हेमकुंड वासी,दुष्ट दमन सर्वस्व दानी
श्री गुरु गोविन्दसिंह जी को समर्पित---!
(तपस्या में लींन गुरु गोविन्द सिंह साहेब )
गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपनी रचना 'विचित्र नाटक' में हेमकुंड साहेब का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है --उन्होंने यह बात खुद बताई है :---
"अब मै अपनी कथा बखानो ||
तप साधत जिह बिधि मुहि आनो ||
हेमकुंड परबत है जहां ||
सपत् श्रिंग सोभित है तहां ||१||
सपत् श्रिंग तिह नामु कहावा ||
पांडूराज जह जोगु कमावा ||
तह हम अधिक तपसिया साधी ||
महांकाल कालका अराधि ||२||
इह विधि करत तपसिया भयो ||
देव ते ऐक रूप हैव गयो ||
तात मात मुर अलख अराधा ||
बहु बिधि जोग साधना साधा ||३||
तिन जो करी अलख की सेवा ||
ता ते भऐ प्रसन्नी गुरुदेव ||
तिन प्रभ जब आइस मुहि दिया ||
तब हम जनम कलू महि लीया " ||४||
(अर्थात :- अब मै अपने पूर्व-जनम का वर्णन करता हु--जहां मैने तपस्या कि थी वहां एक हेम (बर्फ ) कुंड (तालाब ) है --सात् ऊँची -ऊँची चोटिया है उस स्थान को सप्तश्रृंगी कहते है --वहां पांड्वो के राजा ने भी तप किया था --उस स्थान पर मैने कड़ी तपस्या की और प्रभु की आराधना की --उसी प्रभु अकाल -पूरख की आज्ञा से मैने इस कलयुग में जनम लिया है--अकाल पुरख की आज्ञा है की मै सत्- मार्ग पर चलू और सच्चे धर्म का प्रचार करू--और दुष्टो का नाश करू ---मै इस जगत में भूले हुए लोगो को सत् का मार्ग दिखलाने आया हु ---)
13सितम्बर 2008
रात को एक हैरत अंगेज वाकिया हुआ--हुआ यू की हमारे जत्थेदार चड्डा सा. की पत्नी नीशा जो एक मुस्लिम महिला है पर उन्होंने सिक्ख -धर्म अपना लिया है ;वह पैदल ही सफर कर रही थी --उनकी कोई मन्नत थी जो पूरी हो गई थी इसलिए वो गोविन्द -घाट से गोविन्द -धाम पैदल ही चल रही थी --उनसे भी ज्यादा चला नही जाता हे --हुआ यू की --वो धीरे -धीरे चल रही थी --रुक रुक कर बड़ी मुश्किल से रास्ता तेय हो रहा था --ज्यादातर लोग २ या ३बजे तक ऊपर चढ़ जाते है क्योकि उसके बाद अँधेरा घिर आता है --पहाडो पर दिन जल्दी ढलता है --फिर एक बजे के बाद बारिश भी हो गई --जब तक हम पहुँच भी गए थे --वो बड़ी मुश्किल से ऊपर चढ़ रही थी --मार्ग में कोई भी नजर नही आ रहा था --उसे बुखार भी चढ़ गया --ठंडी भी बड गई थी --एक चट्टान पर वो थककर बैठ गई --रोने लगी --अचानक गोविन्द -घाम की तरफ से एक आदमी चलता हुआ आया -काफी लम्बा -चोड़ा आदमी था --उसने नीशा को एक टेबलेट दी पानी दिया -उसके सर पर हाथ रक्खा और बोला --'पुतर जल्दी चढ ,देर हो गई है '
इतना कह कर वो तेज -तेज कदम से ऊपर चढ़ गए --वो देखती रही --अचानक उसमे जोश आ गया और वो तेजी से ऊपर चढने लगी --कुछ दूर चलने के बाद चड्डा सा. दिखाई दिए जो उसी को ढूंढते हुए वापस आ रहे थे साथ में घोड़े भी लाए थे --जब उसने वो बात चड्डा सा. को बताई तो उन्होंने कहा की मुझे तो कोई भी आदमी नही मिला सारा रास्ता सुनसान पड़ा है; आश्चर्य हे की वो आदमी कोन था--?
पर मुझे पूरा विशवास है की वो और कोई नही हाजरा हुजुर गुरु गोविन्द सिंह जी खुद उसकी मदद करने आए थे --जब भी कोई वहां मुसीबत में होता है तो वो उसकी मदद करने आ ही जाते है --ऐसा मेने सुना था पर आज देख भी लिया --
रात के १० बजे जब नीशा को लाया गया तो उसका सारा बदन ठंडा था --वो होश में तो थी पर ठंड से ठिठुर रही थी --रात को ही डॉ. को बुलवाकर उसे इंजेक्सन लगाए और नींद की गोली खिलाई -- फिर हम सोए --
रात को देर से नींद आई--पर सुबह ६ बजे हम उठ भी गए --आज होटल वाला हमे एक बाल्टी गरम पानी दे गया--एक बाल्टी का 30 रु. --खेर नहाना हो गया -- इतनी दूर हम जिसके दर्शन करने आए है उसके आगे तो ये नगण्य है --हम फटाफट तैयार होकर नीचे आ गए-आज नाश्ता नही करना है --दर्शन करने के बाद ही कुछ खाएगे--ऐसा सब ने कहा है --
( रास्ते में पड़ी बर्फ )
(ऊपर चढने वाला रास्ता )
(खूब सूरत द्रश्य घोड़े से लिया चित्र )
मोसम दिलकश हो गया है --धुप खिल चुकी है --पर यहाँ का मोसम क्षण -क्षण बदलता रहता है --15000 फुट ऊँचाई वाले इस पर्वत पर सर्दियों में वर्षा नही होती केवल हिमपात होता है --कई बार तो ऐसा लगता है की मेघ नीचे ही आकर बैठ गए है --यहाँ 40 फुट से अधिक बर्फ जमती है यह दुनिया का सबसे ऊँचा मंदिर गिना जाता है --वेसे गुरूजी का तपो स्थान और भी ऊपर गुफा में है पर वहां जाने नहीं दिया जाता है --लेकिन कुछ नोजवान वहाँ भी चले जाते है --
(दसो गुरुओ के साथ श्री हेमकुंड साहेब )
श्री हेमकुंड साहेब का इतिहास:--
हेमकुंड साहेब के बारे में खुद गुरु गोविन्द सिंह जी ने दसम ग्रन्थ के विचित्र -नाटक के छटवे अध्याय में लिखा है :-
उनकी लिखी बातो को वाहेगुरु का आदेश मान कर भाई वीरसिंह जी
अमृतसर वाले ने इस तपो भूमि की खोज करवाने का प्रयत्न किया --उन्होंने कई पहाड़ी राज्यों पर खोजा पर सफलता नही मिली --
सन १९३२ में पंजाब के तारा सिंह जी नरोत्तम बदरीनाथ की यात्रा पर आए थे उनके साथ कुछ लोग और थे --वापसी में वो लोग इस पहाड़ी पर चढने लगे तो निरोत्तम जी ने पूछा की--'यहाँ क्यों जा रहे हो 'तब उन्हेंने कहा की 'हम लोकपाल की यात्रा हेतु जा रहे है !' तारासिंह जी भी शामिल हो गए --
ऊपर जाकर उन्होंने देखा की यह स्थान तो हु -ब-हु विचित्र नाटक से मिलता है --वहा की सम्पूर्ण जानकारी लेकर वो भाई वीरसिंह जी के पास अमृतसर आए और उन्हें बतलाया --
भाई वीरसिंह जी ने संत सोहन सिंह जी और हवलदार मोदनसिंह जी को खोज करने भेजा --दोनों गाँव भंडार पहुंचे --वहां से इस ऐतिहासिक पवित्र जगह का दर्शन किया --सरोवर में स्नान किया -और वापस भंडार गाँव आ गए --इस तरह हेमकुंड साहेब की खोज हुई--तीर्थ यात्री इस पर्वत की प्राकृतिक सुन्दरता का अनमोल द्रश्य देखने आते है --घाटी पार करके जब मैदान में आते है तो मुह से 'वाह -वाह' का शब्द निकल पड़ता है --सरोवर इतना दिलकश है की आप सारा दिन वहां बैठ सकते हो --यहाँ का मोसम हमेशा बदलता रहता है --कभी धुप निकल जाती है तो कभी बादलो से घुंघ जम जाती है --यहा ४० फुट से अधिक बर्फ जमती है जो बहुत कठोर होती है --इस सरोवर से एक नदी भी निकलती है जिसे 'हिम- गगा कहते है --
(रास्ते में मिला एक दुर्लभ ब्रह्म कमल )
हम सुबह ६बजे निकले थे और ९बजे तक हेमकुंड साहेब भी पहुँच गए --केसे पहुंचे हम ही जानते है --क्योकि आगे का रास्ता इतना 'खड़ा' है की पसीने ला दिए --आँखों से आंसू बह रहे थे की जिन्दा भी जा सकुंगी या नही क्योकि एक तो ७५ किलो वजन उस पर घोड़े बेचारे इतना वजन उठाकर ऊपर खड़ी चढाई चढ़ रहे है --नाक से गरम सांसे निकल रही है --इन मासूमो पर मुझे बहुत दया आई --वेसे भी जानवरों से मुझे बेहद लगाव है --मेने उसका नाम राजा रख दिया --जब प्यार से राजा कहकर हाथ फेरती तो दुने उत्साह से चलने लगता--आखिर जेसे तेसे मै पहुँच ही गई:--
(हेमकुंड साहेब का मनोरम द्रश्य )
जब हेमकुंड साहेब के द्वार खुलते हे तो संगत झंडा साहेब की सेवा करती है
(चित्र = गूगल )
( बैंड-बाजे के साथ महाराज की सवारी आती है और प्रकाश होता है )
(चित्र = गूगल )
(हेमकुंड साहेब का प्रवेश द्वार )
(हेमकुंड साहेब बदलो से लिपटा हुआ )
चारो और धुंध हो रही थी --स्पष्ट कुछ दिखाई नहीं दे रहा था --सुबह का समय है, यह सोचकर हम गुरु द्वारे के नीचे बने स्नानागार (बाथरूम )में नहाने चल दिए --ठंडी के मारे मेरा वेसे ही बुरा हाल था उस पर सरोवर के पानी ने कयामत ढाह दी-एकदम बर्फ का पानी !कही लकवा न मार जाए मै थोडा डर गई --क्योकि पानी के ऊपर बर्फ भी तेर रही थी --कई बुजुर्ग महिलाए भी नहा रही थी बोली -'बीबी डर न वाहेगुरु का नाम ले और डुबकी मार ले सब फते होगी '! मेरा डर थोडा कम हुआ फिर भी मैने रेखा से कहा तू पहले नहा ले मै बाद में नहाउगी ;रेखा बेचारी वेसे भी दमे की बिमारी से तंग थी फिर भी वो कपडे समेत डुबकी लगा आई --अब मेरी बारी थी सो ,कूद पड़ी मैदाने जंग में--एक बाल्टी डाली ही थी की सारा शरीर गर्म हो गया -न ठंडी न बर्फ !आराम से सबके नाम की एक -एक बाल्टी डालती रही --वाहेगुरु ने सब खेर कर दी --
स्नान कर हम पहले माले पर बने गुरूद्वारेसाहेब में गए --१० बजे की अरदास में हाजिरी लगानी थी --यहाँ हर आधे घंटे में अरदास होती है --ताकि कोई ज्यादा देर यहाँ रुके नही क्योकि यहाँ आक्सीजन की कमी से प्राब्लम हो सकती है --अंदर एकदम गर्मी थी और नीचे कंवल बिछे थे --ओड़ने के लिए भी कंवल पड़े थे यदि ठंडी लगे तो ओड़ भी सकते हो -- सुबह से भूखे थे इसलिए दोना भर कड़ा प्रसाद गटक गई --कुछ पेट की ज्वाला शांत हुई --यहाँ लंगर नहीं होता है सिर्फ चाय बनती है और मीठी खिचड़ी भी ! पानी भी हमको गर्म मिला पीने को,बाहर मोसम साफ था --हमने चाय पी--लोग सेवा कर रहे थे --सूखे मेवे बाँट रहे थे --हमने भी नंबर लगा लिया --पास में ही लोकपाल लक्षमण जी का मन्दिर है ,वहाँ चल दिए --
( गुरूद्वारे का अंदर का द्रश्य )
(जेंट्स बाथरूम यानी नहाने का स्थान )
( रेखा और मै बाहर का नजारा देखते हुए )
(ठंडी बड़ी है कभी भी बारिश हो सकती है )
(लक्षमण मन्दिर )
(अन्दर से लक्षमण मन्दिर )
गुरुद्वारा हेमकुंड साहेब १९६७ मे प्रारम्भ हुआ था --२० वर्ष में कम्प्लीट हुआ गुरूद्वारे की कमिटी ने ही लक्ष्मण मंदिर का भी निर्माण करवाया है --यहाँ तक आने का मार्ग नही था लोग पत्थर और झाडियो को पकड़कर चट्टाने लांधकर ऊपर चडते थे(कितना मुश्किल होगा ) यह मार्ग १९४३ से शुरू हुआ है और हर साल बनता रहता है --पत्थरों के गिरने से काफी क्षति होती है--पहले लोग ऋषिकेश तक ही बस से आते थे फिरआगे का पैदल रास्ता था -सड़क मार्ग बाद में बना है ---
यहाँ सप्तश्रंगी पर्वत की सात चोटियाँ है जो सप्तऋषियो के रूप में विराजमान है और कहते है की तपस्या में लींन है--यहाँ गुरु नानक देव जी ने भी तपस्या की है --ऐसा इतिहासकार कहते है -- लेकिन मै सतगुरु का कोटि -कोटि धन्यवाद करती हु -जिसकी क्रपा से मैने पूर्व जन्म के कलगीधर के तपोस्थान की यात्रा की-- शायद मेने भी कोई पुन्य काम किया था जिसकी बदोलत मुझे कुछ दिन का ही सही उनका सानिन्य प्राप्त हुआ --और दर्शन का सोभाग्य मिला --आज मेरा नाम सार्थक हुआ है |
यहां कई दुर्लभ सुगन्धित जड़ी -बूटीया पाई जाती है --इन के पत्ते पीले नही होते और न ही सूखते है --इनकी खुशबु यहाँ व्याप्त रहती है --
अचानक मुझे साँस लेने मै परेशानी होने लगी --शायद भूखे पेट इतना हलवा खाया था या सचमुच वहाँ आक्सीजन की कमी थी, पता नहीं --
पास ही गुरूद्वारे का क्लिनिक था -मै अंदर गई अंदर एक जवान डॉ बैठा था उसने कहा --' तुसी नीचे उतर जाओ आंटी जी - सब चंगा होगा' मेरा ब्लड प्रेशर चेक किया और मुझे दवा भी दी --एक खुराक तो मेने वही खा ली --अब समस्या यह थी की मै नीचे केसे उतरु --नीचे उतरना बड़ा जोखिम भरा लगा --कमर मै दर्द हो रहा था --घोड़े पर पीछे झुक कर बैठना पडेगा जो मुझ से नही हो पा रहा था --मेरी हालत ख़राब हो रही थी --रेखा भी परेशां --हमारी टीम का कोई सदस्य नजर नही आ रहा था --सब नीचे उतर गए थे --
मेने तो आन्नद साहिब का पाठ करना शुरू कर दिया--जिसे मै अक्सर करती रहती हु --पर यहाँ मेने थोडा ज्यादा ही किया है --थोड़ी देर बाद मैने देखा की एक मरियल -सा ठिगना नेपाली आदमी हमारे पास आया उसके पास टोकरी थी जिसमे वो बच्चो को बिठाता है- बोला --' मेडम जी मेरे साथ चलो,मै आपको नीचे उतार दूंगा ' मै कभी उसको कभी अपने आप को देख रही थी --वो ४० किलो भी नही ;मै डबल!केसे मेरा वजन उठाएगा ! गिरा दिया तो ? हड्डियां भी समेटना मुश्किल हो जाएगा --
पर वो पुरे इत्मीनान से मुझे देख रहा था --मेने हां कर दी -फिर घोड़े वाला भी बोला की आपसे भी ज्यादा वजनी लोगो को ये उठा लेता है आप परेशान न होवे--रेखा ने पूछा -' कितने पेसे लोगे ,बोला जो इच्छा हो दे देना वेसे मै १ हजार लेता हु आपसे कम ले लूँगा '---मैने रेखा से कहा यार दे दे जान है तो जहांन है--' आखिर मै ५०० रु. पर वो मान गया ..मैने सच्चे पातशाह को धन्यवाद दिया हमेशा वो मेरे कोल रहते ही है --आप भी इस तमाशे को देखे---(हंसना मना है )
( बच्चे की जान लेगी क्या ! )
टोकरी मै बड़ा मज़ा आया --चुपचाप आँखे बंद किए मै बैठी रही --मन ही मन पाठ करती रही --जेसे ही एक पहाड़ी उतरी सांसे भी नियमित चलने लगी --रेखा और घोडा साथ साथ चल रहे थे --यह फोटू घोड़े वाले ने ही खीचा है --नीचे उतरने वाले मुझे देख मुसकुरा रहे है -- नीचे आकर बड़ी कोफ़्त हो रही है --क्योकि धुप तेज है स्किन जल रही है और टोकरी मै तो सीधी सूरज की किरणे आ रही है--ऊपर कितना अच्छा माहोल था पर कहते है न पापी इन्सान की स्वर्ग में क्या जरूरत ! पर मेरे पूर्व जन्म के फल थे या इस जन्म के पुन्य मुझे इस कठिन यात्रा का सोभाग्य मिला --
२-३ जगह टोकरी वाले ने मुझे उतरा चाय पी फिर चल दिए --नींद आ रही थी शायद डॉ ने मुझे नींद की गोली दी थी --
