★अवचेतन-मन★
"मैंने वो ख़त मेज की दराज़ में बंद कर दिए है ____ !
कभी फुरसत मिली तो फिर से पढूंगी,
तब मेरी आँखें डबडबा जायेगी,
ओर सुनी आंखों से गिरती बूंदे कराह उठेगी,
धुंधले शब्द पुकारेंगे ...
क्या उस समय तुम मेरी आवाज सुनकर आ जाओगे ???
तुम्हारी धुंधली -सी आकृति,
मेरे मानस-पटल पर आज भी अंकित है----!
तुम वैसे ही हो ना ???
दुबले-पतले-मरियल से,
ढीले- ढाले -से लिबास में,
अपने घुंघराले बालों को झटका देते हुये!
ये तुम ही हो ना 🤔
जरा नही बदले😜😜
उस दिन जब तुमने मेरे सम्मुख,
अपने गीले बालों को झटक दिया था !
तो मैं चौक पड़ी थी।
ओर तुम खिलखिला दिये थे ।
तुम्हारी वो मासूम हंसी से,
सारी कायनात झूमने लगी थी,
फिजायें चहकने लगी थी,
मानो सावन की झड़ी लग गई हो,
तब, सावन तो नही था,
पर चैत्र का महीना भी तो नही था!
हा, पहाड़ों पर ठंडक जरुर थी।
तुम्हें याद है ----
जब हम रात को खाना खाकर लौट रहे थे,
तुम मुझे प्यार से निहार रहे थे
ओर मैं___
मैं शर्म से दोहरी हुई जा रही थी ।
वो पल ! आज सिमट गया है,
कहीं खो गया हैं...
इन कागजों को रंग गया है ।
ये काले स्याह अक्षर,
आज मेरा मजाक उड़ा रहे है----
तुमको मुझसे दूर कर के,
मेरी खिल्ली उड़ा रहे है ।
ऐ सुनो ! क्या तुम लौटकर आओगे?😍
वहां से जहां से कोई वापस नहीं आता😢
आ जाओ ना !!!!😎
#दर्शन के 💝दिल से
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