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मंगलवार, 16 जून 2020

मुरुदेश्वर यात्रा भाग 3



        मेरी मुरुदेश्वर यात्रा ★भाग 3


#भोले_बाबा_के_संग
#मेरा_ड्रीम_डेस्टिनेशन।
#श्री_मेरूदेश्वर_कर्नाटक)
#भाग =3

30 /10/19

कल पनवेल से 12:50 को नेत्रावती एक्सप्रेस पकड़कर हम कोंकण रेल्वे की सुंदरता निहारते हुए,रात 3 बजे कर्नाटक के तीर्थस्थल मेरूदेश्वर के छोटे से स्टेशन पर उतरे...रात को आराम से होटल में बीती ओर सुबह हम मेरूदेश्वर मन्दिर गये, अब आगे--

गोपुरा से निकलकर हम मन्दिर में जाने को हुए जो थोड़ा पहाड़ी पर स्थित है...लेकिन सीढ़िया बनी हुई है...हम घीरे धीरे मन्दिर पर चढ़ने लगे बीचबीच में हम आसपास  लगे भगवान शिव की छोटी छोटी प्रतिमाएं भी देखते जा रहे थे..आखिर में हम लगातार सीढ़िया चढ़ते हुए मन्दिर तक पहुंच गए...

वहाँ एक बड़ी भगवान शिव के वाहन नन्दी की प्रतिमा थी यहां मैंने कई फोटू खिंचे...सामने ही रावण का बालक को दिया हुआ शिव के आत्म लिंग वाली मूर्ति लगी हुई थी..

इतिहास:---"कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड़ जिला है, इस जिले की भटकल तहसील में ही मुरुदेश्वर मंदिर है। यह मंदिर अरब सागर के तट पर बना हुआ है। समुद्र तट होने की वजह से यहां का प्राकृतिक वातावरण हर किसी का मन मोह लेता है। बेहद सुंदर होने के साथ-साथ यह शिव मंदिर बहुत ही खास भी है, क्योंकि इस मंदिर के परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित हैं। वह मूर्ति इतनी बड़ी और आकर्षक है कि उसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल शिव प्रतिमा माना जाता हैं।

कथाओं के अनुसार, रामायण काल में रावण जब शिव जी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण को एक शिवलिंग दिया, जिसे आत्मलिंग कहा जाता है। इस आत्मलिंग के संबंध में शिवजी ने रावण से कहा था कि इस आत्मलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करना, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दिया जाएगा, यह वहीं स्थापित हो जाएगा। अत: यदि तुम अमर होना चाहते हो तो इस लिंग को लंका ले जा कर ही स्थापित करना। रावण इस आत्मलिंग को लेकर चल दिया। सभी देवता यह नहीं चाहते थे कि रावण अमर हो जाए इसलिए भगवान विष्णु ने छल करते हुए वह शिवलिंग रास्ते में ही रखवा दिया। जब रावण को विष्णु का छल समझ आया तो वह क्रोधित हो गया और इस आत्मलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया। तभी इस लिंग पर ढंका हुआ एक वस्त्र उड़कर मुरुदेश्वर क्षेत्र में आ गया, इसी दिव्य वस्त्र के कारण यह तीर्थ क्षेत्र माना जाने लगा ।

मुरुदेश्वर मंदिर में भगवान शिव की विशाल मूर्ति स्थापित हैं, जिसकी ऊंचाई लगभग 123 फीट है। यह मूर्ति भगवान शिव की दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति को इस ढंग से बनवाया गया है कि इस पर दिनभर सूर्य की किरणें पड़ती रहती हैं और यह चमकती रहती है।

 यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना हुआ है और इसके तीन ओर अरब सागर है। पहाड़, हरियाली और नदियों की वजह से यह क्षेत्र बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है। मंदिर में भगवान शिव का आत्मलिंग भी स्थापित है। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो हाथियों की मूर्तियां स्थापित हैं। 

  मुरुदेश्वर कर्नाटक के तट पर तीर्थयात्रा करने के लिये एक छोटी जगह है, जो मैंगलोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से 160 कि.मी. उत्तर में स्थित है। “मुरुदेश्वर” भगवान शिव का दूसरा नाम है। मुरुदेश्वर समुद्र तट के पास दो खूबसूरत मंदिर हैं जिनमें राजसी प्रतिमाएं हैं। यह छोटा और सुंदर शहर दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची भगवान शिव की मूर्ति और मुरुदेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है

मुरुदेश्वर  मंदिर कंडुका पहाड़ी पर बनाया गया है, जो कि तीनों तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है। इसका मौजूदा स्वरूप व्यवसायी और समाज-सेवी आर एन शेट्टी द्वारा बनवाया गया था। मुरुदेश्वर मंदिर का पूरी तरह से आधुनिकीकरण किया गया है।

इसके अलावा मंदिर परिसर में भगवान शिव की विशाल मूर्ति है,  जो दूर से दिखाई देती है। प्रतिमा की ऊंचाई 123 फीट है और इसे बनाने में लगभग 2 साल लगे। मूर्ति इस तरह तैयार की गई है कि सूर्य का प्रकाश सीधे इस पर पड़े और इस तरह यह बहुत शानदार दिखाई देती है। मूल रूप से, मूर्ति की चार बाहें है और इसे सोने से सुशोभित किया गया है। हालांकि, अरब सागर से उठने वाले तेज हवाओं के झोंको ने बाहों के रंग को उड़ा दिया है और बारिश ने रंग को खराब कर दिया है।फिर भी मूर्ति लाजवाब लुक देती है।

मन्दिर के पास एक गुफा है जहां रावण की ओर आत्मलिंग की कथा को बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

मूर्ति देखकर हम वापस नीचे गणेश मन्दिर आ गए जहां 12 बजे लँगर का आयोजन होता है जो 3 बजे तक चलता है...ठीक 12 बजे हम लँगर हाल में आये और चावल,सांभर, छोले ओर कुछ मीठा सा खाकर बाहर निकले.. लँगर खाकर तृप्ति का एहसास हुआ बहुत ही टेस्टी लँगर था। अब  हम सीधे अपने होटल में आ गए जहां थोड़ा आराम कर के हम तैयार हो वापस  शाम 5बजे मन्दिर की लाईटिंग देखने मन्दिर की ओर चल दिये...

क्रमशः ---













  






















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