सकुशल नीचे होटल में लाकर उसने मुझे छोड़ दिया --इस तरह मेरी हेमकुंड -यात्रा की प्यास खत्म हुई --
आगे की यात्रा बाकी है ---मिलते है बदरी विशाल में --
जारी -
32 टिप्पणियां:
आपकी पोस्ट पढकर मन कर रहा है इस बार मैं भी श्री हेमकुंड साहब के दर्शन कर ही आऊं।
तस्वीरों के लिये आभार
इस बार पोस्ट कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है जी
वाकई कमाल का नेपाली है ये तो और आप भी बडे आराम से बैठी हैं:)
प्रणाम
दर्शंन जी आपने तो चित्रों और अपने सुन्दर वर्णन से ऐसे दर्शन करा दिए है 'हेमकुंड साहेब' की मन मष्तिक पवित्र और प्रसन्न हो गएँ हैं.बहुत बहुत आभार आपका .आपकी होली की कविता से प्रेरणा पाकर प्रति-टिपण्णी के रूप में कुछ तुकबंदी देखने के लिए एक बार फिर से आयें मेरी पोस्ट पर.
@हा ,अंतर जी इस बार पोस्ट जरा लम्बी हो गई है पर बिच में छोड़ना मुझे पसंद नहीं --सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है फिर पढने वाले को भी आनंद आना चाहिए --
आप जरुर जाए --क्योकि उस प्राकृतिक को मै क्या कोई भी पूरी तरह कैमरे मै कैद नहीं कर सकता --
कोई परेशानी हो तो मै हाजिर हु ही ----धन्यवाद !
आपके विचार बहुत सराहनीय है। आपको उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं। आशा करता हूं कि आप हमेशा नई जानकारियों से ब्लागर्स को अवगत करते रहेगें।
जय कन्हैया लाल की,
नेपाली ने तो कमाल कर दिया जी।
हम भी धन्य हो गए जी हेमकुंड साहब के दर्शन करके।
आपका आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत रोचक विवरण ...आनंद आ गया ..आपने ऐतिहासिक स्थानों का महत्व समझा दिया है , बहुत सुंदर तरीके से वर्णन किया है ...आप यूँ ही हमें नए नए स्थानों का जीवंत विवरण देते रहें आपका आभार
Chal rahe hain aapke saath saath..... Sunder chitran.....
( बच्चे की जान लेगी क्या ! )
हा हा हा हा हा ! सॉरी हंसी रोक नहीं पाया जी ।
दुर्लभ फोटो !
लेकिन हेमकुंड यात्रा बहुत अच्छी रही । घर बैठे ही यात्रा कर ली । अब सचमुच करने के लिए हिम्मत बना रहे हैं ।
पूरा वृत्तात रोचकता से परिपूर्ण । आनन्ददायी.
अगले किसी यात्रा संस्मरण की प्रतिक्षा सहित...
दर्शन कौर जी,मैं आपके यात्रानामों का फैन हो गया हूँ.
आपका सरल और सुन्दर वर्णन हमें घर बैठे ही यात्रा करवा देता है.
वाहेगुरू का दिया हुआ सुन्दर उपहार है आपका वृतांत.
वाहेगुरू आपकी उम्र बहुत लम्बी करे.
अभी बहुत यात्राएं करनी है मैंने आपके साथ.
सलाम.
वाह ..चित्रों के साथ इतनी सुन्दर वर्णन ..बहुत सुन्दर ..बार - बार गुरु गोविन्द सिंह जी को प्रणाम
बहुत सुन्दर चित्रमय पोस्ट ..आपकी पोस्ट से हमें भी दर्शन लाभ हो गया ....
हंसना मना है ...जी बिल्कुल नहीं हँसे ...हँसे भी हों तो क्यों बताएँ :):)
दर्शन कौर जी सादर नमस्ते! घर बैठे ही इतनी अच्छी अच्छी यात्रायें कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद. बहुत खुश नसीब हैं आप जो आपको ऐसा सौभाग्य मिला और आप से भी खुश नसीब हैं हम सब, जो आप जैसी परोपकारी महिला के संग दूर से ही सही पर तीर्थ यात्रा का आनंद उठाया. आपके विचार भी बहुत सराहनीय लगे . आपको उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं. आशा करता हूं कि आप हमेशा नई जानकारियों से हमें अवगत कराती रहेंगी.
आप ने तो सचमुच ही उस की पीठ पर सवारी कर गरीब की जान ही लेने की ठानी थी क्या ।
अपना टाइम (ब्लोग का) ठीक करे, बारह घंटे का अंतर आ रहा है । बारह घंटे देरी से चल रहा है ।
(हेमकुंड साहेब का प्रवेश द्वार ) मजेदार लगा फ़ोटो ।
( बच्चे की जान लेगी क्या ! ) और भी मजेदार ।
जय हो जय हो । जितना भी इंटरनेट देखा ।
पर ऐसा मजेदार रिपोर्टर नहीं देखा ।
वैसे मुम्बई की गर्मी में गर्म पानी से नहाने वालीं
ठंड से घवराने कुङकुङाने वालीं दर्शन बीबी का
पहाङों पर घूमने का निराला ही चस्का है ।
जय हो जय हो ।
@धन्यवाद राजीव जी
@राकेशजी धन्यवाद
@राजेंद्र जी धन्यवाद
@ललित जी धन्यवाद
@ मनप्रीत जी धन्यवाद
@केवलराम जी धन्यवाद
@मोनिका जी धन्यवाद
@ डॉ. साहेब धन्यवाद
@सुशिल जी धन्यवाद
@संगीता जी धन्यवाद
@सगेबोब जी धन्यवाद
@मदन जी धन्यवाद
@ संदीप जी धन्यवाद
इस बार की लम्बी यात्रा पढने का शुक्रिया --आगे बदरीधाम में क्या हुआ जल्दी पोस्ट करुगी --
MAM APKI POST PADH KAR MAJA KITNA AAYA BATA NAHIN SAKTA IS BAAR PAKKA HEMKUND SAHEB JANA HAIN AUR POST ANTAR JI NE GALAT KAHA HAIN KI LAMBI HAIN MUJHE TOH CHOTI LAGHI KYONKI APKI POST PADNE MAIN AANAND HI ITNA AATA HAIN AAP PHOTO MEIN BAHUT SMART LAG RAHI HAIN ITNE SUNDER VARTANT KE LIYE THANKS MAM
आदरणीय दर्शन कौर जी
नमस्कार !
.........चित्रों की बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
यात्रा बहुत अच्छी रही....अगले यात्रा संस्मरण की प्रतिक्षा
आपके साथ साथ हमने भी पवित्र हेमकुंड की यात्रा कर ली।
सुंदर चित्रों ने यात्रा का मजा दोगुना कर दिया।
@sanjyji dhanywaad
@Mahendraji dhavywaad
@shaw ji dhanyvaad
@Atul bete dhanyvaad
Darshan ji bahut sundar v chitrmayi post prastut ki hai aapne .aanand aa gaya .aapke blog ka ullekh maine ''ye blog achchha laga''par kiya hai.''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com''par aakar hamara utsahvardhan karen .
दर्शन जी आपकी प्रविष्टी बहुत ही रोचक है, मुझे पढने में बहुत मजा आया| आप इसी तरह लिखते रहिये कोई पढ़े या न पढ़े मैं जरुर पढूंगा|
मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए धन्यवाद् |
जय हो! आपने तो पाठकों को भी हेमकुंड साहब के दर्शन करा दिये। अगली कडी का इंतज़ार है।
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दर्शन जी ,
आपका यात्रा विवरण बहुत ही सुरुचिपूर्ण है । पढने में आनंद आ गया । घर बैठे भारत भ्रमण करवाने लिए हार्दिक आभार आपका । चित्र बेहतरीन हैं । स्कार्फ लगाकर आप बहुत क्यूट लग रही हैं ।
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हेमकुंड यात्रा बहुत अच्छी रही । घर बैठे ही यात्रा कर ली आनंद आ गया...हार्दिक आभार आपका...
गुरु दर्शन के लिए आभार !!शुभकामनायें !!
जाट देवता की राम राम,
बद्रीनाथ कब ले कर जाओगे । भीम पुल जरुर जाना ।
धन्य हो गए जी हेमकुंड साहब के दर्शन करके। धन्यवाद|
हमारी ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक - हार्दिक शुभकामनायें.....
बहुत सुन्दर चित्रमय पोस्ट ... हार्दिक शुभकामनायें.....
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