डलहोजी का माल रोड 
१२ जुलाई
आज ही हम सुबह डलहोजी पहुंचे थे --थोडा आराम किया --करीब ४बजे हम नीचे उतरे --होटल वाले ने बताया की थोडा राइट चलना पड़ेगा ५ मिनट में मालरोड आ जाएगा ;हम पैदल ही मालरोड की तरफ चल दिए --रास्ते में कोई भी दिखाई नही दे रहा था --न इन्सान न जानवर !राइट साईट में होटलों की कतार थी और लेफ्ट में गहरी खाई ! खाई के नजदीक रेलिंग पर कारे धुल से अट्टी पड़ी थी --सिर्फ नजदीक से कोई कार गुजर जाती थी , पर इंसान कही दिखाई नही दिया --न कोई स्थानीय आदमी नजर आ रहा था-- मन में ख्याल आया की ' कही यहाँ आकर कोई गलती तो नही कर दी ' पर मन की बात मन में ही रखी ' वरना सब मुझे ही चिल्लाते '!
खेर ,वैसे मौसम बहुत ख़ुशगवार था--आसमान एकदम साफ था--धुप बिखरी हुई थी--जाता हुआ सूरज सारी खाई को सुनहरी आभा प्रदान कर रहा था--ठंडी हवा के झोके तन- मन को मदहोश कर रहे थे --
( धुप खिली हुई थी )
खेर ,जैसे तैसे १० मिनट में बढते-  बढते अचानक एक मोड़ आया -- वाह अन्यास  मुंह से निकल पड़ा -- सामने ही मालरोड था --वहां काफी चहल पहल थी --ज्यादातर वैवाहित  जोड़े हाथो में हाथ डाले धूम रहे थे -- 
( माल रोड पे  रेस्ट करने के लिए बनाई गई है बेन्चेस  )
माल रोड पर बहुत रश था --दुकाने सजी थी --लोग गर्मागर्म जलेबियाँ और उबले अंडे खा रहे थे -छोटा -सा मालरोड था --ढंडी हवा और धुप का मिलाजुला मंजर देखने को मिला --एक तरफ बैठने के लिए बेन्चेस लगे थे --काफी फेमेलियाँ वहाँ बैठी थी --बच्चे खेल रहे थे क्योकि वहां बंदर भी सबका मनोरंजन कर रहे थे - यहाँ आकर मन शांत हुआ की हम अकेले नही हे  दिल में जो डर था वो भाग चूका था हम भी भीड़ में शामिल हो गए--
(शाल व् स्वेटर की दुकाने )
(  पावभाजी का स्टाल )
(यममी  sss- --आइसक्रीम )
( गरमा-गरम ममोज  )    
तिब्बती मार्केट बहुत ही छोटा और संकरा बना हुआ था --दोनों तरफ दुकाने सजी हुई थी --अंदर बहुत भीड़ थी ४-५ फिट के गलियारे में मेरा तो दम धुटने लगा इसलिए मै बाहर निकल आई --बच्चे अपने लिए औरअपने     दोस्तों के लिए गिफ्ट ले रहे थे -हम दोनों ने ठेले पर चाय पी --मुझे ठेले की चाय बहुत पसंद हे --कडक ! मीठी !
    धीरे -धीरे अँधेरा छा  रहा था --समय का पता ही नही चला --नजदीक ही हिमाचल टूरिज्म का आफिस था हमको कल के लिए वाहन की जरूरत थी --इंतजाम करना था --वहां कई पैकेज थे जैसे --खजियार -डलहोजी ,चंबा -डलहोजी -खजियार ,वगेरा ? हमारे पास टाइम कम था सो ,चंबा का प्रोग्राम केंसिल किया --वेसे लक्ष्मी नारायण का मंदिर और चम्बा देखने की इच्छा  बहुत  थी- अगर एक दिन और  होता तो मै चंबा जरुर देखने  जाती  --खेर ,खजियार के लिए तो गाडी करनी ही थी रात वही गुजारनी हे  --हिमाचल टूरिज्म की गाडी 1600 रु में की --सुबह पंचकुला दिखाकर खजियार जाने का प्रोग्राम बना |
( रात का नजारा एक खूबसूरत पप्पी के साथ )
 रात  को वापस आ रहे थे तो मोहन मिला वो हमे इतना सफर 1200 रु में करवाने को तैयार था --हमने पूछा की तुमको कैसे पता चला तो वो बोला --आप आफिस में बात कर रहे थे तब मै वही था खेर ,वो हमे कल खजियार धुमाकर रात वही  गुजारकर दुसरे दिन पठानकोट तक छोड़ देगा --कुल किराया 2600 रु में बात पक्की हुई --सुबह ही वो होटल में आ जाएगा -हमने होटल का नाम बताया और होटल चल दिए --मोहन चला  गया -हम भी चल दिए जब--मोड़ पर पहुचे तो शाम की बात अचानक याद आई 'अरे यह रास्ता तो एकदम सुनसान हे'--अब क्या करे मोहन को देखा तो वो जा चूका था -सामने रोड एकदम सुनसान थी --हम अकेले थे--पराया शहर !रात के ९बज रहे थे , मेरी तो हालत पतली हो चुकी थी -पर मिस्टर बोले -वाहेगुरु का नाम  जप बेडा पार होगा --ऐसी परेशानी आजतक कही नही आई थी --अब तक कितने ही हिल स्टेशन धूम चुकी हु पर ऐसा कभी नही हुआ --खेर वाहेगुरु -वाहेगुरु जपते -जपते चल रहे थे तो, देखा-- दिन में जहाँ परिंदा  नही था वही   रात में काफी लोग अपने होटलों के आगे मटरगस्ती कर रहे थे --हम फटाफट अपने होटल में आ गए --कमरे में आकर वाहेगुरु का शुक्रिया अदा किया --उस पर सब छोड़ दो --सब कुछ ठीक हो जाता हे --!
   बाहर बहुत ठंडी है  --रात को हम जल्दी ही सो गए --बच्चे फ़ुटबाल का मैच देख रहे थे--आज फ़ाइनल जो हे --सुबह खजियार जाना हैं  --
जारी  ---
 











 
 







































