सजाकर रखा हे ---
एक फुल -------
खुशबू से महकता हुआ ---
नाजुक -----
मखमली -----
मुस्कुराता हुआ ---
रोज उसे चूमती ---
सहलाती -----
उसकी गुलाबी पंखुडियो को ---
निहारती अपनी पलको से ---
एक दिन --------
एक दिन छूने की कोशिश की ---
एक झटका -सा लगा ---
जिस्म थर्रा उठा -----
क्योकि फुल की कोख़ से ---
एक ' जहरीला - काँटा ' चुभा ------:(
18 टिप्पणियां:
दुनिया का यथार्थ यही है ...कभी भी हमारी सोच पर खरी नहीं उतरती दुनिया ...और यहाँ सिर्फ भ्रम हैं और क्या कह सकते हैं ....आपका शुक्रिया
एक दिन छूने की कोशिस की ---
एक झटका -सा लगा ---
जिस्म थर्रा उठा -----
क्योकि फुल की कोख़ से ---
एक ' जहरीला - काँटा ' चुभा ------:
कोशिस... को कोशिश कर लें
अंतिम पंक्तियाँ सच्चाई को वयां करती हैं
सुन्दर लेख । कोई अच्छी चीज अपनाने जाओ तो दुख का सामना करना पड़ता है । सच कहा आपने ।
जिस्म थर्रा उठा -----
क्योकि फुल की कोख़ से ---
एक ' जहरीला - काँटा ' चुभा ------:
कोशिस... को कोशिश कर लें
very nice
मेरा ख्याल अहसास किये जख्म से रूबरू
कराती कविता
vaah.....acchi kavita hai....
वास्तविकता से सराबोर भावाभिव्यक्ति......बधाई।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
फूल के साथ कांटों का ध्यान तो रखना ही पडेगा ।
यह कल्पना तो एक अलग ही तरह की रही!
बहुत सुन्दर रचना है!
hotaa hai ,,,
zindgi mei aksar
aise maqaam aa jaaya karte hain...
bahut sundar kriti .
@ दीपायन जी ,राजा भाई, डॉ लखनवी जी ,सुशिल जी ,शास्त्री जी,केवलराम जी आप सबका स्वागत हे --इसी तरह आकर मेरा होसला बढाए --धन्यवाद !
@राजीव थेपड़ा जी,आपका स्वागत हे धन्यवाद ! राजीवजी ,धन्यवाद काफी दिनों बाद आए -
@Daanish ji,dhanyvaad !
देर से पहुँचने के लिए मुआफी.
बहुत ही सुन्दर कविता हैं.
सरल और सटीक .
हर चेहरे पे नकाब है शायद .
काँटों के चेहरे पे फूलों का नकाब.
बढ़िया अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
@Sagebobji,dhanyvaad --jldi -jldi aae !
आदरणीय दर्शन कौर जी
नमस्कार !
मेरे मन के गुलदान में ---
सजाकर रखा हे ---
एक फुल -------
खुशबू से महकता हुआ ---
नाजुक -----
मखमली ----
....वाह बहुत खूब ...इस प्रस्तुति के लिये
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
........माफ़ी चाहता हूँ
@ संजय जी आपकी अनुपस्थिती यक़ीनन अच्छी नही थी --आपकी टिपण्णी आँखे खोज रही थी --पर कर्म और धर्म के लिए जाना तो पड़ता ही हे --आप आए धन्यवाद |
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