मेरी आँखों में जो सपने पल रहे थे ---
आँख खुलते ही सब मिट्टी में दफन हो गए ---
मेरे लिए भी थी कभी कुछ पेड़ों की छाँव ---
पर वो कट चुके तेरी नफ़रत की कुल्हाड़ी से --
मेरे दिल के बागीचे में खिले थे प्यार के चंद फूल --
कम्व्ख्त! वो भी किसी हसीना के गले का हार बन गए --
मैंने सोचा था आएगी पतझड़ के बाद बहारे कभी --
पर जिन्दगी की रेल-पेल में पतझड़ ही आती रही--
मुझे मिले नहीं कभी हँसते -खेलते -नाचते -गाते कांरवा--
हमेशा मिले वीरान स्टेशन ! सुनसान राहें !बेजान मेहमां --
ले सकी न सांस मैं कभी इन बन्धनों को तोड़कर --
न ये बंधन कभी मेरे गले का हार बन सके --
हर कदम पर तेरी नफरत से सामना हुआ मेरा --
प्यार मिल न सका कभी तेरी गठरियो से मुझे --
अब, तुम कहते हो 'ये नफरत से भरी गठरी हम ढोए '--
तो तुम ही कहो ----
" कैसे हम उन सपनो को कत्ल करे ?
कैसे हम तुम्हारी नफ़रत को तिलांजलि दे ?
कैसे हम तुम्हारे दिल में प्यार का बीज बोए ?
अब, तुम ही कहो --कैसे हम खुद को दिया वचन तोड़े "?
तुम तो चले गए यह कहकर की-- 'हमे प्यार नहीं तुमसे '
पर मैं कहाँ जाऊ --
तेरे प्यार का श्रृंगार ले कर --
तेरे नाम का सिंदूर लेकर --
तेरी प्रीत की माला पहन कर --
इन राहो में अनेक कांटे हैं ,कही भी फूल दिखाई नहीं देते ?
चारो और हाहाकार हैं ,सुकून के दो पल दिखाई नहीं देते ?
क्या बहारे फिर से आएगी ? मगर कब ???
क्या खिजाए अब तो जाएगी ?मगर कब ???
मौसम बदला ऋतुए बदली ..पर तू न बदल सका ---
राह जोता किए हूँ हर पल आँखों में इन्तजार लिए ...
कम्व्ख्त! वो भी किसी हसीना के गले का हार बन गए --
मैंने सोचा था आएगी पतझड़ के बाद बहारे कभी --
पर जिन्दगी की रेल-पेल में पतझड़ ही आती रही--
मुझे मिले नहीं कभी हँसते -खेलते -नाचते -गाते कांरवा--
हमेशा मिले वीरान स्टेशन ! सुनसान राहें !बेजान मेहमां --
ले सकी न सांस मैं कभी इन बन्धनों को तोड़कर --
न ये बंधन कभी मेरे गले का हार बन सके --
हर कदम पर तेरी नफरत से सामना हुआ मेरा --
प्यार मिल न सका कभी तेरी गठरियो से मुझे --
अब, तुम कहते हो 'ये नफरत से भरी गठरी हम ढोए '--
तो तुम ही कहो ----
" कैसे हम उन सपनो को कत्ल करे ?
कैसे हम तुम्हारी नफ़रत को तिलांजलि दे ?
कैसे हम तुम्हारे दिल में प्यार का बीज बोए ?
अब, तुम ही कहो --कैसे हम खुद को दिया वचन तोड़े "?
तुम तो चले गए यह कहकर की-- 'हमे प्यार नहीं तुमसे '
पर मैं कहाँ जाऊ --
तेरे प्यार का श्रृंगार ले कर --
तेरे नाम का सिंदूर लेकर --
तेरी प्रीत की माला पहन कर --
इन राहो में अनेक कांटे हैं ,कही भी फूल दिखाई नहीं देते ?
चारो और हाहाकार हैं ,सुकून के दो पल दिखाई नहीं देते ?
क्या बहारे फिर से आएगी ? मगर कब ???
क्या खिजाए अब तो जाएगी ?मगर कब ???
मौसम बदला ऋतुए बदली ..पर तू न बदल सका ---
राह जोता किए हूँ हर पल आँखों में इन्तजार लिए ...
"देख ले आकर महकते हुए जख्मो की बहार !
मैने अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा हैं !"
मैने अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा हैं !"
19 टिप्पणियां:
-- जिंदगी है, तो सपने हैं,
सपने हैं तो तुम हो
तुम हो तो दुनिया है........
बहुत दर्द भर दिया।
सुन्दर अभिव्यक्ति.
मेरे दिल के बागीचे में खिले थे प्यार के चंद फूल --
कम्व्ख्त! वो भी किसी हसीना के गले का हार बन गए --
चलिए किसी के तो काम आए ।
फुर्सत में बैठकर लिखे अहसास पसंद आए ।
bahut sundar dharshan ji sare sapne sach khan hote hain...
कम्व्ख्त! वो भी किसी हसीना के गले का हार बन गए --
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
शुभ-कामनाएं ||
माना के सारे सपने कभी सच नहीं होते। मगर सपने ही तो अपने होते है ना। इसलिए सपने पूरे हो या न हो, सपने देखना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। बहुत खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
कैसे हम उन सपनो को कत्ल करे ?
क्या बात है दर्शन कौर जी , बहुत सुन्दर .....
खूबसूरत भाव
अच्छी कविता, सुंदर भाव, शानदार प्रस्तुति
हृदयस्पर्शी रचना!
बेहद मार्मिक रचना....
सुंदर भाव, सुंदर अभिव्यक्ति।
मर्मस्पर्शी... सुन्दर रचना...
सादर बधाई...
बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति। .. मर्मस्पर्शी...
प्रेम के इस पहलू का अच्छा चित्रण है दर्शन कौर जी. धन्यवाद.
prabhavi abhivaykti...
Bahut Sunder Bhav....
" कैसे हम उन सपनो को कत्ल करे ?
कैसे हम तुम्हारी नफ़रत को तिलांजलि दे ?
कैसे हम तुम्हारे दिल में प्यार का बीज बोए ?
अब, तुम ही कहो --कैसे हम खुद को दिया वचन तोड़े "?
हम तो बस यही कहेंगे दर्शी जी 'राम नाम जपते रहो जब लग घट में प्राण'
'नाम जप' के विषय में अपने अमूल्य विचार व अनुभव
मेरे ब्लॉग पर प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.
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