"जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही--!
बीच मैं यह 'तुम' कहाँ से मिल गए राही --!!"
हम दोनों नदी के दो किनारों की तरह हैं --
जो आपस मैं कभी नही मिलते --?
दूर~~ क्षितिज मैं भी नहीं--?
जहां जमीन- आसमान एक दिखते हैं --
हमे यू ही अलग -अलग चलना हैं --
पुल का निर्माण ही,
हमारे मिलन की कसौठी हैं !
जो असम्भव हैं ---?
क्योकि जीवन वो उफनती नदी हें
जिस पर सेतु बनना ना मुमकिन हैं
आधा पहर जिन्दगी का गुजर चूका है --
कुछ बाकी हैं --
वो भी गुजर ही जाएगा --???
फिर क्यों महज चंद दिनों के लिए यह रुसवाई --
हमे यू ही सफ़र तैय करना हैं --
अलग -अलग --जुदा -जुदा,
वैसे भी दोनों किनारों मैं कितनी असमानता हैं --
अलग प्रकृति !
अलग शैली !
अलग ख्वाहिशे हैं --!
इस तरफ --
प्यार हैं --चाहत हैं,
रंगीन सपने हैं --
मिलन की अधूरी ख्वाहिश हैं --
मर मिटने की दलील हैं --???
उस तरफ --
सिर्फ एहसास हैं --
जिन्दा या मुर्दा --
पता नही --?
पीड़ा देता हैं यह एहसास --!
चुभन होती हैं इससे -- !!
दर्द होता हैं --!!!
यह मृग-तृष्णा मुझे कब तक छ्लेगी --???
सिहर उठती हूँ---
यह सोच कर
जो बसा हैं एक अनजाने नगर में --
कही उसके दिल मैं ' कुछ ' नहीं हुआ तो ?
कैसे रह पाउंगी --उसको खोकर ?
कैसे सह पाउंगी --उसका वियोग ?
यह मृत्यु -तुल्य बिछोह ???
मुझे अंदर तक तोड़ जाएगा ----!
"तो छोड़ दूँ"
ज़ेहन में उभरा एक सवाल ?
पर मन कहा मानने वाला हैं --
मन तो चंचल हैं !
समर्पित हैं !
उस अनजानी चाह पर,
यंकी हैं,उस अनजाने आकार पर .... जो बसा हैं एक अनजाने नगर में --
दिल जिसे ढूंढता हैं एक अनजानी डगर पें--
तो चलने दूँ ---
इस सफर को -- इस सिलसिले को ..
निरंतर --यु- ही --अलग -अलग --
कम से कम साथ तो हैं --?
अलग -अलग ही सही ???
जिन्दगी से यही गिला हैं मुझे !
तू बहुत देर से मिला हैं मुझे !
2 टिप्पणियां:
जिंदगी ....एक पहेली है | बहुत खूब |
बहुत बढ़िया रचना.....आभार
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