कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=10
#कुर्ग-यात्रा
#भाग=3
#22मार्च 2018
कल स्वर्ण मंदिर और दुबाले घूमकर हम शाम तक कुर्ग पहुंच गए अब आगे..
शाम को हम कुर्ग पहुँच गए,Oye के दो रूम बेटी ने बुक किये हुए थे , रूम काफी बड़े और कम्फ़र्टेबल थे..नाश्ता भी उसमें इन्क्लूड था।हमने थोड़ा आराम किया और फिर रात का खाना खाने बाहर चल दिये.. बाहर काफी ठंड थी इसलिए सबने स्वेटर लाद लिए.. छोटा-सा बाजार रंगीन बल्बों से जगमगा रहा था काफी दुकानें गर्म मसालों की थी।
रात आराम से गुजरी,सुबह ढेर सारा नाश्ता आ गया,जिसमें 2 ईडली,1वड़ा, सांभर, 2छोटे परांठे, एक अंडा उबला हुआ और थोड़ा सा हलवा।😂😂😂
कुल मिलाकर नाश्ता भरपेट खाने जैसा था, पेट को फुल कर के हम तैयार हो राजाबाबू बन निकल पड़े आज के नए डेस्टिनेशन पर...आज हम कावेरी नदी के उद्गम स्थान पर जा रहे थे जिसका नाम है--
ताल कावेरी!
तालकवेरी वह स्थान है जिसे कावेरी नदी का उद्गम स्थान कहते है, कर्नाटक और तमिलनाडु में बराबर बहने वाली इस पवित्र नदी को दक्षिण भारत में गंगा की तरह पूजते है और इस स्थान को बहुत पवित्र मानते है। ब्रह्मगिरि पहाड़ियों में स्थित तालकवेरी समुद्र तल से 1,276 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ये नदी 800 km का सफर तैय करके बंगाल की खाड़ी में गिरती है.. इस नदी के डेल्टा पर अच्छी खेती होने के कारण दोनों राज्यों में आपस में इसके जल को लेकर घोर विवाद है जो कावेरी जल विवाद के नाम से मशहूर है।
हमारी कार तेजी से ताल कावेरी की तरफ दौड़ रही थी जब हम इस स्थान पर पहुँचे तो आसपास के दृश्य देखकर भोच्चके रह गए क्योंकि ये स्थान बहुत ही खूबसूरत था...चारों ओर हरीभरी पहाड़ियां धुंध में लिपटी हुई थी...ओर ये मंजर अपने आपमें मदहोश करने वाला था।
कार से उतरकर थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद हम एक गेट के पास आए जिधर एक सिक्योरिटी वाला खड़ा था उसने हमको अपने जूते उतारने को बोला...क्योंकि कावेरी मन्दिर तक नँगे पैरों से ही जाना पड़ता है ऊपर जाती हुई सीढ़ियों पर तिरपाल बिछा हुआ था...वहां पास ही जूते रखने का जुताघर मैजुद था...हम सबने अपने जूते उतारकर जमा करवाये ओर ऊपर को चल दिये...अब हम एक ऐसे स्थान पर आ गए जिधर एक तालाब बना हुआ था जहां काफी श्रद्धालु पानी में डुबकी लगाकर नजदीक ही एक छोटे से मन्दिर की ओर जा रहे थे वहां एक पंडित बैठा हुआ था जो अंदर हाथ डालकर कावेरी नदी का पवित्र जल सबको दे रहा था। हम भी उधर ही चल दिये लेकिन हमने स्नान नही किया सिर्फ लाईन में लगकर कावेरी नदी के उद्गम जल को पीने के लिए आगे बढ़ गए । नदी तो हमको नही दिखी सिर्फ वहां एक छोटा सा कुंड था जिसका जल पंडितजी ने मेरे हाथ मे दिया जिसे मैंने गंगाजल की तरह अपने मुंह में डाल लिया और आगे बढ़ गई.. इस कुंड का ही जल निकलकर तालाब में गिर रही थी।
कहते है यहां से कावेरी नदी अचानक निकलकर लुप्त हो गई है और आगे जाकर प्रकट हुई है।
तालाब के नजदीक फ़ोटुग्राफी कर के हम ऊपर मन्दिर देखने चल पड़े...
यहां काफी ठंडी हवा चल रही थी,जो सूरज अब तक अपनी किरणों द्वारा फ़िज़ा में गर्मी घोल रहा था वो अचानक बादलों में चला गया था और बादल हमको स्पर्श कर रहे थे।
मन्दिर बहुत ही सुंदर बने हुए थे। तभी मेरी निगाह एक पहाड़ पर गई जिस पर काफी लोग चढ़ रहे थे ,सीढियां दिख रही थी पर हम नँगे पैर थे तो ऊपर सीढ़ियों पर चढ़ना मुश्किल था इसलिए चाहते हुए भी हम ऊपर न जा सके और वापस नीचे की ओर चल पड़े।
नीचे उतरकर जूते पहनकर हमने एक रेस्ट्रोरेन्ट में चाय पी ओर आगे कुर्ग की ओर वापसी की राह पकड़ी।
कुर्ग पहुंचकर हम वहां के स्थानीय पार्क "राजा की सीट" पर पहुँचे।
क्रमशः..
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