विवाह से पूर्व ---
मैने एक सपनों का ,शाल बुना था ---
जिसमे मेरी भावनाएं ---
मेरी तमन्नाएं ---
गुंथी हुई थी ---
लेकिन ---जल्दी में ,
मैने उस शाल का ,
अंतिम छोर ----
एक ' गलत ' हाथो में थमा दिया ---|
जिसके नासमझ हाथो ने ,
उस अंतिम छोर को ,
उधेड़ कर ,सम्पूर्ण शाल को ,
उलछे हुए धागों में ,
तबदील कर दिया ---
शाल से मिलने वाला गर्म ताप ,
मुझे कताई न मिलता ---
पर उसे अस्वीकार कर ,
उधेडा तो नही गया होता ---?
7 टिप्पणियां:
बहुत ही नाज़ुक है आपकी कविता.
टिप्पणी करूंगा तो बिखर जायेगी.
सलाम
धन्यवाद सगेबोब जी --आपकी टिपण्णी से भावुक दिल बहल जाता हे --
सच में ऐसे ना जाने कितने ख्वाब गलत हाथों में शोल के चले जाने से उलझ जाते हैं ...भावुक कर देने वाली प्रस्तुति ....शुक्रिया
निःशब्द हूँ...
कविता को प्रणाम
@केवलराम जी सही कहा आपने | धन्यवाद |
@आशुतोष जी धन्यवाद
आदरणीय दर्शन कौर जी
नमस्कार !
हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं
......आपकी लेखनी को नमन
Darshan kaur ji really very touching poem.......I am speechless !
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