इंदौर-महेश्वर - ट्रिप
#इंदौर_महेश्वर_मीट
( पहला दिन)
6 दिसम्बर 2019
इस बार हमारे ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से की सालाना मीटिंग इंदौर में रखी गई.. इंदौर मेरी जन्मस्थली भी हैं ओर आप सोच रहे होंगे कि मुझमें उत्साह बहुत होगा ? लेकिन बिल्कुल भी नही था, 😊क्योंकि इंदौर में 2-4महीने में जाती ही रहती हूं और जो स्थान लिस्ट में थे वो एक बार नही कई बार देख चुकी थी इसलिए मेरा बिल्कुल मन नही था जाने को ओर इसी बात के लिए मेरा ग्रुप में झगड़ा भी हो गया,मन भी खराब था,लेकिन सबसे मिलने की चाह भी थी सो हजार बार ना करते करते कब #हा हो गई पता ही नही चला।
खेर, 5 दिसम्बर को रात 11 बजे धुरंतों से जब मेरी काया निकली तो उमंग के साथ-साथ मन में सबसे मिलने की खुशी भी शामिल थी।
सुबह 9 बजे जब ट्रेन ने *उज्जैन स्टेशन* को छुआ तो मन मयूर हो नाचने लगा सामने ही विनोद को सपत्नी पाया और थोड़ी देर बाद जब *श्रीराम धर्मशाला* से मैं तैयार हो बाबू बन नीचे आई तो चारु,नीलू,डॉ प्रदीप ओर अल्पा को इंतजार करते पाया।
सब वापस स्टेशन चल दिये क्योंकि दिल्ली की सवारी अपने नियत टाईम पर उज्जैन पहुँचने वाली थी और उसमें हमारे अनगिनत मेम्बर आने वाले थे,...जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर आई ओर Gds का हुजूम बाहर आया तो हाय-बोय का जो सिलसिला चला तो चलता ही रहा...सबके होठों पर मुस्कान थी और मिलन का जो सुख सबकी निगाहों में था उसको देख मेरा मन खुद को धिक्कारने लगा --- "बेवकूफ कोप भवन में बैठी थी,अगर नहीं आती तो ये सामूहिक प्रेम की बौछार कैसे महसूस कर पाती"।
आंखों से खुशी के आंसू पोंछ खुद को भाग्यशाली समझ मैं भी भीड़ में शामिल हो गई सबके फ्लैश चमक रहै थे और मोबाइल धड़ाधड़ इन सुखद पलों को अपने पेट मे समाते जा रहे थे।
सबका मिलन हो रहा था.. संजय, जो हमारे एडमिन थे वो सबसे आगे थे उनके पीछे रूपेश - ज्योति ,डॉ अजय नीलिमा, माथुर साहब, नरेंद्र ओर अनिल थे इस बार नितिन नही आया था।
डॉ बलकारी जी ,राकेश,शरद, सुनील,मीनाक्षी, ऋतु ओर उसकी छोटी बहन से अंजान थी क्योंकि इनसे पहली बार मिल रही थी और जो जानकार थे उनसे गले मिल रही थी, ऐसा लग रहा था सब परिवार के ही हैं और बहुत दिनों बाद मिल रहे हैं।
खैर, दोपहर 12 बजे सब राजाबाबू बन बस से महाकाल के दर्शनों को चल दिये.. ओर यही गलती हो गई; हमको पहले दूसरे मंदिरों में जाना था और अंत में महाकाल के दर्शन करने थे ,पर सबकुछ उल्टा हो गया और जब हम महाकाल के दर्शन कर निकले तो 3 बज गए थे और पेट में चूहे क्रिकेट कर रहे थे और मेरे पास बॉल भी नही थी जो बॉलिंग करती; आखिर हमारे एडमिन को दया आ गई और उन्होंने ब्रेक बोलकर क्रिकेट रुकवाया ओर गरमागरम स्वादिष्ट खाना सबको खिलवाया।
हमसे तो योगी महाराज अच्छे निकले जो 15 मिनिट में महादेव को बॉय बोलकर हमारे साथ खाना खाने पहुंच भी गए।
खाना खा हम सब उड़ चले इंदौर की ओर! हम सब जब बस में बैठ गए तो मैंने उड़ती हुई निगाह बस में डाली ; हमारे ग्रुप के सारे महानुभव दिखाई नही दे रहे थे न रितेश न किशन, न सुशांत सर, ओर तो ओर प्रकाश जी तक एकदम सफ़ाचट थे, न पांडे जी दिख रहे थे,न दादा दिखे न अभिषेक ओर न जांगड़ा दिखा।यहां तक कि प्रतीक,आलोक ओर मनोज भी गायब थे,सबने मुझे बेवकूफ बनाया और खुद नही आये।
देख लुंगी बच्चू!!!!
अब हमारी बस इंदौर शहर में प्रवेश कर चुकी थी देवास नाका आते आते तो मैं अपने शहर में खो-सी गई ।
अब हम *सदर बाजार* (मेरा घर) के बगल में ही संगम कॉलोनी में प्रवेश कर रहे थे यही पास में मेरा कॉलेज हुआ करता था ! रोज का आना जाना था !क्या दिन थे वो...😢
सुमित हमारे ग्रुप के हैंडसम डॉक्टर के घर संगम कॉलोनी में जब हमारी बस पहुँची तो देखा एक मकान के सामने शामियाना लगा हुआ है कुछ चेयर लगी हुई हैं सबको लगा पड़ोस में शादी है लेकिन सब उस समय भोच्चके रह गए जब हम सब की सवारी उसी शामियाने में पहुँची... सुमित& फ़ैमिली की मेहमान नवाजी तो सबका दिल ही जीत ले गई ..😊
यहां हमारे ग्रुप एडमिन मुकेश ओर कविता भी मिल गए और थोड़ी देर बाद हमारे ग्रुप की मिस चंचल सरोज भी आ धमकी☺️
सबका एक जोरदार परिचय सम्मेलन हुआ जो लोग नए सदस्य थे उनके बारे में जानकारी मिली और मिला ढ़ेर सारा नाश्ता !
नाश्ता ढूंसकर रात 9 बजे के बाद सुमित को साथ लेकर हम सब सराफे पहुँच गए...
सराफा इंदौर के खाना प्रेमियों का आदर्श स्थल हैं... यहां दिन में जेवरात बिकते है और रात को पकवान!
यहां सबने कचौरी, गराडू, दही भल्ले, पान, बड़ा जलेबा, साबूदाने की खिचड़ी ओर अन्य पकवानों का लुत्फ उठाया।
ओर रात को 12 बजे सबको घसीटते हुए हमारे एडमिन संजय ने जो दुलत्ती मारी तो ठीक 2 बजे सब सकुशल महेश्वर टपक पड़े।😀
यहां खोये हुए आलोक ओर प्रतीक भी मिल गए।
ओर फिर रात 3 बजे हम सब सोए।
जय राम जी की ।
शेष कल🙏
इंदौर डॉ के घर
महेश्वर चले
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