★ पेड़ की दास्तां★
मैं एक बूढ़ा पेड़ हूँ
मैं अब बूढा हो गया हूँ!
मुझमें अब वो साहस नही
तूफान से लड़ने की ताकत नहीं..
मेरे पैर जमीन से उखड़ने लगे हैं..
मुझमें अब फूल नही आते,
फल का तो सवाल ही नही हैं...
मेरी सारी पत्तियां झर चुकी हैं,
यदाकदा कोई पीली पत्ती मेरा मजाक उड़ाती हुई हवा में विलीन हो जाती हैं!
अब मुझमें नई कपोलों का सृजन नही होता ।
पतझर ही मेरा बसेरा हैं।
क्योकिं अब में बूढ़ा हो गया हूँ
मेरे शरीर की छाल अब खुरदरी हो गई हैं,
कुछ कुछ काली भी पड़ गई हैं!
मुझमें अब वो रौनक नही रही
अब मैं हवा से भी डरने लगा हूँ!!
तेज हवा से कांपने लगता हूँ...
कहीं कोई मजबूत झोंका मेरी शाखों को मुझसे जुदा न कर दें!
कोई बवंडर मेरे वजूद को ही न उखाड़ फैके;
बस इसी डर के अंधकार में हमेशा खोया रहता हूँ!
इसी आशंका से डरता हूँ!
बारिश की नन्ही बूंदे मुझमें अब कोई उमंग नही ला पाती,
सावन के गीत अब कोई गौरी मेरी बाहों में आकर नही गाती!
अब कोई हसीना मेरे वक्ष पर झूला नही झूलती!
कोई रोमांटिक बातें मेरी जड़ में बैठकर नहीं होती!
क्योंकि अब मेरे चारों तरफ छांव नहीं होती!
कोई चिड़ियां मेरी टहनी पर अपना घोंसला नहीं बनाती!
क्योंकि अब मैं बूढा हो गया हूँ।
अब सावन को देख मेरी पत्तियां खुशी से झूमने नही लगती!
मेरा रोम रोम पुलकित नही होता!
मेरे गेसू हवा में नही उड़ते!
मेरी आँखें खुशी से नही नाचती !
मेरा मन मयूर बन नही डोलता,
क्यों???
क्योंकि अब मैं बूढ़ा हो गया हूं ---
अपनी मांद में ही पड़ा रहता हूँ!
लेकिन मैं तब प्रसन्न हो जाता हूँ
जब कोई नन्ही टहनी मेरी कोख से अंगड़ाई लेती हुई निकलती हैं...
तब मैं पुनः जीवित हो उठता हूं!
अपना पुराना चोला फैक एक नए जीवन की तलाश में फिर से अपना सर आसमान पर उठाकर दूर देखता हूँ, पथिक को रिझाने के लिए------
"ऐ पथिक,अब मेरे जीवन में फिर से बहार आएगी और मेरी नई पत्तियों की छांव में तुम आराम कर सकोगें!"
अब मैं नई कपोलों के इंतजार में हूँ
नए फूलों के इंतजार में हूँ
कोयल की कुक सुनने को बेकरार हूँ!
मैं फिर से जवां हो जाऊंगा !
तब मुझे कहाँ याद रहेगा कि,
मैं एक बूढ़ा पेड़ हूं😀
1 टिप्पणी:
समय बदलता रहता है समय के साथ उम्र बढ़ती है तो बुढ़ापा आता है लेकिन मन में उत्साह बना रहे तो उसका बहुत अहसास नहीं होता
इसलिए तन मन हरा भरा हो तो बुढ़ापा पास आने से डरता है
बहुत अच्छी प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें