"अपने फ़साने को मेरी आँखों में बसने दो !
न जाने किस पल ये शमा गुल हो जाए !"
बर्फ की मानिंद चुप -सी थी मैं ----क्या कहूँ ?
कोई कोलाहल नहीं ?
एक सर्द -सी सिहरन भोगकर,
समझती थी की "जिन्दा हूँ मैं " ?
कैसे ????
उसका अहम मुझे बार -बार ठोकर मारता रहा --
और मैं ! एक छोटे पिल्लै की तरह --
बार -बार उसके कदमो से लिपटती रही --
नाहक अहंकार हैं उसे ?
क्यों इतना गरूर हैं उसे ?
क्या कोई इतना अहंकारी भी हो सकता हैं ?
किस बात का धमंड हैं उसे ???
सोचकर दंग रह जाती हूँ मैं ---
कई बार चाहकर भी उसे कह नहीं पाती हूँ ?
अपने बुने जाल में फंसकर रह गई हूँ ?
दर्द के सैलाब में बहे जा रही हूँ --
मज़बूरी की जंजीरों ने जैसे सारी कायनात को जकड़ रखा हैं --
और मैं ,,,,
अनंत जल-राशी के भंवर में फंसती जा रही हूँ ?
आगे तो सिर्फ भटकाव हैं ?
मौत हैं ..?
समझती हूँ --
मौत हैं ..?
समझती हूँ --
पर, चाहकर भी खुद को इस जाल से छुड़ा नहीं पाती हूँ
ख्वाबों को देखना मेरी आदत ही नहीं मज़बूरी भी हैं
खवाबों में जीने वाली एक मासूम लड़की --
जब कोई चुराता हैं उन सपने को
तो जो तडप होती हैं उसे क्या तुम सहज ले सकते हो ?
तो जो तडप होती हैं उसे क्या तुम सहज ले सकते हो ?
यकीनन नहीं ,,,,,,
सोचती हूँ -----
क्या मैं कोई अभिशप्त यक्षिणी हूँ ?
जो बरसो से तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ ?
या अकेलेपन का वीरान जंगल हूँ --?
जहाँ देवनार के भयानक वृक्ष मुझे घूर रहे हैं !
क्या ठंडा और सिहरन देने वाला कोई शगूफा हूँ ?
जो फूटने को बैताब हैं !
या दावानल हूँ जलता हुआ ?
जो बहने को बेकरार हैं ?
क्यों अपना अतीत और वर्तमान ढ़ो रही हूँ ?
क्यों अतीत की परछाईया पीछे पड़ी हैं ?
चाहकर भी छुटकार नहीं ?
असमय का खलल !
निकटता और दुरी का एक समीकरण ---
जो कभी सही हो जाता हैं ?
और कभी गलत हो जाता हैं ?
सोचती हूँ तो चेहरा विदूषक हो जाता हैं ?
लाल -पीली लपटें निकलने लगती हैं ?
और शरीर जैसे शव -दाह हो जाता हैं ?
मृत- प्रायः !!!!
मेरा दुःख मेरा हैं ,मेरा सुख मेरा हैं !
अब इसमें किसी को भी आने की इजाजत नहीं हैं ?
न तुम्हारा अहंकार !
न तुम्हारा तिरस्कार !
8 टिप्पणियां:
ख्वाबों को देखना मेरी आदत ही नहीं मज़बूरी भी हैं खवाबों में जीने वाली एक मासूम लड़की -- जब कोई चुराता हैं उन सपने को
तो जो तडप होती हैं उसे क्या तुम सहज ले सकते हो ? यकीनन नहीं ,,,,,, सोचती हूँ -
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
.........सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना......!!!
दिल को छू ले ने वाली अति सुन्दर रचना.....
धन्यवाद....
Bahut umda.sunder rachna....
Bahut umda.sunder rachna....
बहुत सुन्दर रचना...
मन को छूते भाव..
सादर
अनु
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
"अपने फ़साने को मेरी आँखों में बसने दो !
न जाने किस पल ये शमा गुल हो जाए !" bahut sundar .
बहुत सुंदर ! जितनी सार्थक रचना उतनी ही कलात्मक ! शुभकामनायें !
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/
एक टिप्पणी भेजें