मेरे अरमान.. मेरे सपने..


Click here for Myspace Layouts

रविवार, 28 मई 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 5 )



*यात्रा जगन्नाथपुरी*

भाग-- 5

कोणार्क मंदिर भाग --2   


ध्वज श्री जगन्नाथ मंदिर का .. फोटू गूगल बाबा  



31 मार्च 2017 

 --------------------------------



28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 

आज मुझको पुरी आये दो दिन हो गए ,कल हमने जगन्नाथ मंदिर देखा और पुरी के अन्य धार्मिक स्थल देखे ,शाम को हमने पुरी का समुन्दर बीच भी देखा और रात को थके हारे सो गए। ... अब आगे ----

आज हमने कोणार्क मंदिर देखा  .. और चंद्रभागा समुन्द्र बिच पर  मटरगस्ती भी की। .. दिन के 3 बज रहे थे भूख जोरो से लग रही थी सुबह के खाये परांठे पता नहीं कहाँ गुम हो चुके थे ,पर यहाँ खाने को कुछ खास नहीं था इसलिए हमने बिस्कुट और नमकीन खाकर ही काम चलाया थोड़ा सहारा तो हुआ पर इतना भी नहीं की चल सके खेर, आगे जाकर नारियल पानी पिया और नारियल की मलाई खाई।  गर्मी और धुप अपनी  चरम सीमा पर थी।   

अब आगे ;---

कोणार्क का सूर्य मंदिर देखकर हम बाहर निकले तो सामने ही बड़ा बाजार लगा हुआ था यहाँ से सबने कुछ न कुछ हैंडमेड चीजे खरीदी बहुत ही प्यारे छोटे- छोटे हाथी,घोड़े,ऊंट और हिरण बिक रहे थे मैंने भी  दो हिरण खरीदे , आगे एक दुकान पर चिड़ियों का घोंसला बिक रहा था मुझे बहुत पसंद आया एक छोटा घोंसला मैंने भी खरीदा। ..समुन्द्र की सीपों से बने घर और आईने बिक रहे थे पर वो बॉम्बे भी मिलते है , फिर हम  आँटो में बैठ आगे चल पड़े। 

आगे हमको वो एक मंदिर में ले गया जो दुर्गा माता का मंदिर था पीछे नदी थी उसमे मोटर बोट चल रही थी , मंदिर सड़क से काफी दूर और नीचे था , मैं बहुत थक गई थी इसलिए अंदर नहीं गई वही बैठकर गन्ने का रस पिया ,हमारे टीम के लीडर लोग मोटर बोट का किराया वगैरा पूछने नदी के पास चले गए।  वापसी में वो लोग मुझे  मुंह लटकाकर आते हुए दिखे ,आकर उन लोगो ने बताया की बोटिंग बहुत महंगी है हम सबका वो लोग 1500 सो रुपये मांग रहे है।  एक घंटा नदी में घुमाएंगे। .. इतना महंगा ! हमको नहीं चलेगा, सबने वही बैठकर गन्ने का जूस पिया और एक गिलास ऑटो वाले को भी पिलाया फिर हम आगे चल पड़े ....  

4.30 तक हम जगन्नाथ मंदिर पहुँच गए ,फटाफट मोबाईल , पर्स,बेल्ट और जूते हमने काउंटर पर जमा किये और मंदिर के अंदर पहुँच गए हमको 5 बजे से शुरू होने वाला ध्वज प्रोग्राम मिस नहीं करना था क्योकि हमारे घुमक्क्ड़ी ग्रुप की प्रतिमा ने बोला था की कुछ भी हो ये मिस नहीं होना चाहिए। 
हमारा मोबाईल जमा हो गया इसलिए आगे के फोटू नहीं खींच सकी.... 
पता नहीं क्यों हमारे देश में मंदिरो और पौराणिक स्थलों पर फोटू नहीं खींचने देते  ?

  
हम जल्दी ही मंदिर के अंदर पहुँच गए, अंदर काफी भीड़ थी ऊपर से धूप भी बहुत तेज थी लेकिन हवा ठंडी चल रही थी ,काफी लोग अभी से मंदिर के प्रगांढ़ में अपनी अपनी जगह रोककर बैठे थे ,हमने भी एक बढ़िया जगह रोककर वही अपनी धूनी रमा ली हलाकि धुप सीधे मुंह पर आ रही थी पर इतना त्याग तो एक बढ़िया चीज देखने के लिए करना ही था ,मेरे सामने मंदिर दिख रहा था और ऊपर लहराता ध्वज। मैं यही सोच रही थी की कैसे कोई आदमी इतने बड़े मंदिर पर उल्टा होकर चढ़ सकता है यही आश्चर्य दिखने को मन बहुत बेताब था।सबकी निगाहें ऊपर मंदिर के उड़ते हुए झंडे पर लगी थी , मैंने देखा  सचमुच् पंछी मंदिर के ध्वज के पास नहीं उड़ रहे थे ,कहते है की कोई विमान भी ऊपर से नहीं उड़ता। 

