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शनिवार, 29 अप्रैल 2023

तमिलनाडुडायरी#9

तमिलनाडुडायरी #9
17 दिसम्बर 2022


आज बहुत थकान लग रही थी तो कमरे मे ही मगरमच्छ की तरह पड़े रहे।😃फिर बोर हो गए तो सोचा कि आज बाणगंगा चला जाय ।फटाफट तैयार होकर कमरे से बाहर आ गए।बाहर आये तो पता चला कि आज सुबह से रामेश्वरम मन्दिर बन्द है क्योंकि भगवान आज नगर भ्रमण करने अपने पूरे परिवार के साथ निकले है।अपने भक्तों का हालचाल पूछने ओर उनके दुःख दर्द को दूर करने के लिए।
तो आज मन्दिर के आसपास के कई रास्ते बंद है आज नगर में भगवान की सवारी निकली है जो साल में एक बार ही निकलती  है ऐसा होटल का मालिक बोल रहा था।और इस दिन मन्दिर के कपाट बंद रहते है ।अब शाम 4 बजे भगवान स्नान कर के शुध्द होएगे तभी मन्दिर के कपाट खुलेंगे ओर जनता भगवान के दर्शन करेगी।
हमने भगवान का लाख लाख धन्यवाद किया क्योंकि आज मैं दोबारा मन्दिर में जाने का सोच रही थी ,पर यहाँ तो भगवान खुद हमसे मिलने आ रहे थे ,ये मेरे लिए सौभाग्य की बात थी।
हम भी पड़ोस में जाकर नाश्ता वगेरा कर आये और सवारी का इंतजार करने लगे। शुक्र है सवारी हमारे होटल Santhil Andaver के सामने से ही जाने वाली थी।
ठीक समय ढोलक ओर दक्षिणी साज़ो समान बजाते हुए हमको रथ जैसा कोई आता दिखा ,भीड़ भी नाचते कूदते साथ चल रही थी लोग फूलों से स्वागत कर रहे थे। दक्षिण भाषा के भजन मनभावन बज रहै थे। दक्षिण भाषा के संगीत और भजन मुझे बहुत पसन्द है।
जब सवारी नजदीक आई तो 2 अलग अलग सोने की गायों पर भगवान शंकर का परिवार था ।आगे भगवान शंकर के साथ माता पार्वती विराजमान थी उनके पीछे गणपति महाराज ओर सबसे पीछे साउथ में जिनको मोरगन के नाम से जाना जाता है यानी कि भगवान कार्तिकेय अपने मोर पर सवार थे जो की चांदी का बना था।
काफी लोग साथ चल रहे थे मैंने भी फोटु उतारा और वीडियो बनाई ।बहुत ही शानदार माहौल था।कुछ दूर पैदल चलकर हम रुक गए और अपने कार्यक्रम अनुसार एक ऑटो को रोका और 500 ₹ में ऑटो कर के बाणगंगा देखने निकल गए।

विल्लीरणि तीर्थ
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 रामेश्वरम मन्दिर से करीब तीन मील पूर्व में एक गांव है, जिसका नाम तंगचिमडम है। यह गांव रेल मार्ग के किनारे ही बसा है। यहां स्टेशन के पास समुद्र में एक तीर्थकुंड है, जो विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है। समुद्र के खारे पानी के बीच से मीठा पानी निकलना आश्चर्यचिकित कर जाता है, यह बड़े ही अचंभे की बात है। कहा जाता है कि एक बार सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर दूर-दूर तक कहीं भी  पीने का पानी नजर नहीं आ रहा था। तब, भगवान श्रीराम ने अपने  धनुषबाण की नोक से इस कुंड को खोदा था ओर सीता मैया ने अपनी प्यास बुझाई थी।
ये वही कुंड था जिसे बाणगंगा  के नाम से जानते है।
मैंने देखा वहां कुछ लोग खड़े थे।
कुंड के पास जाने के लिए हम एक लंबे पुल से समुद्र के अंदर चलकर उस कुंड तक पहुचे जिसे अब कुएं की तरह बना दिया है। कुएं के पास एक आदमी की ड्यूटी थी वो सबको पानी निकालकर पिला रहा था। पहले वो सबको समुन्द्र का खरा पानी चखाता था फिर वो कुएं से निकालकर मीठा पानी चखाता था। जिसकी एवज में लोग उसे कुछ पैसे दे रहे थे।
हमको भी उसने एक छोटी सी बाल्टी से पहले समुद्र से निकालकर खारा पानी चखाया जो बिल्कुल खारा ओर कडुवा था फिर उसी बाल्टी से कुएं का पानी निकालकर पिलाया जो एकदम मीठा था।
मैंने तो पेट भरकर मीठा पानी पिया ओर थोड़ा अपनी बॉटल में भी भर लिया।
मैंने अपनी आंखों से देखा ये कुदरत का करिश्मा, सचमुच भगवान की लीला अपरम्पार हैं। और ऐसी अनोखी चीजों ने ही हमारे देश को महान बनाया है।
इस कुंड के किनारे एक मन्दिर भी बना था। ओर समुन्द्र का किनारा भी था तो पहले मन्दिर में दर्शन किये फिरु ठंडी हवा के झोंके खाने बीच पर उतर गई।
मुलायम बालू पर चलकर समुन्द्र की लहरों के साथ कुछ देर अठखेलिया खेलकर मैं वापस लौट आई। अपना ऑटो तैयार था उसमे बैठकर हम वापस होटल लॉट आये।
क्रमशः....


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