तमिलनाडुडायरी# 7
16दिसम्बर 2022
कल रामेश्वरम को गुडबॉय बोलकर हम निकल गए थे पर रामजी कीधर मानने वाले थे। उन्होंने हमको तुरंत वापस बुला लिया और बोले कि– "बेवकूफ नारी, काहे बगैर देखे मेरी नगरी से प्रस्थान कर रही हैं ।वापस जाकर अपने ग्रुप में क्या मुंह दिखाएगी। अधूरा ज्ञान और अधूरा भ्रमण किसी काम का नहीं हैं बाद में पछताएगी" 😀
मैंने भी श्रीरामजी को--- "जो हुक्म मेरे मालिक " बोलकर हाथ जोड़ लिए🙏
ओर फटाफट दिन में मदुराई से दोबारा उसी ट्रेन में बैठ गई और रात 10:30 को दोबारा रामजी की नगरी रामेश्वरम में अपने कदम रक्खे।🙏
आज 16 दिसम्बर था और इसी दिन के कारण ही तो मैंने यहां आने का प्रोग्राम बनाया था। सोचा था रामजी के चरणों में ये शुभ दिन मनाऊंगी😃ओर आज मुझे मालिक ने इस शुभ दिन पर वापस बुला लिया था😀
तो दोस्तों! ज्यादा सस्पेंस में नही रखती हूं क्योकि आज हमारा शहीदी दिन था यानी कि वैवाहिक सालगिरह हैं।ओर आज हम निकलने वाले हैं धनुषकोटि।🥰
तो सुबह फटाफट गुलफ़ाम बने हम नए कपड़े धारण किये और होटल से बाहर आ गए,पड़ोस के साफ सुथरे रेस्तरां में नाश्ता किया।
आज कुछ अजीब सी खिचड़ी के स्वाद वाला पोंगल खाया ।वैसे टेस्टी था।पर बस एक बार ही, बार2 नही खा सकती।😂😂
नाश्ता से फ्री होकर हमने एक ऑटो वाले से सम्पर्क किया उसने 5 स्थान घुमाने का 1हजार ₹ बोला ।पर मैंने तुरंत हा नही की बल्कि दूसरे ऑटो वाले को रोका उसने भी जब 5 स्थान घुमाने का 1हजार बोला तो हम बगैर सोचे समझे ऑटो में सवार हो गए।
पहले वो हमारे देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति और फेमस वैज्ञानिक अब्दुल कलाम साहब के घर ले गया।वहां हमने उनका घर, ओर उनका संग्राहलय देखा। सादगी के मालिक कलाम साहब को नमन कर के कुछ फोटु उतारकर हम आगे बढ़ गए।
अब हम धनुषकोटि जा रहे थे।ये धनुषकोडी इसलिए भी फ़ेमस हैं क्योकि भगवान राम ने अपने वनवास काल में सीता माता को मुक्त करवाने के लिए अपनी वानर सेना द्वारा लंका पर चढ़ाई के लिए ब्रिज बनाया था और वो ब्रिज पत्थरों से बना था जो पानी मे डूबते नही थे।ये ब्रिज अब दिखाई तो नही देता लेकिन यहां तक पहुँचने वाला रास्ता बड़ा ही दिलकश था।नज़ारे इतने सुहावने थे कि मेरा मोबाइल उनको कैद कर कर के थक गया ।दोनो तरफ समुंदर एक तरफ हिंदमहासागर ओर दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी बीच मे रास्ता, जिस पर दौड़ता हमारा ऑटो ओर हमारे साथ चलती सुहानी हवा !मुझे एक गीत याद आ गया--- "मौसम मस्ताना.. रास्ता अनजाना ..जाने किस मोड़ पे बन जाये कोई अफसाना... लल्लला ला ..ला ..ला 🥰🥰🥰क्या कहने😀
धनुष्कोडी:--
धनुषकोडी को भारत की अंतिम भूमि के रूप में जाना जाता है, रामेश्वर से धनुष्कोडी जाने वाली सड़क को भारत की अंतिम सड़क कहते हैं। धनुषकोडी की इस सड़क से श्रीलंका केवल 31 किलोमीटर दूर है और स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। लगभग 54 साल पहले पंबन द्वीप पर धनेश्वर लिंकी एक रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, चिकित्सा केंद्र और सुविधाओं के साथ दक्षिण पूर्व भारत के तट पर बसा एक शहर था। 21 दिसंबर 1964 को इस पूरे क्षेत्र में एक चक्रवती तूफान आया था जिसकी 20 फीट ऊंची लहरे उठी थी जिसने पूरे शहर को तहस नहस कर दिया था। कहते हैं तब इस रेल्वे लाइन पर एक यात्रियों से भरी हुई ट्रेन भी जा रही थी जिसे इस चक्रवात ने निगल लिया था।कोई भी यात्री नहीं बचा था।
तभी से सरकार ने इस स्थान को निर्जीव घोषित कर दिया।यहां अभी भी पुराने रेल्वे स्टेशन,चर्च के अवशेष देखे जा सकते हैं।
हमने घूमकर इन अवशेषों को देखा ।यहां एक दुकान में हमको पानी में तैरते पत्थर भी दिखे जिसे श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करते समय पुल बनाने के लिए इस्तेमाल किये थे।कुछ अजीब से पत्थर थे।
अब हम यहां से थोड़ी दूर पर बने धनुष्कोडी के आखरी स्थल पर पहुचे जिधर काफी भीड़ थी और लोग इस खूबसूरत मंजर को अपने अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। भारत भूमि के अंतिम छोर को निहारना अपने आपमें एक सम्मोहन-सा था।चारों ओर समुंदर ढहाके मार रहा था।हिंदमहासागर ओर बंगाल की खाड़ी का यहां मिलन होता हैं। दोनों के पानी का अंतर यहां स्पष्ट देखा जा सकता है।यहां कुछ समय बिताकर हम वापस चल दिये।
शेष अगले अंक में.
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