मेरी पहली वैष्णोदेवी यात्रा
1992 मई
मैंने पहली बार वैष्णोदेवी माता की यात्रा 1992 में की थी..
मेरे साथ मेरे ससुराल-पक्ष के सभी मेम्बर थे देवर ओर ननदो के बच्चों सहित हमारी बड़ी टोली बन गई थी।
रात को कटरा पहुँचकर हमने आराम किया और सुबह सवेरे सब पैदल ही माताजी के जयकारे लगाते हुए पहाड़ पर चढ़ रहे थे...
शाम तक हम बड़े थककर चूर हो चुके थे परन्तु बच्चों में पता नही कहां से इतना जोश भरा था कि सब मगन हो बड़े जा रहे थे...
1पिट्ठु हमारा सामान लिए हुए था और दूसरे पर बच्चे,जो छोटा बच्चा थक जाता था उसको पिट्ठू अपनी पीठ पर बैठा लेता था।
हम सब रुकते रुकाते करीब 8 बजे रात को अर्धकुंवारी पहुंचे और आज का डेरा हमने वही खुले मैदान में लगा लिया।
कम्बल ट्रस्ट से मिल गए और सभी खाना खा बेसुद लमलेट हो गए...
सुबह जल्दी उठकर फ्रेश हो सबसे पहले अर्धकुंवारी माता के दर्शन किये जैसे ही गुफा से निकले तो मेरी दोनों बेटियों को वहां के पुजारी ले गए और माता की तरह चौकी पर बैठाकर दोंनो की पूजा की, चुंदरी ओर चूड़ी भेंट की ओर प्रसाद देकर उनको बिदा किया ,ये सब देखकर मेरी आँखों से आंसू बरसने लगे,क्योंकि ये सब मेरी कल्पना से परे था। मेरी बच्चियों को माता का आशीर्वाद मिल गया था।
अब सब फिर से दुने उत्साह से माताजी का जयकारा करते हुये ऊपर की ओर बढ़ने लगे।
दोपहर में हम भवन तक पहुंच गये थे वहां पहुँचकर पहले बाणगंगा नदी के ठंडे जल से सबने स्नान किया फिर तरोताजा हो मातारानी के दर्शन को चल दिये।
तब माताजी के पिंडी दर्शन को गुफा के अंदर से ही जाना पड़ता था, मैंने जैसे ही गुफा में पैर डाला जोरदार करंट लगा और मैं जोर से चिल्लाई😂😂😂 लेकिन वो बिजली का करंट नही था बल्कि बर्फ से भी ठंडे पानी का करंट था जो गुफा के अंदर बह रहा था ।😜
हम सब एक एक कर के उस ठंडे जल को पार कर के गुफा के उस तरफ गये जिधर मातारानी के पिंडी सरूप के दर्शन होते है ...वो एक आलोकिक अनुभव था एकदम हैरत अंगेज, जिसे बयान नही किया जा सकता।
ये मेरी पहली माता वैष्णोदेवी की यात्रा थी , बाद में मैंने 3 बार ओर वैष्णवदेवी माताजी की यात्रा की ओर हर बार मेरे साथ अलग ही अनुभव हुए ...
जय माता की👏
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