उसके और मेरे बींच वो क्या है जो हम दोनों को जोडती है ...
एक अद्रश्य डोर है जो मजबूती से हमे जकड़े हुए है ....
वो इसे प्यार नहीं कहता ---
पर यह मेरे प्यार का एहसास है---
मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ ---
मैं इस एहसास को क्या नाम दूँ ...
समझ नहीं पाती हूँ ...
वो कहते है न---- ' दिल को दिल से राह होती है---'
जब भी वो अचानक मेरे ख्यालो की खिड़की खोल कर झांकता है ...
तो मैं तन्मयता से उसे निहारती हूँ --
तब सोचती हूँ की यह क्या है ? जो हमे एक दुसरे से जोड़े हुए है --?
मैं इसे प्यार का नाम देती हूँ --
तब वो दूर खड़ा इसे 'इनकार' का नाम देकर मानो अपना पल्ला झाड लेता है --
क्यों वो इस 'लौ ' को पहचानता नहीं ----?
या पहचानता तो है पर मानता नहीं ..?
पर इतना जरुर है मेरे बढ़ते कदम उसके इनकार के मोहताज नहीं .......
12 टिप्पणियां:
आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 27/11/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका चर्चा मंच पर स्वागत है!
पर इतना जरुर है मेरे बढ़ते कदम उसके इनकार के मोहताज नहीं .......
बहुत खूब .... सुंदर भावभिव्यक्ति
अति सुन्दर कविता.....
कभी कभी ना में भी हाँ होती है.
बहुत ही सुन्दर रचना..
:-)
बहुत सुंदर रचना |
:) adrishya dor.. hame bhi dikh gayee:)
behtreen rachna abhivaykti....
वाह बहुत खूब ....मन के अहसास यूँ ही कायम रहे और आपकी खिलखिलाती हँसी भी
lagtaa hai naayika ko kisee maayaavee se pyaar ho gayaa hai. aisee koi dor hame to kshee dikhti nahi.
एक अनदेखी अदृश्य डोर जो बांधे रखती है सबको !!
बहुत खूबसूरत रचना है...
नीरज
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