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मंगलवार, 3 नवंबर 2020

कर्नाटक डायरी# 5

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर - तमिलनाडु-यात्रा
#भाग=5
#ऊटी भाग= 2
#16 मार्च 2018

15 मार्च को हम मैसूर से ऊटी पहुंच गए ।कल हमने ऊटी लेक की यात्रा की ।
अब आगे----
रात को ऊटी में भयंकर ठंडी थी, उस पर बारिश ने गजब ढाह रखा था..ठंड इतनी तगड़ी थी कि पूछो मत 😊वैसे भी हम मुम्बईयों को ठंडी जरा ज्यादा ही लगती हैं😂😂😂
सुबह ऊटी का मौसम सुहाना हो गया था बारिश रुक गई थी और सूरज महाराज अपने सातों घोड़ों पर सवार शान से निकल गए थे। धूप खिलखिलाकर रही थी, जबकि हवा में अभी भी ठंडक थी। 
हम सब गरम पानी से नहाकर जब बाबूजी बनकर निकलने लगे तो थकान का नामोनिशान नही था।
पड़ोस की होटल से चाय मंगाकर सबने बिस्कुट ओर चाय का हल्का फुल्का नाश्ता किया और अपने अपने स्वेटर पहनकर बाहर आ गए।

ये कॉटेज ऊपर पहाड़ी पर थी, यहां से घाटी का दृश्य खूबसूरत दिख रहा था, नीचे घाटी में धुंध छाई हुई थी जिसे सूरज महाराज की किरणें साफ करने में लगी हुई थी.. बहुत ही अच्छा लग रहा था ऐसा लग रहा था कि यही बैठी इनको निहारती रहू।
लेकिन जब पीछे से किसी ने पुकारा तो ध्यान आया कि मैं यहां अकेली नही हूँ😊
कॉटेज के बाहर छोटा सा साफ सुधरा बगीचा था,जिसमें तरह -तरह के फूल खिले थे हमने यहां ढ़ेर सारे फोटू खिंचे फिर हम ऊपर से कार द्वारा छोटी पहाड़ी से नीचे उतर आये।

नीचे एक रेस्तरां में जाकर सबने अपनी अपनी पसन्द का नाश्ता किया,मैंने अपनी फ़ेवरेट ईडली मंगवाई ,लेकिन ये क्या सांभर में इतनी मिर्च! उफ़्फ़फ़!!!#@
मेरी आँखों मे आंसू आ गए और सारा मूढ़ खराब हो गया क्योकि तमिलनाडु का सांभर बहुत तीखा होता हैं, जबकि हमारे बॉम्बे में सांभर थोड़ा खट्टा मीठा होता हैं यानी कि दुनिया का सबसे बेस्ट सांभर बॉम्बे में मिलता हैं😂😂😂
भूख अभी भी लग रही थी तो कुछ और खाने के लिए जब मैंने नजर घुमाई तो देखा कि कुछ लोग पीली-पीली कोई चीज खा रहे हैं। तब मैंने वेटर से पूछा की "ये क्या हैं?" तो उसका जवाब था ये #हलवा  हैं। 
मैंने तुरंत एक प्लेट हलवा मंगवाया । क्योंकि हलवा मेरे साथ सभी का फ़ेवरेट था। ओर वाकई में हलवा बहुत टेस्टी था।😊

 मैं अक्सर जब भी बाहर जाती हूँ और खाने बैठती हूं तो सरसरी नजर सबकी प्लेटों में डाल लेती हूं (भुक्कड़ कहीं की)😂😂😂 अरे, उसी से तो पता चलता है कि यहां के स्थानीय लोग क्या खा रहे हैं ?😊🎂ओर मैं वही चीज आर्डर करती हूं। इससे यह होता हैं कि मुझे उस प्रदेश का खाना खाने को मिल जाता हैं। और एक अलग जायके का पता चल जाता हैं।👍

ख़ेर, नाश्ते से निपटकर हम बाहर निकले और ऊटी के फ़ेमस बॉटनिकल गार्डन की तरफ चल दिये।

#बोटेनिकल गार्डन:--
बोटेनिकल गार्डन बहुत ही खूबसूरत हैं यहां की हरियाली देखते ही बनती हैं यहां काफी पर्यटकों की भीड़ थी यहाँ लगे पेड़-पौधे बेहद खूबसूरत हैं
50 एकड़ के क्षेत्र में फैले इस हरे-भरे बगीचे को 1847 में ट्वीडेल के मार्क्विस ने एक पहाड़ी की ढलान पर बनाया था।यहां फूलों के पेड़ों की कई खूबसूरत प्रजातियाँ  हैं इस बगीचे में एक जीवाश्म का पेड़ है जो माना जाता है कि 20 मिलियन साल पुराना है। यहां कुछ टोडा झोपड़ियों भी थी जिसमें टोडास, नीलगिरी के मूल निवासी रहते हैं। यहां आयोजित होने वाले सालाना ग्रीष्मोत्सव में फ्लावर शो एक प्रमुख आकर्षण है।
गार्डन में पर पर्सन 25 रु इंट्री फीस देकर हम गार्डन के अंदर चल पड़े।

