मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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गुरुवार, 6 मई 2021

पथराई आँखों के सपने


# कहानी #
"पथराई आँखों के सपने 
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उसकी गली से जब भी गुजरना होता था मेरा जाने क्यों मेरे कदम उसके दर के आगे रुक जाया करते थे एक लम्बी सांस लेकर फिर मैं अचानक उस लम्बी सड़क को देखती जिस पर चलते हुए मैँ यहाँ तक पहुंची थी....

वो मेरा कुछ लगता तो नहीं था पर फिर भी मुझे उससे लगाव हो गया था !
कभी उस घर में जाने का सपना देखा था मैंने; वो बहुत संस्कारी और एजुकेटेड लोग थे कम से कम उनके 4 लड़कों में से 2 लड़के डॉ थे... उन्हीं में से एक लड़के पर मेरा दिल आ गया था ...शायद मैँ उससे प्यार करती थी...?
वो भी करता था----?
पता नहीं ???
उनका एक लड़का मशहूर वकील था और जो सबसे छोटा था वो मेरी ही उम्र का था अभी पढ़ रहा था... मुझे वो पसन्द तो नहीं था पर अक्सर हम दोनों को दादा इंग्लिश पढ़ाते थे । 

मैँ उनकी मम्मी को मौसी कहती थी और पापा को दादा कहती थी...दादा किसी कालेज में इंग्लिश के फ्रोफेसर थे...बहुत रोबीला व्यक्तित्व था उनका .... उनकी हाईट ही साढे 6 फिट थी।

अक्सर उनके घर में मेरा आना -जाना लगा रहता था । कभी माँ के काम से कभी मौसी के काम से, मेरा वहां आना जाना था। मैँ उस घर की रौनक हुआ करती थी क्योकि उस घर में कोई लड़की नहीं थी तो सब मुझे बहुत प्यार करते थे और मैँ सिर्फ तुमसे प्यार करती थी...
सिर्फ तुमसे!!!

पर तुम मेरे प्यार से अनजान थे ? बात तो करते थे पर कुछ खास नहीं... न मुझे अपना दोस्त समझते थे न कोई और रिलेशन मानते थे...
मैँ व्यर्थ ही तुम्हारी राह जोहती थी । रात को जब तक तुम आ नहीं जाते थे मैँ सीढ़ियों पे तुम्हारा इंतजार करती थी...मन ही मन तुम्हें पसन्द करती थी...तुम्हारे सपने देखती थी।

फिर वो दिन आया ...
वो मनहूस काली शाम  मैँ कभी नहीं भूल सकती, जब  मेरे सपने टूटे थे... जब मैँ जीते जी मर गई थी... जब मेरा अस्तित्व ख़त्म हो गया था...जब मैँ तुमसे दूर बहुत दूर चली गई थी।

तुम सब अपने गाँव किसी की शादी में गए हुये थे...मुझे पता नहीं था क्योकि मैँ  अपने चाचाजी के घर गई हुई थी...उस शाम मैँ बेधड़क तुम्हारे घर चली गई थी बहुत सन्नाटा था कोई नहीं था मैँ हर कमरे में तुम्हारा नाम लेकर घूम रही थी की अचानक एक कमरे से काफी आवाजें सुनाई दी तो मैंने झांककर देखा वहां तुम्हारा छोटा भाई अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था... मुझे उसका ये रूप अलग ही नजर आया... मुझे देखकर उसकी आँखों में एक अनोखी चमक आ गई जिसे नजरअंदाज कर मैँ पलट पड़ी । मैँ बहुत सकते में थी इस मंदिर रूपी घर में शराब !!!छिः

मैं  गुस्से में पलटकर अपने घर को चल दी अचानक तुम्हारा भाई मुझे आवाज़ देता हुआ मेरे नजदीक आ गया बोला--" यार छाया,कुछ खाने को बना दो, मेरे और मेरे दोस्तों के लिए , बहुत भूख लगी है"।

मैँ उस वक्त वो सब टाल देती तो शायद अच्छा होता, तब वो सब नहीं होता जो हो गया था ।
मैँ बड़बड़ाती हुई उसको गालियां देती हुई किचन में आ गई ...अनजान-सा भाभी वाला अधिकार कही मुंह उठा रहा था ,..
"लो छाया, कोल्डरिंग पी लो आज बहुत गर्मी है फिर आराम से बनाना" उसने मेरे हाथ में एक ठंडी ड्रिंक रख दी..वो जानता था ठंडी चीजें मुझे बेहद पसंद हैं। मैंने फटाफट ड्रिंक ख़त्म की और काम में लग गई ......

जब होश आया तो मैँ पलंग पर चित लेटी थी माँ रो रही थी और पिताजी कमरे में चक्कर काट रहे थे...मैँ आवक थी !असहाय थी! दो दिन में मेरी दुनियां बदल गई थी।
वो मौसी बदल गई थी ? वो दादा बदल गए थे? वो प्यार बदल गया था ?वो घर बदल गया था ? रह गई थी तो सिर्फ सिसकियां! खामोश माहौल !! क्रंदन !!! खामोशी!!!!


2 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

झकझोर देनी वाली कहानी…

Bhavana Varun ने कहा…

Heartbreaking! After going through this painful experience the only thing that comes to my mind is, you are a true survivor! Thanks for sharing and letting all know how you've felt all the time.