अमृतसर यात्रा :--
भाग 14
हरिद्वार भाग 3
5 जून 2019
28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम में मेरी भाभी भी आ गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से ज्वाला माता,चिंतपूर्णी माता आनन्दपुर साहेब ओर मनिकरण के बाद हमारा काफिला हरिद्वार में कल से आ गया..कल हरिद्वार घूम लिया...
अब आगे.....
आज हमको ऋषिकेश जाना था तो सुबह जल्दी उठकर दोनों तैयार हो गई फिर मैं शान से उठकर तैयार हुई ,इतने में रुकमा भारत भवन में बने मन्दिरों का एक चक्कर लगा आई,उसने आते ही घोषणा कर दी कि शाम को जल्दी आकर सारे मन्दिर-दर्शन करेंगे,बहुत खूबसूरत मन्दिर बने हैं ख़ेर, ये पुजारन टाइप की हैं इसके साथ तो हमको भी थोड़ी भक्ति करने का मौका मिल जाता हैं थोड़ा पुण्य हमारे हिस्से में भी आ जाता हैं😜
तो हम तीनों राजा बाबू बने सुबह 7 बजे धर्मशाला से बाहर निकले,अब तक बाहर की कोई भी दुकान खुली हुई नहीं थी और हमको चाय पीने की जबरिया हुक लगी पड़ी थी तो मैंने पास सोए हुए होटल के एक नोकर को उठाया कि---"भाई, कब तक सोओगे, उठो ग्राहक आये है चाय बना दो"।
लेकिन उस बंदे के जूं तक नही रेंगी ,वो दूसरी तरफ अपना मुंह मोड़कर कर फिर सो गया..मुझे मायूसी हाथ लगी,मैं अपना सा मुंह लेकर पास ही पड़ी कुर्सियों पर बैठ गई ....इतने में भाभी ने देखा कि आगे की दुकान पर कुछ हलचल दिख रही हैं ...मैं तुरंत दौड़ी...उस दुकान पर कुछ लोग खड़े बातें कर रहे थे ओर उनकी चाय उबल रही थी तो मैंने भी फटाफट गंगा में अपने हाथ धो लिए यानी कि अपना ऑर्डर पेश कर दिया और कुछ ही मिनटों में हम चाय और टोंस खा रहे थे।
चाय पीकर शरीर में थोड़ी जान आई अब हम गुलफाम बने सड़क पर बस रोक रहे थे ...एक बस में 3 सीट खाली देख हम तुरंत उसमें बैठ गए।
कुछ ही देर में हमारी बस ऋषिकेश के बस स्टॉप पर रुकी ओर हम उतरकर आगे को चल दिये ... कुछ आगे चलकर एक ऑटो में बैठ गए।बाहर गर्मी बहुत थी सुबह 9 बजे भी धूप गर्मी के गोले फैक रही थी हमारा सर गोलगप्पे के पानी की तरह तीखा हो गया था...आंखों पर धूप का चश्मा ओर सर पर ओढ़नी लपेटे हम ऑटो से उतरकर उधर ही जा रहे थे जिधर सबलोग जा रहे थे...आगे गंगा नदी का घाट था जहां कई नावे खड़ी हुई थी...सब लोग एक खाली बड़ी सी नाव की तरफ चल दिये तो हम भी उनके पीछे हो लिए क्योकि हमको गंगानदी पार कर के लक्ष्मण झूला तक जाना था.. 10₹ का टिकिट कटवाकर हम नाव में बैठ गए...गंगा में लबालब पानी भरा हुआ था.... ऊपर से ठंडी हवा चल रही थी..गर्मी को जैसे सारी हवा ने सोख लिया हो इसलिए वहां ठंडक भी थी। नाव में यात्रा करने का अपना ही मजा होता हैं...बहुत शुकुन मिलता हैं...ऐसा लगता हैं आगे बढ़ते रहो...पर बहुत जल्दी ही किनारा आ गया और हमारी इस छोटी सी यात्रा को ब्रेक लग गया।
हम भी सबके साथ नदी के उस तरफ उतर पड़े...इस तरफ पुराना ऋषिकेश बसा हुआ हैं। यहां काफी भीड़भाड़ थी...छोटी -छोटी गलियों को पार करके हम थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि एक रेस्तरां पर नजर गई चोटीवाला नाम का होटल था,नाम अजीब था वही एक चोटी वाले का स्टेच्यू भी बना था ☺️ पहले तो हम खूब हंसे फिर हमने सोचा आज नाश्ता यही करते हैं लेकिन वो 11 बजे खुलने वाला था ओर अभी 10 भी नही बजे थे तो हम आगे बढ़ गए... इतने में एक जगह पर 10-15 लोगों का हुजूम खड़ा देखा वो एक दुकान का शटर खुलने का इंतजार कर रहे थे...मेरी निगाह जब बोर्ड पर गई तो में उछल पड़ी😳 नाम लिखा था ---"गीताभवन!"
अरे, मैंने फ़ौरन सबको रोका,मैं इसी को तो ढूंढ रही थी, मैंने मेरे ग्रुप में इतनी बार इस दुकान का नाम सुना है और यहां के खाने की तारीफ सुनी है कि अब तो मुझे कंठस्थ याद हो गया हैं😄
लेकिन अभी गीताभवन खुला नही था इसलिए भीड़ के साथ हम भी इंतजार करते रहे...थोड़ी देर बाद जब दरवाजा खुला तो सब ऐसे घुसे मानो फोकट का भंडारा लगा हुआ हो।😜
अंदर घुसकर हमने भी एक जगह आराम वाली कुर्सियां खोजकर अपना आसन जमा लिया...
इतने में रुकमा ने काउंटर पर धावा बोल दिया और फटाफट आगे लाईन में लगकर हमारे लिए 3 प्लेट पूरी-भाजी ओर जलेबी का आर्डर दे दिया क्योंकि सभी को तेज भूख लग रही थी...बढिया पूरी आलू की सब्जी और जलेबी का आनन्द लिया गया... मुझे हरिद्वार ओर ऋषिकेश में कचौरी सिर्फ यही नजर आई तो अपने आपको रोक नही पाई ☺️ इसलिये सबने एक -एक कचौरी पर भी हाथ साफ किया और रास्ते के लिए आधा किलो बेसन की बर्फी भी बंधवाई ।
चाय पीकर तसल्ली होने तक हम वही बैठे रहे फिर उठकर आगे बढ़ गए अब हमारा अगला डेस्टिनेशन था नीलकंठ महादेव जाना। लेकिन हम उधर न जा सके😢
तो इंतजार करे अगले एपिसोड का...
चोटीवाला
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