#मैसूर -यात्रा
#भाग=2
#कर्नाटक
#11मार्च 2018
मैसूर यात्रा मेरी एक पंथ दो कॉज की तरह थी...ये एक घरेलू यात्रा थी.. मतलब मैसूर में मेरी बड़ी बेटी और दामाद रहते हैं तो यू हुआ कि बेटी से मिलना भी हो गया और अपनी घुमक्कड़ी भी हो गई।😊
कल ही पहुँचकर मैंने मैसूर पैलेस की लाइटिंग ओर चामुण्डायै मन्दिर देखा अब आगे:---
आज हमने दोपहर का खाना खाया और घूमने के लिए तैयार हो गए, बेटी ओर दामाद अपने अपने ऑफिस गए हुए थे ओर हमारे पास शाम तक टाईम ही टाईम था...ऑफिस से ही बेटी ने ओला बुक कर दी और हम चल दिया मैसूर की सड़कें नापने के लिए...😊
आज हम रेल - संग्रहालय यानी कि रेल्वे म्यूजियम देखने जा रहे है... रेल संग्रहालय कृष्णराज सागर रोड पर स्थित सीएफटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सामने है। मैसूर के रेलवे संग्रहालय को मैसूर के संग्रहालयों में काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान हासिल है।
मैसूर के रेल संग्रहालय की स्थापना 1979 में हुई थी यानी की मेरी शादी के समय😊 मेरी शादी भी 1979 में एक रेल्वे कर्मचारी से ही हुई हैं😂😂😂
यह म्यूजियम सुबह 10 बजे से 1 बजे तक और शाम को 3 से 5 बजे तक खुला रहता हैं। सोमवार को ये बन्द रहता हैं। इस संग्रहालय में मैसूर स्टेट (रेल्वे) की उन चलत ट्रेनों को प्रदर्शित किया गया है जो 1881 से 1951 के बीच चलती थी।
इतिहास:--
इस म्यूजियम की स्थापना वर्ष 1979 में हुई थी.. इसमें वर्ष 1881 से 1951 तक संचालित मैसूर राज्य के रेल्वे के दिनों की यादें सँजोई हुई हैं। इसमें रखी गई यादगार वस्तुएं कभी मैसूर राजमहल की शान हुआ करती थीं। इन ट्रेनों को देखकर मैसूर राज्य के स्वर्णिम युग की याद ताजा होती हैं। इसमें 19 वीं शताब्दी के समय से लेकर अब तक की रेलवे के विकास की जानकारी भी मिलती है। लोकोमोटिव वाष्प इंजनों यानी भाप से चलने वाली ट्रेन के भी कई मॉडल इस संग्रहालय की शान हैं। यहां राजा का राजसी सेलून भी हैं जिससे राजा ओर उनकी फैमिली सफर करते थे।
हमको ओला वाले ने रोड पर ही उतार दिया...देखा सामने ही रेल संग्रहालय का बोर्ड लगा हुआ था, हम अंदर चल दिये..सामने ही टिकिट खिड़की थी, मैं जब टिकिट लेने खिड़की पर पहुंची तो वहां एक सूचना पर मेरी निगाह पड़ी उसमें लिखा था कि "रेल्वे कर्मचारियों को यहां टिकिट लेने की आवश्यकता नही हैं।"😊हुरर्रेर्रर्रर
अब हम मिस्टर का आई कार्ड खिड़की पर दिखाकर शान से अंदर आ गए।अंदर एक से बढ़कर एक इंजन करीने से खुले मैदान में थोड़े-थोड़े फ़ासले पर खड़े हुए थे...सब जगह पटरियों का माया जाल बिछा हुआ था जिन पर एक एक इंजन खड़ा हुआ था। यहाँ इंजन के अलावा डिंब्बे भी थे, ओर पूरी गाड़ी भी थी..एक जगह तो बहुत ही छोटू इंजन खड़ा हुआ था। वो मुझे बहुत ही प्यारा लगा😊
इसके अलावा एक लाल रंग की वेन भी खड़ी थी नजदीक जाकर देखा तो वो भी एक ट्रेन ही थी।
हम धीरे- धीरे चलते हुए फोटू खींचते हुए आगे बढ़ते रहे ।यहां काफी सुंदर बगीचा भी बना था और बैठने के लिए हर जगह बेंचे लगी हुई थी। माहौल बिल्कुल स्टेशन जैसा था ।क्रॉस करती पटरियां ,सिंग्नल, गेट ओर भी वो वस्तुएं जो स्टेशन पर होती हैं। ओर उस समय हुआ करती थी।
काफी देर तक फोटू खींचकर हम बाहर निकल गए।बहुत ही खूबसूरत संग्रहालय था।
अब हम आगे रेत की कारीगरी देखने चामुंडा हिल के नजदीक चल दिये...
क्रमशः....
1 टिप्पणी:
सुन्दर चित्रावली।
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