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बुधवार, 21 जून 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 6 )


*यात्रा जगन्नाथपुरी *
भाग -- 6  
भुवनेश्वर भाग-- 1 

 धोलगिरी शांति स्तूप,भुवनेश्वर   




1 अप्रैल 2017 


28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी |
हमने दो दिन खूब पुरी घूमा ,सूर्यमंदिर देखा और  भी यहाँ के अन्य धार्मिक स्थल देखे।  अब हमने भुवनेश्वर  को प्रस्थान किया ---अब आगे ----

रात को थकान  बहुत हो गई थी ,सुबह भुवनेश्वर जाना था और रास्ते में हमको पीपली गाँव भी रुकना था क्योकि वहां उड़ीसा की फ़ेमस हेंडमेंड पेंटिंग मिलती  है जिन्हे हम सबको खरीदना था  इसलिए रात को ही सबने डिसाईट किया की सड़क मार्ग से ही चलेगे। सड़क मार्ग से भुवनेश्वर 59 किलोमीटर है जबकि ट्रेन से 63 किलोमीटर। 
हमने कल ही एक ऑटो वाले को नक्की किया था जो 800 रु में हमको भुवनेश्वर छोड़कर आएगा। 

सुबह 8 बजे तक सब तैयार होकर गेस्टरूम से बाहर आये ,पैकिंग हमने रातको ही कर ली थी इसलिए काम जल्दी हो गया। अब हम कल वाले रेस्ट्रा में आ गए ताकि भारी नाश्ता कर सके अभी होटल वगैरा खुल रहे थे नाश्ता तैयार नहीं था हमने जब आलू के परांठे खाने की इच्छा बताई तो होटल के मालिक ने बड़ी रुखाई से जवाब दिया की आधा घंटा लगेगा ,मरता क्या न करता ! हम वही बैठ गए। हमने ऑटो वाले को भी यही बुला लिया था। 
मुझे यहाँ के लोग बड़े रूखे मिज़ाज के लगे। शायद इनको हिंदी भाषी लोग पसंद नहीं हो खेर,
आधा घंटे के बाद ही हमको परांठे मिले पर कल जितना मजा नहीं आया। 
परांठे खा बिल पे कर हम ऑटो  में बैठ इस शहर को अलविदा बोलै  ---जय जगन्नाथ। 



भुवनेश्वर एक परिचय ;--


भुवनेश्वर ओडिसा राज्य की राजधानी है।  यह बहुत ही हराभरा राज्य है। सुंदरता की निराली छटा बिखेरता हुआ ये राज्य इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कलिंग का प्रसिध्य युध्य हुआ था,  जिसके विनाशकारी परिणाम को देखकर पराक्रमी राजा अशोक महान  ने युध्य न करने की शपथ ली और बोध्य अनुयायी बन गया था । 
भुवनेश्वर को पूर्व की काशी भी कहा जाता है  क्योकि किसी समय में यहाँ 7000 मंदिर हुआ करते थे जो अब 600 तक सिमिट गए है।
यह बोध्य स्थल भी रहा है 1000 सालों तक यहाँ बोध्य धर्म रहा जिनकी आज भी भव्य गुफाएं देखी जा सकती है। राजधानी से 100 किलोमीटर दूर  खुदाई में तीन बोध्य विहार रत्नगिरि , उदयगिरि और ललितगिरि मिले है इनमे से उदयगिरि और खंडगिरी की गुफाएं आज भी अच्छी अवस्था में है।

पुराने भुवनेश्वर के साथ ही नया भुवनेश्वर भी देखने लायक है जो एक राजधानी में होना चाहिए वो सब यहाँ है , चौड़ी सड़कें ,बिल्डिंगे,सिनेमा घर, मॉल और  फाइव स्टार होटल्स इत्यादि। 
यहाँ के खानपान में चावल मुख्य भोजन है।  उड़िया लोग मछली भी प्रेम से खाते है । पखाळ भात यहाँ की एक लोकप्रिय डिश है  और पोई - साग यहाँ के तटीय क्षेत्र में पाई जाने वाली एक सब्जी है। 

यहाँ पत्थर से बने खूबसूरत समान मिलते है पत्थर से बनी सजावटी  मूर्तियो के अलावा बर्तन भी मिलते है।उड़ीसा का नृत्य कुचिपुड़ी और यहाँ की साड़ियां भी बहुत फेमस है। 

हमारी ऑटो पीपली गाँव  रुकी जो की पूरी से 35 किलोमीटर दूर है यहाँ ओडिसा का फेमस हेंडीक्रॉफ्ट मिलता है जिसके लिए हमको सड़क मार्ग से आना पड़ा. . 

यहाँ  काफी दुकाने थी हम सामने की एक दुकान में चले गए यहाँ से हम सबने  150 रु की करीब 4  कपडे की पेंटिंग खरीदी। 
फिर हम दूसरी दुकान में गए जहाँ मेरी सहेली ने कुछ मधुबन स्टाईल की पेंटिंग्स खरीदी जो 1000 रु बोल रहा था और आखिर में 700 रु में दी ,ये भी कपड़े पर ही थी यह पेंटिंग कृष्ण पर ही बनी थी भगवान कृष्ण के जीवन की झलकियां  ऊकेरी हुई थी। 
  
यहाँ से हम आधा घंटे बाद फ्री होकर भुवनेश्वर चल पड़े। 

हमारा ऑटो वाला हमको एक होटल में छोड़कर चला  गया  हमने  डबल बेड का ऐ. सी,  रूम लिया जो 1500 सो रुपये में आया , रूम छोटा था पर कम्फर्टेबल था।  हमने सारा सामान रखा और फ्रेश होकर निकल पड़े धौलगिरि शांति स्तूप और उदयगिरि की गुफाये देखने। ... 

शेष अगले भाग में  ब्रेक के बाद मिलते है। ...... 












पीपली गांव की पेंटिंग 


 पीपली  गांव का बाजार 



      


















7 टिप्‍पणियां:

Abhyanand Sinha ने कहा…

बहुत ही बढ़िया विवरण बुआ जी, और चित्र भी बहुत अच्छे हैं

SANDEEP PANWAR ने कहा…

बुआ जी नमस्कार,
यह जगह मेरी देखी हुई है। आपके लेख के माध्यम से इसे पुन: देखना और भी अच्छा लगा। ऐसा लगा कि मैं कुछ देखना भूल गया था जो आपने दिखा दिया है।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

थैंक्स संदीप वैसे तुमसे ज्यादा मैं कहाँ घूम सकती हूं ☺

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

थैंक्स अभ्यनन्द 👏

Sachin tyagi ने कहा…

बढिया सैर करा दिए आपने बुआ जी

डॉ अजय ने कहा…

वाह bua ji👍👍

Harshita ने कहा…

पीपली से मैंने भी एक चद्दर ली थी