मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

# चिता की आग #






तुझको अग्नि के हवाले कर के ....
मैं  जड़- सी हो गई हूँ .....
कभी अपनी छाती का लहू पिलाया था  मैने ..
तेरी वो नटखट आँखें ..
वो चेहरे का भोलापन .
 वो प्यारी -सी मुस्कान ?  
वो तोतली जुबान ----
अब खामोश है ...
ठंडा- पन  लिए ..सर्द ...

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 मेरा सफ़ेद पडता मुंह  
आँखों से बहती अश्रु धारा 
 बिदा की अंतिम घडी 
तेरे नाम की अंतिम अरदास ...!

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मैं स्तब्ध ! आवाक ! तुझे जाते हुए देखती रही ....
होठ  कांपकपाये ..शरीर थरथराया ..
दिमांग शून्य ...???

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खप्पचियों से बंधा, सफ़ेद कफ़न ....
ये लिबास तो मैने कभी चाहा नहीं था ?
फिर क्यों आज तेरे लिए यही जोड़ा मुकरर हो गया ?

 "राम नाम सत्य  हैं "

अचानक ! इस कर्कश ध्वनी से मेरे कान बजने लगे ..
"अरे , कोई रोको उसे "रॊ- ऒ- ओ- को 
  "यह उम्र है जाने की ....?"

अभी उसने देखा ही किया है ..?
अभी तो उसके दूध के दांत भी नहीं टूटे ..?
और जालिमो ने उसके अंगो के टुकड़े -टुकड़े कर दिए ...?
अभी तो हाथो में मेंहदी भी नहीं लगी ...?
और राक्षसों ने उसे चिता पे लिटा दिया ...?

" कोई रोको उसे ..कोई रोको ..यह उम्र है जाने की ..."






   

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (बिटिया देश को जगाकर सो गई) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!

Shikha Kaushik ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

amanvaishnavi ने कहा…

इतनी सुंदर रचना ! पत्थर दिल वाले भी पिघल जाए! काश हमारे समाज में भी पत्थर दिल आदमी रहता ! अफ़सोस सिर्फ पत्थर ही है!

Ritesh Gupta ने कहा…

samvedna se parpurn marmik abhivyakt karti sundar rachna....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

दिल आहत है।
वर्तमान परिस्थितयां पुनर्विचार मांगती हैं।

vandan gupta ने कहा…

hradayvidarak satya

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

uff ye umra hai uske jaane ki :(
jo hua bahut galat aur bahut sharmsaar karne wala..:(

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर रचना !

सदा ने कहा…

मन व्‍यथित है ...

SANDEEP PANWAR ने कहा…

देश का हाल।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…





लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं !

साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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