कहावत है की यदि इस मंदिर में एक दिन भी झंडा नहीं बदला तो मंदिर 18  सालो के लिए बंद हो जायेगा। 

5 बज चुके थे अचानक एक बादल का टुकड़ा सूरज महाराज को ढ़कने पहुँच गया और मेरे चेहरे पर आ रही धूप से मुझे निजात मिली मेरे दिल से एक आवाज़ निकली -- जय जगन्नाथ। 

हम जब आकर वहां बैठे थे तो कुछ बंदरो के झुण्ड पास के मंदिर पर चढ़ कर घमाचौकड़ी मचा रहे थे हम भी उनकी मस्ती देख आनंदित हो रहे थे आखिर कुछ तो टाईम पास हो। 

ठीक 5 ;20 पर ध्वज का बड़ा सा गठ्ठरा लेकर एक युवा पुजारी हमारे सामने से निकला और मंदिर पर चढने लगा धीरे  धीरे वो कंधे पर गठ्ठर उठाये हमारी तरफ देखता हुआ ऊपर चढ़ने लगा ,पूरा मंदिर छोटी -छोटी सीढ़ियों जैसा बना था वो मंदिर की सीढ़ी पकड़ता और निचे से पैर अगली सीढ़ी पर रखता और ऊपर चढ़ जाता वो धीरे -धीरे ऊपर जा रहा था और बंदरो का झुण्ड अपने आप निचे आ रहा था मानो किसी ने उनको डांट दिया  हो और ऊपर से भगा दिया हो ,देखते -देखते सारे बंदर नीचे आ गए और  युवा पंडित 45 मंजिला ऊँचा मंदिर के बुर्ज पर चढता रहा , न किसी रस्सी के सहारे न किसी चीज को पकड़े हुए ऊपर से इतना बड़ा गठ्ठर लिए;
उफ़ ! मेरे तो पैरों में सिहरन होने लगी वो दृश्य ऐसा था की हर इंसान आँखे फाडे मुंह खोले सिर्फ देख रहा था। ये दृश्य ऐसा था जिसे शब्दों में पिरोना मूर्खता है बस देखकर ही अहसास होता है। काश, मेरे पास मोबाईल होता तो ये शमा कैद कर लेती अफ़सोस !!!!

खेर, वो युवा पुजारी बड़ी निपूर्णता से अपने कार्य को अंजाम दे रह था ,मंदिर के बुर्ज पर पहुंचकर वो और ऊपर जंजीर की मदद से चढ़ने लगा अब वो हमको बहुत छोटा खिलौने की तरह नजर आ रहा था उसने ऊपर जाकर अपना काम शुरू कर दिया था वो एक -एक कर पुराने झंडे खोलता जा रहा था और उनकी वैसी ही घड़ी करता जा रहा था और कंधे पर ही रखता जा रहा था , सम्मान इतना था की उसने एक भी झंडा नीचे नहीं रखा. अब वो और ऊपर चढ़ गया जहाँ सुदर्शन चक्र लगा  हुआ था उस चक्र के ऊपर लगा सबसे बड़ा ध्वज उसने बदला और खोल कर लहरा दिया (ऊपर का चित्र देखे )  निचे सभी ने तालियां बजाई और भगवान जगन्नाथ की जय -जयकार की ,ये सारा कार्यक्रम आधा घंटा चला। ये दृश्य इतना आनंदमयी और उत्सुकतापूर्ण था की मुझे अपनी सम्पूर्ण जगन्नाथ यात्रा का आनंद इस आधे धंटे में आ गया। मेरी यात्रा सफल हो गई।    
   
वो युवा पुजारी ऊपर से नीचे बड़े आराम से उतर गया मानो सीढ़िया लगी हो जबकि उसके कंधे पर अभी भी पुराने ध्वज का गठ्ठर लदा था ,चढ़ना जितना कठिन था उतरना भी उतना ही कठिन था। जब वो नीचे आया तो श्रद्धालु उसके पैर स्पर्श करने लगे।  और वो वही मंदिर के मेन गेट के पास बैठ गया सारी भीड़ उधर ही दौड़ पड़ी मैंने उत्सुकता से उधर देखा तो लोग हाथो में पैसे लिए ध्वज खरीद रहे थे शायद छोटे बड़े 40 -50  ध्वज तो होंगे ही उस युवा पुजारी की मदद दो अन्य पुजारी भी कर रहे थे ,जब भीड़ कुछ कम हुई तो हमारे भी दोनों जग्गा जासूस उधर चल पडे और सारी रिपोर्ट आकर बताई की सबसे बड़ा ध्वज  2100 सो रुपये में बिका जो सुदर्शन चक्र पर चढ़ता है और बाकि  के 100 रु में बिक रहे थे। मुझे इस तरह ध्वज बिकना पसंद तो नहीं आया पर ठीक है मंदिर के पण्डो की आमदनी और ऊपर चढ़ने वाले पंडे की जान की कीमत से बहुत सस्ता लगा।  मैंने भी एक झंडा 100 रु में मंगवा लिया। 
बाद में हम लोग मंदिर के प्रगांढ़ में बने अन्य मंदिरो के दर्शन करने गए वहां हमने एक ग्यारस का मंदिर भी देखा जिसे खुद भगवान ने उल्टा कर दिया था और वो उलटी ही लटकी हुई थी पुरोहित कहते है की हम लोग ग्यारस का व्रत नहीं करते और ग्यारस वाले दिन जो चावल खाना निरषेध्य है पर हम लोग चावल खाते है। 

