मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शुक्रवार, 5 जून 2020

मेरी मेरूदेश्वर यात्रा भाग 1


         मेरी मुरुदेश्वर यात्रा ★भाग 1


भोले बाबा के संग
मेरा ड्रीम डेस्टिनेशन।
श्री मेरूदेश्वर( कर्नाटक)
भाग = 1
29/9/19


इस बार की घुमक्कड़ी बहुत ही तनावपूर्ण थी, मतलब सोचने वाली थी कि किधर जाए ... इसी बात का तनाव था...बड़ी बेटी चाहती थी कि हम दोंनो सिंगापुर घूम आये.. लेकिन बेटा विदेश अकेले भेजने के पक्ष में नहीँ था...
फिर सोचा गोआ चले जाएं..!

लेकिन मुझे सागर के किनारे ज्यादा पसन्द नही है, इसलिए वो भी खारिज हुआ।
फिर सोचा किसी गुरद्वारे में जाये !  लेकिन ज्यादातर गुरद्वारे भी देखे हुए थे ज़िन्हें कई -कई बार देख आई हूं...
इस तरह काफी तनावपूर्ण माहौल हो गया...मेरे हाथ में गिनती के  5 दिन थे अगर उत्तर या राजस्थान की तरफ जाती तो पूरा वीक भी कम पड़ जाता!

आखिर में सोचा कि हम कर्नाटक में मेरूदेश्वर मन्दिर के दर्शन करने जाते हैं..जिसमें टाईम भी कम लगेगा और आराम से 4 दिन कवरअप भी हो जायेगे।

फिर मेरा मन भी काफी सालों से इधर जाने को कर रहा था...जब से मैंने मेरूदेश्वर के भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति देखी थी तभी से मेरा मन उधर जाने को तड़प रहा था...
फिर मेरूदेश्वर मेरे ड्रीम सफर की श्रृंखला में आ गया... ओर अब वो सपना पूरा होने वाला लग रहा था, लेकिन ये एरिया मेरे लिए एकदम अंजान था उस पर इस बार मिस्टर को भी साथ जाना था तो ये भी सोचने वाली बात थी कि वो जायेगे भी या नही...

खेर, जैसे-तैसे मैंने प्रोग्राम नक्की किया जिसमें मेरे ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से ने काफी  सहायता की, मेरा सारा प्रोग्राम प्रतीक गांधी ने बनाया और उसने हमारी टिकिट तक करवा दी ! फिर किधर!कब ?कहाँ-कहाँ! घूमना हैं ये सब लिस्ट बनाई और समझाई...☺️ थैंक्स प्रतीक!

कर्नाटक में हिंदी  का बोलबाला थोड़ा कम ही हैं...हिंदी हर किसी को समझ नही आती...इसलिए जनसाधारण में अपनी बात रखना जरा मुश्किल ही हैं फिर उनकी लिखने वाली शैली भी सुभानअल्लाह! जलेबी जैसे अक्षर मेरे 1km ऊपर से जाते है ...हालांकि ये मशहूर पर्यटक स्थल हैं, फिर भी भाषा की समस्या तो है ही ओर मुझे हुई भी ... यहां भी प्रतीक ने मेरा बेटे जैसा साथ दिया...।

और इस तरह 3 महीने पहले मेरा मेरूदेश्वर का  प्रोग्राम पक्का हुआ.. ओर भगवान शिव को समर्पित इस सफर का आगाज़ हुआ।

29 सेप्टेंबर 2019

3 महीने पहले बना प्रोग्राम का आखिर आज जाने वाला दिन भी आ गया ...जिस दिन निकलना था तो मन बहुत बोझिल था क्योकि मेरी प्यारी सखी अलजीरा बहुत बीमार थी अब जाऊ या न जाउ इसी उधेड़बुन में रात निकल गई ,एक बार सोचा प्रोग्राम केंसिल कर दू .. लेकिन फिर बच्चों ने समझाया...बाद में अलजीरा से बात की तो वो भी बोली कि--"चली जा; तू कौन सी 24 घण्टे मेरे पास बैठने वाली हैं ,इसलिए घूमकर आ,जा ! तब तक मैं भी ठीक हो जाउंगी।" फिर मैंने भी निकलने का मन बना लिया।

सुबह जल्दी सारे काम निपटाकर मैंने हमारे लिए थोड़े- से पुलाव बना लिए ओर एक डिब्बे में पैक कर लिए... ठीक 11 बजे हम पनवेल के लिए चल दिये।
12:50 को नेत्रावती एक्सप्रेस ट्रेन आई और हम चल दिये दक्षिण भारत यानी कि कर्नाटक  राज्य के मेरूदेश्वर शहर की ओर..

 दक्षिण भारत जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें कोंकण रेल्वे से ही जाती हैं और कोंकण रेल्वे बारिश के बाद अपने पूरे यौवन पर रहता हैं ...हमारी गाड़ी भी इन्ही खूबसूरत मंजर से गुजर रही थी मेरे सामने ही खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा था, हरे रंग से पुते पर्वत ओर विशाल जंगल आंखों को सुकून दे रहे थे...ठंडी हवा के झोंके सारे रंजो- गम को पीछे धकेल रहे थे...पहाडों से कल-कल बहते झरने मस्ती से गीत गा रहे थे और बीच-बीच में पर्वतों का सीना भेदती हुई सुरंगों से बल खाती हुई हमारी ट्रेन उड़ी जा रही थी...रत्नागिरी ... फिर मंडग़ांव ओर ठीक रात को 3:00 बजे हमारी ट्रेन ने श्री मेरूदेश्वर के छोटे से स्टेशन पर प्रवेश किया।
छोटा सा स्टेशन था और उतरने वाले सिर्फ 4 -5 लोग !\

हमको स्टेशन से ऑटो कर के हमारे बुक किये होटल में जाना था..ऑटो वाले को होटल का नाम बोला और हम अपना एकमात्र बैग लिए ऑटो में सवार हो गए और सुनसान सड़क पर ऑटो दौड़ने लगा...1km चलने के बाद जब ऑटो विनायक होटल में रुका तो मैंने राहत की सांस ली... थोड़ी देर बाद हटल की सारी खानापूर्ति कर के जब हम अपने रूम में गए तो आंखों में नींद की खुमारी चढ़ी हुई थी...फिर हमने आव देखा न ताव ओर कूद पड़े बिस्तरों पर...  कुंछ देर बाद हमारे खुर्राटे कमरे में गूंज रहे थे ।

क्रमसः........











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