निर्झर के निर्मल जल-सी मैं ..
कभी चंचल, कभी मतवाली मैं ..
कभी गरजती बिज़ली -सी मैं ...
कभी बरसती बदरी -सी मैं .....
कभी सलोनी मुस्कान-सी मैं ...
कभी आँखों में झिलमिलाते सपनो-सी मैं ..
कभी ख़्वाबों को तरसती मैं ...
कभी चाँद को लपकती मैं ...
कभी दामन को पकडती मैं ..
कभी काँटों से दिल बहलाती मैं ...
कभी जिन्दगी के थपेड़ों से खुद को बचाती मैं ..
कभी तपकर कुंदन बन चम् -चमाती मैं .....!
आँचल में अपने सपनों को सजा पिया घर आई मैं ...?
क्या होगा ? कैसा होगा ? कौन होगा ? बोराई -सी मैं ...
कजरारे नैनो में अपने प्रीतम का अक्स सजाए ----- ?
डोली में सवार अपने पिया के घर आई मैं ..?
कभी शर्माती ? कभी धबराती ? कभी गुनगुनाती ? कभी मुस्कुराती मैं ...
कभी गम छुपाती ? कभी खुद पर आंसू बहाती ....
कभी सहज हो जाती ? कभी जख्मो पर मरहम लगाती मैं ...?
कभी सहज हो जाती ? कभी जख्मो पर मरहम लगाती मैं ...?
कभी भोर की किरणों से खुद को गुदगुदाती ?
कभी मेहँदी की खुशबु चारो और फैलाती ?
कभी दुसरो के सामने बिन बात खिलखिलाती ?
कभी गुलशन में तितलीयो की तरह मंडराती ?
कभी इन्द्रधनुष को अपनी बांहों में समाती ?
कभी अपना वजूद भूलकर ओरो को सहलाती ?
बस, ऐसी ही हूँ मैं ???????
कभी अपना वजूद भूलकर ओरो को सहलाती ?
बस, ऐसी ही हूँ मैं ???????
18 टिप्पणियां:
प्रभावशाली प्रस्तुति ।
दिल और कलम का अच्छा समन्वय ।।
स्त्री को जीवन भर बहुत सारे दायित्व निभाने पड़ते हैं। जन्मदिवस पर आपने आत्मावलोकन किया। इस मंथन से निकला नवनीत आगे का जीवन पथ आलोकित करेगा। जन्मदिन की ढेरों बधाईयां एवं शुभकामनाएं।
मेरा कमेन्ट स्पैम मे चला गया………… निकालिए उसे
सुन्दर लफ़्ज़ों में कही सुन्दर आत्मकथा .
धनोय जी -- सबसे पहले मै आप से क्षमा मांगूगा ! समय और ड्यूटी काफी परेशान कर रखा है ! जो मेरे ब्लॉग पर आते है , उन्हें भी समय दे पाना मुश्किल सा लगता है ! आज आप के सभी पोस्ट को देखा और काफी बदलाव पाया ! यह " मै " भी दिलचस्प है ! वैसे मै समझता हूँ की आप को देखते ही किसी के भी गुस्से गायब हो जायेंगे ! भगवान लम्बी आयु दें ! आप को बहुत - बहुत बधाई !
बेहद खूबसूरती से आपने अपने ''मैं '' से परिचय करवाया ...
खुद से परिचय करवाया ...अच्छा लगा ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-०३ -2012 को यहाँ भी है
.... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है
वाह, एक कविता में पूरी ज़िन्दगी उतार दी... सुन्दर!
सादर
कभी इन्द्रधनुष को अपनी बांहों में समाती ?
कभी अपना वजूद भूलकर ओरो को सहलाती ?
बस, ऐसी ही हूँ मैं ???????
BEAUTIFUL LINES.
LINES WITH EMOTIONS
बहुत खूबसूरत परिचय....
सादर बधाई।
स्त्री को जीवन भर बहुत सारे दायित्व निभाने पड़ते हैं। जन्मदिवस पर आपने आत्मावलोकन किया। इस मंथन से निकला नवनीत आगे का जीवन पथ आलोकित करेगा। जन्मदिन की ढेरों बधाईयां एवं शुभकामनाएं।
वाह ...बहुत ही बढि़या।
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ......उम्दा रचना
bahut badhaii Darshan ji ...
आपकी मैं की अभिव्यक्ति शानदार है.
आइसक्रीम खाती,तीखी चितवन की धनी,
पिया संग खड़ी...वाह! क्या बात है.
आप लाजबाब ब्लोगर भी हैं अब.
Dhanywad rakesh ji ...
कभी ख़्वाबों को तरसती मैं ...
कभी चाँद को लपकती मैं ...
कभी दामन को पकडती मैं ..
कभी काँटों से दिल बहलाती मैं ...
कभी जिन्दगी के थपेड़ों से खुद को बचाती मैं ..
कभी तपकर कुंदन बन चम् -चमाती मैं .....!
लाजबाब पंक्तियाँ .. बधाई
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