फिर हम लोग लक्ष्मी मंदिर गए वहां 4 -5 पुरोहित खड़े थे उन्होंने हमको बड़े आदर से अंदर बुलाया ,मामला गड़बड़ लग रहा था मुझे ;और था भी !
हुआ यू की हम जैसे ही अंदर गए तो हमको 3 युवा पुरोहितों ने घेर लिया ,इतने पैसे दो तो माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलेगा ,घर धन्य धान्य से भर जायेगा वगैरा -वगैरा ! पर हमने कोई इन्ट्रेस नहीं दिखाया तो वो एक चाँदी जैसा लक्ष्मी का पैर ले आये जिसका वो 200रु मांग रहे थे  मारु जी ने 100 रु बोला तो वो तैयार हो गए और उनको दे भी दिया ,तब तक मेरी सहेली बाहर निकल चुकी थी और मैंने भी कदम बढ़ाये तो एक युवा पुरोहित बोला -- ''आप इधर आये।  मैं उसके पीछे चल दी, देखना चाह रही थी की ये क्या करता है उसने एक अलमारी के पास जाकर ताला खोला और बोलने लगा की ये लीजिये ,मैंने देखा तो वो एक बड़ी-सी चाबी थी उसपर सोने का पॉलिश चढ़ा हुआ था मैंने हाथ में ले ली सोचा आज तो लक्ष्मी जी मेहरबान है पर असलियत तो तब खुली जब व पुरोहित ने 500 रु मांगे;  मैं हैरान हो गई की सोने की चाबी सिर्फ 500 रु में ! फिर ध्यान से देखा तो पता चला की ये तो प्लास्टिक की 20 रु वाली चाबी है धत तेरी की ----
 बाद में जब मैंने नहीं खरीदी तो वो पुरोहित 300 रु मांगने लगा --- अब तक मैं उसके जादू  से दूर आ चुकी थी।          

 दिनभर के भूखे थे अब भूख से आंते भी कुलबुलाने लगी तो हम फटाफट मंदिर से बहार आये  पहले अपना सामान समेटा और मंदिर के सामने जाकर ठेले की चाय -बिस्किट खाई फिर पास ही मिल रही वहां की स्पेशल दही मिठाई खाई जो बहुत टेस्टी थी।रात हो आई थी और हम बहुत थक गए थे।  

हम लोगो ने मंदिर से  ऑटो लिया और सीधे सुबह वाले रेस्टोरेंट आ गए और जमकर खाना खाया फिर पैदल ही अपने गेस्टहाउस आ गए... आज बहुत थक गए थे पर आजका दिन पूरा सार्थक हुआ कल भुवनेश्वर के लिए निकलना है .. 
शेष अगले अंक में ....    

   



लाल निशान से युवा पुजारी मंदिर के ऊपर सीधा ही चढ़ने लगा ,मानो सीढ़ियां लगी हो 
चित्र -- गूगल दादा  






सुदर्शन चक्र 





पुराना जगन्नाथ टेम्पल 










चिड़ियों का घोंसला 


दो सुंदर हिरण 

रास्ते के टेस्टी नारियल पानी और मलाई 

शेष अगले अंक में 
भुवनेश्वर की यात्रा 



7 टिप्‍पणियां:

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

जय जगन्नाथ !
बुआ आपकी यात्रा के दौरान जब ध्वज बदलने वाली चर्चा चली तो मैंने इसका यु ट्यूब पर वीडियो देखा । सचमुच अद्भुत लगा ।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

जय जगन्नाथ !
बुआ आपकी यात्रा के दौरान जब ध्वज बदलने वाली चर्चा चली तो मैंने इसका यु ट्यूब पर वीडियो देखा । सचमुच अद्भुत लगा ।

Abhyanand Sinha ने कहा…

जय जगन्नाथ! बुआ जी बहुत बढ़िया लगा पढ़कर। ऐसा लगा जैसे मैं आपके साथ साथ चल रहा हूँ

Sachin tyagi ने कहा…

जय जगन्नाथ ।
बढिया पोस्ट बुआ जी 👍

Nutan prakash ने कहा…

Bahut khub, lekin mandiro me lut khasoot dekh kar man dukhi bhi hua

Harshita ने कहा…

झंडा बदलने वाला तो मैंने भी यूट्यूब में देखा है।

स्वाति ने कहा…

बहुत ही बढि़या वृतांत लिखती है आप। लग रहा था कि साथ साथ हम भी है। सभी वर्णन बहुत ही बढि़या है।