इंदौर-महेश्वर -ट्रिप
*इंदौर- महेश्वर मीट*
(दूसरा दिन)
7 दिसम्बर 2019
कल रात हम इंदौर से सकुशल महेश्वर पहुंच गए थे।
रात को बस में बहुत धमाचौकड़ी मचाई ...पहले तो बस के आगे के हिस्से में अंताक्षरी चली जोरशोर से सबने चिल्ला- चिल्लाकर नए पुराने- गीत गाये जिसमें हमारी नन्ही परी वैष्णवी सबसे अव्वल आई...
फिर बस के पीछे महफ़िल जमी जहां रूपेश,राजीव ओर डॉ प्रदीप ने अपने जलवे बिखेरें☺️ इस बीच मुझे तो नींद आ गई, पता नहीं कितनी देर ये महफ़िल चली। जब मुझे झिंझोड़कर अल्पा ने उठाया तो मालूम हुआ कि महेश्वर आ गया हैं।☺️
सुबह सबकी शानदार थी काफी चहल-पहल चल रही थी.. गरम पानी के लिए जहदोजहद चल रही थी, मैं जब उठी तो कमरे की चार महिलाओं में से दो नहा चुकी थी, ओर मेरी नहाने की तैयारी थी ,मुझे रूपेश ने एक बाल्टी गरम पानी दे दिया था।
अपनी तो निकल पड़ी थी...फटाफट तैयार हो नए नवेले बन हम चारों महिलायें महेश्वर घाट पर पहुँच गई ..
मौसम काफी खुशगवार था, घाट पर करीने से नोकाए लगी हुई थी, मंदिरों के घण्टे बज रहे थे और हम चारों अपने-अपने फोटू खटाखट उतारने में व्यस्त थे।
इतने में हमारे ग्रुप के सदाबहार युगल मुकेश भालसे ओर कविता भी आ धमके, सभी से मिल मिलाकर फिर एक बार फोटू खींचत अभियान चालू हुआ..😃
यही पर एक मोती की माला बेचने वाली मिल गई जिसे मैंने टालने के लिहाज से 200 रु की माला को 50₹ बोलकर छुटकारा चाहा, लेकिन वो अड़ियल टट्टू की तरह पीछे ही पड़ गई कि 50 में ही खरीद लो😀 फिर क्या था Gds की महिलाएं टूट पड़ी और न चाहते हुए भी सबने अच्छा खासा स्टॉक खरीद लिया..अब Gds के पुरुष कैसे पीछे रहते ,तो उन्होंने भी खूब तबियत से खरीदारी की!
सबने इतनी खरीदारी की कि माला वाली अब 6 महीना तो घर बैठकर खाएगी ही😃
इतने में *नाश्ता तैयार हैं* का बुलावा आ गया और सब दौड़ पड़े..सबको यही चिंता थी कि कहीं कुछ छूट न जाये😜
लेकिन नाश्ता भरपूर था, टेस्टी पोहे, गरमागरम जलेबी ओर वड़ा सबका ईमान डगमगाने के लिए काफी था।सभी टूट पड़े...छककर सबने नाश्ता किया.. इतने में मेरी अभिषेक बाबू पर निगाह पड़ी, *अरे तुम कब टपक पड़े* 😜 अभिषेक इस अचानक हमले से थोड़ा झेंप गया।😀
फिर सबने मस्ती करते हुए नाश्ता किया और वापस चल दिये महेश्वर का किला देखने...
इस किले को 2 बार पहले भी मैंने देखा था लेकिन आज कुछ रंग ही अलग था आज की तो बात ही निराली थी।
ओर इसी निराली बात से याद आया कि उसी समय अभिषेक के बड़े भैया यानी कि हमारे ओरछा निवासी *मुकेश पांडेजी* का आगमन हुआ।
फिर Gds के बैनर तले खूब सारे फोटू खींचे गए ओर सबने किले के अंदर प्रवेश किया, जैसा कि आम किला होता हैं वैसा ही ये भी किला था, लेकिन अब किला कम बस्ती ज्यादा लग रहा था फिर भी स्थिति मजबूत थी ... मुझे महारानी अहिल्याबाई होलकर का बुत सादगी की प्रतिमा लगा,ओर उनके हाथ मे पकड़ा शिवलिंग जीवित!
दोपहर में हद से ज्यादा सेल्फियां हुई...खूब जोड़ियां बनी...ओर बिगड़ी..फिर सब थक हारकर होटल वापस आ गए..
यहां का नजारा ही अलग था,सबके खाने के लिए बाफले,चूरमा की रसोई तैयार थी मैं तो टूटकर बाफलों में घुस गई, 😂😂😂अगल -बगल से जितना खाया गया खूब ढूंस् कर ही उठी।
फिर थोड़ा रेस्ट करने अपने रूम में गई तो पता चला कि कोई सरकारी अफसर मैडम हम लोगों से मिलने आई हैं...जानकी यादव मैडम से मिलकर बहुत खुशी हुई, अपनी व्यस्तता के बावजूद वो हमारे घुमक्कड़ी के किस्से पढ़ती हैं ये सुनकर अच्छा लगा।
फिर सब चाय पीकर निकल पड़े नजदीक ही सप्तधारा देखने।
ये स्थान मैंने नही देखा था... हमारा सारा ग्रुप यहां पानी में बच्चों की भांति किल्लोरी करता रहा।
शाम होते होते सारे पंछी अपने अपने नीड पर थके हारे वापस लौट आये । लेकिन कुछ जागरूक मेम्बर थे जो महेश्वरी साड़ियां खरीदने बाजार की ओर लपक पड़े, लेकिन अपने राम वही गुडक गए..
कल 4 बजे जो उठना था।
गुड़ नाइट।
क्रमशः...
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