो ----?
अभी बोल उठेगी ---"कहाँ हो, मेरी जान"
"यही हूँ, तुम्हारे पास " मैं कह उठूँगा !
अचानक मेरा चेहरा विदूषक हो उठा---
लगा ही नहीं की वो यहाँ नहीं हैं----?
मैं सहज ही उसकी मुस्कान में बंधा हुआ !
उसके बांहों के धेरे में सिमटा हुआ !!
उसके चेहरे की कशिश में लिपटा हुआ !!!
मदहोश -सा बहा जा रहा हूँ ----
काश, तू होती ????
इन हसीं वादियों में ----
हम हाथों में हाथ डाले घूमते- फिरते----
तुम मुझ पर बर्फ के गोले मारती---
मैं तुम्हें पकड़ता ..भागता ..चूमता----
तुम हंसती हुई भाग खड़ी होती और --
मैं तुम्हें प्यार से निहारता रहता---
इन ठंडी रातों में---
हम मालरोड पर घूमते----
ठंडी - ठंडी आइसक्रीम खाते ---
कभी ठंड से बचने के लिए---
सड़कों पर जलते अलावो पर हाथ सकते ----???
चर---र्र --र्र ---र्र-- र्र---र --
अचानक ! किसी गाडी की जोरदार आवाज से तन्द्रा भंग हुई
मैनें चौंककर देखा ---'तू नहीं थी' ?
"अरे कहाँ गई अभी तो यहीं थी "?
मैं पागलों की तरह चारों और ढूंढता रहा --
"पर वो जा चुकी थी "
और मैं अकेला सुनसान सड़क पर खड़ा था ---
उसका इन्तजार करता हुआ ---
मुझे पता हैं --"वो नहीं आएगी"
पराई जो हो गई हैं न वो ?
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