मेरे अरमान.. मेरे सपने..


Click here for Myspace Layouts

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

कर्नाटक डायरी#12

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=12
#कुर्ग-यात्रा
#भाग=5
#23 मार्च 2018

कल बहुत थक गए थे इसलिए खाना खाकर सो गए थे।
आज सुबह हमारे उठने से पहले ही नाश्ता आ गया था...आज मसाला डोसा,चटनी,उड़द का वड़ा, आलू के परांठे ,आमलेट ओर केक का पीस आया था।

आज काफी हैवी नाश्ता आया था , सब भूखे भेड़ियों की तरह नाश्ते पर टूट पड़े😊😊 नाश्ते से फ्री होकर सारा समान निकालकर हम कार में बैठ गए,आज कुर्ग में हमारा आखरी दिन था तो हम कुर्ग के छोटे से बाजार में चले गए ... यहां से मैंने थोड़ा गर्म मसाला खरीदा, ओर काफी की बोतल भी खरीदी क्योंकि कुर्ग की काफी बहुत फ़ेमस है।
इतिहास:--

मडिकेरी(कुर्ग)को दक्षिण का स्कॉटलैंड कहा जाता है। यहां की धुंधली पहाड़ियां, हरे वन, कॉफी के बगान और प्रकृति के खूबसूरत दृश्य मडिकेरी को अविस्मरणीय पर्यटन स्थल बनाते हैं। मडिकेरी और उसके आसपास बहुत से ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी हैं। यह मैसूर से 125 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है और कॉफी के उद्यानों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है।

1600 ईसवी के बाद लिंगायत राजाओं ने कोडगु में राज किया और मडिकेरी को राजधानी बनाया। मडिकेरी में उन्होंने मिट्टी का किला भी बनवाया। 1785 में टीपू सुल्तान की सेना ने इस साम्राज्य पर कब्‍जा करके यहां अपना अधिकार जमा लिया। चार वर्ष बाद कोडगु ने अंग्रेजों की मदद से आजादी हासिल की और राजा वीर राजेन्द्र ने पुनर्निमाण कार्य किया। 1834 ई. में अंग्रेजों ने इस स्थान पर अपना अधिकार कर लिया और यहां के अंतिम शासक पर मुकदमा चलाकर उसे जेल में डाल दिया।

मदिकेरी का किला और महल अब   सरकारी कार्यालयों, न्यायालय और जिला जेल के रूप में बदल गए है... 

टीपू सुल्तान ने ग्रेनाइट से 18वीं शताब्दी में किले का पुनर्निर्माण करवाया था ,पहले यह किला 17 वीं शताब्दी में मुदुराजा द्वारा मिट्टी से बनाया गया था...आखिरकार, 1834 में किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।

किले के अंदर महल में महात्मा गांधी पब्लिक लाइब्रेरी, महाकोटे गणेश मंदिर, क्लॉक टॉवर, सरकारी संग्रहालय और दो हाथियों की आदमकद मूर्तियाँ हैं। 

हमने होटल का हिसाब क्लियर कर के विदा ली ओर किले की तरफ चल दिये...किला नजदीक ही था अंदर हम अपनी कार द्वारा ही पहुँच गए। सामने ही खुले मैदान में हथियों कि दो आदमकद मूर्तिया देखकर हम उधर चल दिये लेकिन हथियों के स्टैच्यू के चारों ओर जंगला लगा हुआ था ,हम उसके पीछे से सीढियां चढ़कर ऊपर किले की टूटीफूटी दीवार पर चढ़ गए,बच्चे तो पूरी दीवार का एक चक्कर लगाकर आ गए मगर मैं  सिर्फ फोटू खिंचवाकर सामने दिख रहे महल को देखने चल दी,महल का काफी हिस्सा सरकारी दफ्तर में तब्दील हो चुका है कुछ हिस्सा पर्यटकों को देखने के लिए खुला था जिसमे बड़े बड़े लोहे के दरवाजे ओर दीवारों पर  भित्ति चित्र प्रमुख थे।

महल देखकर जब बाहर निकली तो 2 तोपें दिखाई दी , नजदीक ही क्लॉक भवन दिख रहा था ,ओर चर्च की भी बुर्ज दिख रही थी पर हमारे पास टाइम नही था इसलिए हम उनको देखने नही गए।
वहां से सीधे सामने दिख रहा मन्दिर देखने चल दिये।
मन्दिर से निकलकर हम वापस अपनी कार में आ गए और रिटर्न हो गए धीरे धीरे हम कुर्ग को अलविदा कह कर आगे निकल गए।
अब हम जाते जाते "हिरंगी डैम" देखने रुकेंगे।
क्रमशः...


                    क्लॉक रूम






कोई टिप्पणी नहीं: