कल की रात बहुत शौख बड़ी रोचक थी .....
आसमां था काला सितारों की बड़ी रौनक थी ..
खुली खिड़की से रौशनी कभी-कभी मुझ पर पड़ती थी ,
हवा के झौंके मेरे अंग को स्पर्श कर के छू जाते थे ..
नींद आँखों से कौसो दूर र्रर्रर थी ...
झांकता हुआ चाँद किसी की याद दिला रहा था ......
किसी की मदहोश आवाज मुझे बेसुध किये जा रही थी ..
वो कोई था जिसकी बांहों में मेरी जन्नत थी ..
वो मेरा खवाब! मेरा प्यार ! मेरा हमदम ! मेरा नसीब था ....
पर वो मुझसे लाखो मील दूर था ...
चाहकर भी मैं उसे छू नहीं पा रही थी ...
नींद आँखों से कौसो दूर र्रर्रर थी ...
वो मेरे साथ तो था ,पर मेरे पास न था ...
उसके होने का एहसास मन को सुकून दे रहा था ..
तन मेरी गिरफ्त से दूर किसी के आगोश में था ..
अनुभूति तो थी--- पर स्पर्श नहीं था ....
हसरते जवां थी और उमंगे बेकाबू थी ....
नींद आंखों से कौसो दूरररर थी .....
तभी कही से अचानक एक आवाज़ आई -----
"जागते रहो "
कोई पास न था ? कोई साथ न था ????
सिर्फ खामोशियाँ थी और मैं थी और मेरे एहसास !
9 टिप्पणियां:
kal ki raat ka ahsaas :)
waise aise ahsaas jindagi jeene ke liye kaafi hote hain...
behtareen!
हर अहसास ही तो साथ है :)
दूर होकर भी पास होने का एहसास और ज्यादा दर्द देता है.....
दिल जान कर भी कहाँ मानता है....
बहुत प्यारी कविता दर्शन जी..
सादर
अनु
बहुत खूबसूरत अहसास।
कोमल भावो की अभिवयक्ति......
वाह आपने तो खामोश रात की बातो को सुंदर शब्दो में बयां किया है । अकेलापन क्या होता है उसे कैसे महसूस करते हैं सब लिख दिया
वाह ... बेहतरीन
"अनुभूति तो थी--- पर स्पर्श नहीं था ...."
बहुत खूब
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
वो मेरे साथ तो था ,पर मेरे पास न था ...
उसके होने का एहसास मन को सुकून दे रहा था ..
तन मेरी गिरफ्त से दूर किसी के आगोश में था ..
अनुभूति तो थी--- पर स्पर्श नहीं था ....
हसरते जवां थी और उमंगे बेकाबू थी ....
नींद आंखों से कोसों दूऽऽरऽरऽर थी ....
वाह !
बहुत ख़ूब !
आदरणीया दर्शन कौर धनोय जी
सुंदर रचना के लिए साधुवाद !
♥ लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं ! ♥
साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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