सावन का आना ...
बिजली का कड़कना,
बारिश का बरसना,
जब तेरी याद के सागर में,
मैं डूब जाती हूँ ।
तब भूचाल आ जाता है ..
तूफान उठता हैं...
ओर ???
ओर मैं हर साल तेरी यादों का मंथन कर,
उनको किनारों पर छोड़ आती हूँ ।
फिर आगे बढ़ जाती हूँ ---------
लेकिन तुम; अपने किनारे तोड़ कर,
मेरी जलधारा बन,
फिर मुझमे मिल जाते हो ।
मैं फिर तुमको अपने में समेटे,
बहती रहती हूँ
निरंतर....
अविरल..
अगले सावन के इंतज़ार में।।
---दर्शन के दिल से @
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