मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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सोमवार, 28 जनवरी 2013

लागी छूटे न



लागी छूटे न 






लागी छूटे न अब तो सनम !
  चाहे जाए जिया ,तेरी कसम !!



पर मै जानती हूँ  तेरे दिल में मै नही हूँ    ?
मेरा प्यार , मेरा अहसास !सब खोखला है 
तू मुझसे प्यार नही करता  ?
 मैं  तेरी आरजू इन आँखों में लिए भटकती रहूंगी 
तुझ से मिलने को अब मैं तरसती रहूंगी 

वो खुशनुमा दिन !
वो खुशनुमा राते !

जब हम मिलकर प्यार किया करते थे 
  वो कदम्ब के पेड़ की छाया....
वो रजनीगन्धा के फ़ूल ...
जूही की मदमस्त खुशबू से सराबोर 
वह तेरे दिल का आँगन ........
जहां तेरी मुस्कुराती तस्वीर मेरे मन को हर्षाती थी !
जहां कभी मैं निशब्द चली आती थी ,
तेरे दिल के दरवाजो को झंकृत कर के 
न शोर !
न कोई कोलाहल !
   
खामोशी से लरज़ते वो तेरे अशआर  
मुझे अंदर तक रौंद गए है....


अब वो बात कहाँ .....

तेरी विरह अग्नि में मै, जल रही हूँ ज़ालिम !
बूंद -बूंद पिघल रही हूँ ज़ालिम !  
इस तपिश से मुझे बचा ले ज़ालिम !

कैसे तुझे  चाहू !
कैसे तुझे पाऊ !
कैसे तुझे देखू !

इस दिल की लगी से मुझे बचा ले यारा !
           इस पीड़ा से मुक्ति दिला दे यारा !!


" दूर है फिर भी दिल के करीब निशाना है तेरा "

5 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

विरह की आग में जलकर मिलन की बेला बहुत ही सुखद होती है,बेहतरीन रचना।

Unknown ने कहा…

खूबसूरत अहसास .. बधाई

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

बीटिंग द रिट्रीट ऑन ब्लॉग बुलेटिन आज दिल्ली के विजय चौक पर हुये 'बीटिंग द रिट्रीट' के साथ ही इस साल के गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो गया ! आज की 'बीटिंग द रिट्रीट' ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Unknown ने कहा…

Bahut khoobsurat ehsaas....
http://ehsaasmere.blogspot.in/

Ritesh Gupta ने कहा…

दर्शन जी....
बहुत बढ़िया अहसास के साथ बहुत शी सुन्दर रचना......