गार्डन सीढ़ीदार बना हुआ था आगे पुरानी तोपें रक्खी थी,सेल्फी पॉइंट भी बने थे,ओर पौधों को खूबसूरती से तराशा हुआ था ,ढेर सारे फूल खुशबू बखेर रहे थे। हम धीरे धीरे सीढ़िया चढ़ते हुए काफी ऊपर पहुंच गए, लेकिन मैंने पूरा ऊपर तक गार्डन नही देखा।फिर भी जो देखा वो बहुत ही खूबसूरत था।यहां कुछ गरम मसाले की दुकानें भी थी जिनमें से मैंने कुछ गरम मसाले खरीदे।
नीचे उतरकर हमने बगीचे में ही एक रेस्टोरेन्ट में जाकर खाना खाया।

ऊटी में कई तरह की चॉकलेट बनती हैं ओर चॉकलेट की बहुत फैक्ट्रियां हैं सारे मालरोड पर चॉकलेट, गरम मसाले ओर ऊटी चाय की बहुत सी दुकानें हैं ।मैंने भी कुछ चॉकलेट के पैकेट खरीदे । कुछ गिफ्ट कर दूँगी ओर कुछ अपने लिए रख लुंगी😊

बॉटनिकल गार्डन से हम सीधे रोज गार्डन गए लेकिन सड़क की मरम्मत के कारण रास्ता बंद कर रखा था। इसलिए हम रोज गार्डन न जा सके। 

रोज गार्डन:-- यहां गुलाब के पौधों की 20000 से ज़्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं ओर ये गार्डन विश्व मे 15 वें स्थान पर हैं इसे वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ रोज सोसाइटीज के द्वारा प्रतिष्ठित गार्डन ऑफ एक्सीलेंस अवार्ड मिल चुका है।
रोज गार्डन न देख पाने के कारण थोड़ी नर्वस थी पर कोई बात नही फिर कभी😊

रोज गार्डन कल पर छोड़कर हम  वापस सीधे अपने कॉटेज पर आ गये, ये सोचकर कि कुछ आराम करेंगे फिर शाम को मालरोड पर घूमने जाएंगे।
लेकिन वो शाम फिर न आई क्योकि शाम को जोरदार बारिश ने हमारे सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। और ठंडक बढ़ने के कारण हम कहीं भी नही जा सके।रूम में ही खाना मंगवाकर खाया और tv देखते हुए गप्पे मारते हुए कब सो गए पता ही नही चला।
बारिश काफी रात तक होती रही।
आज सुबह हमको ऊटी से 30 Km दूर कुन्नूर के लिए निकलना था।यहां की नीलगिरी माउंटेन रेल्वे की खिलौना ट्रेन का सफर अपने आपमें जोरदार था, इस ट्रेन की रिजर्वेशन यदि ऑन लाइन करवा ली जाए तो घूमने में आसानी रहती हैं। हमने ऑनलाइन रिजर्वेशन देखा तो गाड़ी एकदम फूल थी इसलिए हमने कुन्नूर जाना केंसिल कर दिया क्योकि रह -रह कर हो रही बारिश में जाने से कोई फायदा भी नही था। बारिश ने सारा मूढ़ खराब कर दिया और अब हम सब खिन्न मन से वापसी की तैयारी में जुट गए।

इसके अलावा ऊटी में घुमने के स्थान:--
डोबबेट्टा चोटी:--यह ऊटी का सबसे ऊँचा स्थान है जहाँ से आप नीलगिरी पहाड़ियों के मनोरम दृश्य देख सकते हैं। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 2623 मीटर है और ऊटी से इसकी दूरी केवल 10 km हैं। यहां एक टेलीस्कोप भी लगा है जिससे आप चोटी के आसपास के दृश्य देख सकते हैं।

कलहट्टी झरने:--
ऊटी से सिर्फ 13 किमी की दूरी पर ये झरने स्थित हैं। ये झरने पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। ये झरने नदियों और धाराओं के माध्यम से बनते हैं जो 36 मीटर नीचे एक स्थान पर गिरते हैं। कलहट्टी झरने, कलहट्टी घाटों का एक हिस्सा हैं। यह क्षेत्र अपने वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है जिसमें पैंथर, भैंस, बाइसन और सांभर शामिल हैं।

ब्रिटिश ज़माने के चर्च:-- 
ऊटी में कई ऐतिहासिक चर्च हैं। सेंट स्टीफन यहां का सबसे पुराना चर्च हैं।  इसको गोथिक स्थापत्य शैली में सन् 1829 में बनवाया गया था और इसमें लकड़ी की बीम श्रीरंगापटनम में टीपू सुल्तान के महल की है।
सुबह उठकर तैयार हो हम वापस मैसूर जा रहे थे। आज मौसम बहुत सुहावना था बारिश का नामोनिशान नहीं था।
ऊटी आने के लिए जून से अक्टूम्बर तक का टाइम एकदम बढिया है ।वरना हमारी तरह बारिश कब मजा खराब कर देगी कुछ कह नही सकते👏😘
क्रमशः...












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