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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

कर्नाटक डायरी #4


#कर्नाटक-डायरी
#मैसूर - तमिलनाडु-यात्रा
#भाग=4
#ऊटी भाग= 1
#15 मार्च 2018

10 मार्च को मैसूर पहुंचकर हमने कल मैसूर पैलेस देखा आज शुक्रवार था तो 1 दिन की छुट्टी बेटी और दामाद ने ली और सण्डे शटरडे मिलाकर 3 दिन के लिए आज सुबह नाश्ता कर के हम दामाद की कार से तमिलनाडु राज्य के हिल स्टेशन ऊटी की यात्रा पर निकल पड़े।

अब आगे...
मैसूर से  ऊटी का करीब 125 km का रास्ता हैं जो कि सड़क मार्ग Nh 766 से हैं जिसमें 4-5 घण्टे लग जाते है। टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क बांदीपुर से जब गाड़ी निकली तो सबसे पहले हाथी महाराज के दर्शन हुए, हिरन तो इतने थे कि पूछो मत।लेकिन हम उतरे नही ओर बांदीपुर निकलकर आराम से 33 बेंड पार करके ऊटी पहुंच गए। 

 ऊटी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर बसा यह शहर मुख्य रूप से एक पर्वतीय स्थल (हिल स्टेशन) के रूप में जाना जाता है। कोयम्बटूर यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है जो 88 km दूर है..सड़क के द्वारा यह तमिलनाडु और कर्नाटक के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है । इस पर्वत श्रृंखला पर शिंमला की तरह ट्रेन द्वारा भी आ सकते हैं जो कि कुन्नूर से चलती हैं इस खिलौना ट्रेन  का सफर रोचक,अद्भुत ओर आखों को सुकून देने वाला होता हैं ।

पहाड़ों की रानी ऊटी उधगमंडलम 
यानी ऊटी शहर का नया नाम है जो तमिल भाषा में  है। 
ऊटी समुद्र तल से लगभग  7,440 फीट 2,268 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है
तमिलनाडु का बेहद खूबसूरत और रोमांटिक स्थल ऊटी अपने मनोरम दृश्यों के लिए विश्व विख्यात है। इतना ही नहीं इसकी खूबसूरती के कारण इसे 'पहाड़ों की रानी' भी कहा जाता है। ऊटी कुदरत का खूबसूरत जीता जागता उदाहरण है जो अपने सौंदर्य के लिए तो जाना जाता ही है साथ ही यह हिन्दुस्तान फोटो फिल्म के कारखाने के लिए पर्यटकों के बीच खासा मशहूर है।

दूर तक फैली हसीन वादियां और उन वादियों में ढके आकर्षण वृक्ष ऐसे सुकून देते हैं जैसे कोई बच्चा नींद  की गोद में सुकून व आनंद महसूस करता हैं।

★इतिहास:--
नीलगिरि पर्वत श्रृंखला चेर साम्राज्य का भाग हुआ करते थे। फिर वे गंगा साम्राज्य के हाथों में चले गये  उसके बाद12वीं शताब्दी में होयसल साम्राज्य के राजा विष्णुवर्धन के राज्य में आ गये। 
टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाओ पर कब्जा कर लिया। बाद में टीपू सुल्तान ने ये अंग्रेजों को सौप दिए।

पड़ोसी कोयम्बटूर जिले के गवर्नर, जॉन सुलिवान को यहाँ की आबो-हवा बहुत पसंद थी, उन्होंने स्थानीय लोगों से जमीन खरीदकर 1821 में ऊटी शहर की स्थापना की थी ।
यह पर्वतीय पर्यटन स्थल समुद्र तल से करीब 7,440 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां दूर-दूर तक फैली हरियाली, चाय के बागान, तरह-तरह की वनस्पतियां पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी हैं.

यहां स्थित दोदाबेट्टा पीक, लैम्ब्स रॉक, कोडानाडू व्यू प्वाइंट,रोज गार्डन, बोटेनिकल गार्डन्स, अपर भवानी झील, नीलगिरी माउंटेन रेल्वे के अलावा फूस की छतवाले चर्च, खूबसूरत सड़कें और सुंदर कॉटेज देखने लायक हैं.

प्रकृति प्रेमियों के बीच मशहूर इस वनस्पति उद्यान की स्थापना सन 1847 में की गई थी.  22 हेक्टेयर में फैले इस खूबसूरत बाग की देखरेख बागवानी विभाग करता है।
यहां एक पेड़ के जीवाश्म संभाल कर रखे गए हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह 2 करोड़ वर्ष पुराना है. इसके अलावा यहां पेड़-पौधों की 650 से ज्यादा प्रजातियां देखने को मिलती है
 ऊटी में मौज-मस्ती और घूमने के अलावा, दक्षिण भारतीय व्यंजनों का स्वाद जा सकता है. इसके साथ ही यहां कि मशहूर चाय, हाथ से बनी चॉकलेट, खुशबूदार तेल और गरम मसालों की खरीददारी भी की जा सकती है।
सुबह से निकले हमको काफी टाइम हो गया था इसलिए रास्ते में मिले काफी कैफे पर उतरकर हमने काफी पी ओर कुछ स्नेक्स खाये, यहां दूर से ही ऊटी के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।
ऐसा लग रहा था कि ऊटी में जमकर बारिश हो रही हैं।
ओर यही बात सच हुई ,ऊटी में प्रवेश करते ही बारिश ने हमारा जोरदार स्वागत किया।बारिश इतनी तेज थी कि बाहर के कुछ भी दृश्य दिखाई नही दे रहा थे..
यहां दामाद ने एक कॉटेज बुक की थी ,2 बजे हम उस कॉटेज पर पहुंचे तो बारिश बन्द नही हुई थी। इस कॉटेज का 1 दिन का किराया  2500 रु था। पास ही ऑनर का होटल था जिसका खाना बहुत ही टेस्टी था। हमने खाना मंगवाया ओर खाकर आराम करने चल दिये।
कॉटेज 2मंजिला थी नीचे हम जाकर अपने बेड पर कुछ देर के लिए सो गए,बाहर बारिश थी इसलिए कही जा भी नही सकते थे।
4बजे सब आराम कर के उठे तो बारिश बन्द हो गई थी ।सब फटाफट तैयार हो ऊटी की फ़ेमस लेक पर चल दिये। 

★झील':--
ऊटी झील का निर्माण यहां के पहले कलेक्टर जॉन सुविलियन ने 1825 में करवाया था. यह झील 2.5 किमी लंबी है इसके अलावा यहां एक बगीचा और जेट्टी भी है. यहां हर साल तकरीबन 12 लाख पर्यटक आते हैं.
ऊटी झील किसी सितारे से कम नहीं लगती है। इसकी सौंदर्य को देख बस दिल हरा-भरा हो जाता है। इस झील में बोटिंग की अच्छी व्यवस्था है। साथ ही आप यहाँ घुड़सवारी का आनंद उठा सकते हैं और बच्चे यहाँ खिलौना गाड़ी में बैठकर खूब मस्ती करते हैं।
लेक पर पहुंचकर हमने बोटिंग का आनंद लिया। शाम को यहां काफी ठंडक हो गई थी इसलिए सबने स्वेटर् निकाल लिए थे।
रात को लेक से वापसी पर हमने खाना नही खाया क्योकि लेट खाना खाया था तो किसी को भी भूख नही थी।रात काफी ठंडी थी
फिर हम सब सो गए।
क्रमशः:----










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