मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 31 जनवरी 2012

एक शाम मेरे दोस्तों के नाम .....


* मित्रता * 

(मेरी बचपन की सहेली ..रुक्मणी और मैं .... !)


" मित्रता में शीध्रता मत करो ,यदि करो तो अंत तक निभाओं  "


मेरी जिन्दगी में भी यही फलसफा हैं --की मित्रता में शीध्रता नहीं होनी चाहिए '--क्योकिं इंसान को जनम के साथ ही सभी रिश्ते मिल जाते हैं, मगर सिर्फ दोस्ती ही वो रिश्ता हैं जो इंसान अपने व्यवहार से बनाता हैं --दोस्ती वो जज्बा हैं जो हर किसी के नसीब में नहीं रहता ----
     

एक सच्चा दोस्त खुदा की बेमिसाल  नैमत है----


(हम तीनो हैं बचपन के दोस्त )


"दोस्ती मौसम नहीं ---
जो अपनी मुद्हत पूरी करे और रुखसत हो जाए ----!
दोस्ती सावन नहीं ---
जो टूटकर बरसे और थम जाए -----!
दोस्ती आग नही ---
जो सुलगे  और  बुझ जाए ---!
दोस्ती आफ़ताब नही ---?
जो चमके और डूब जाए --!
दोस्ती फूल नहीं ---?
जो खिंले और मुरझा जाए ---!
दोस्ती प्यास नहीं ---?
जो पीए और मिट जाए ----!
दोस्ती नींद नहीं ---?
जो खुले और टूट जाए ----!
दोस्ती --तो --सांस हैं --------------
जो चले...तो सबकुछ---और रुक जाए तो कुछ भी नहीं ----!!!!

जीवन के इन थपेड़ों में  मुझे बहुत ही अच्छे 'दोस्त' मिले हैं .... जिन्होंने मेरा साथ कदम -कदम  पर दिया हैं --मेरे ज्यादा तो दोस्त नहीं हैं पर जो हैं उन्हें मैनें बहुत ठोंक -बजाकर देखा हैं .. वो कहते हैं न की जिसका 'मंगल' अच्छा होता हैं, उसे यार - दोस्त भी अच्छे ही मिलते हैं ......तो मेरा मंगल बहुत अच्छा हैं .. क्योकिं मुझे सभी दोस्त अच्छे ही मिले ..
तुम सबका अभिनन्दन हैं मेरे दोस्तों, उम्र के इस पड़ाव में भी  मेरा साथ निभाने के लिए और मुझे समझने के लिए ;---

"अब मिलवाती हूँ मेरे कुछ चुंनिंदा दोस्तों से  "

(डॉ. दिलीप और मैं ..बचपन के साथी ..आजतक नहीं छूटे हैं  )


(रुक्मणी और मैं ..५० साल का साथ ....हम साथ- साथ हैं )


( रेखा और मैं...दोस्ती के आलावा और कुछ नहीं  ..)
तेरा साथ हैं  तो मुझे क्या कमी हैं 

 (कृष्णा शेखावत और मैं ..हम बचपन की सहेलियां हैं ...हमारी माँऐ  भी काफी गहरी सहेलियां थी --और हमारे पिताजी भी ..)



(बहुत पुराना फोटू हैं --साल याद नहीं ...बाएँ से तीसरी मैं और दाएं से पहली  कृष्णा शेखावत ..) 


(पूनम,रेखा और मैं ..हमारी मस्त तिगडी थी पर --अब पूनम नहीं रही )



(सुरमीत और मैं ..बचपन की सहेलियाँ और रिश्तेदार भी )



(कमल और मैं...उमर का फासला भी हमारी दोस्ती के आगे नहीं आया) 










और अब मिलवती  हूँ मैं अपने ब्लोगर दोस्तों से :--






(इनको तो आप सब लोग जानते ही हो ..नाम लिखना व्यर्थ हैं..
(ललित शर्मा ) 


(इनको भी काफी लोग जानते ही हैं ..हरी शर्मा )


(मुकेश कुमार सिन्हा ..जितने चुप दीखते हैं उतने ही प्रखर हैं ) 




( इंदु पूरी गोस्वामी..एक जिंदादिल शख्सियत  )


(अरुण कुमार शर्मा ....)
शर्मा मेरे ज्यादा दोस्त हो गए न ....? हा हा हा हा हा 








और अब मिलवाती हूँ मेरे फेसबुक  दोस्तों से :--




(सुनील खत्री )
( सबसे पहले बने मेरे अजीज दोस्त ..उमर जरुर कम हैं पर दोस्ती को क्या मालुम सामने वाला कितनी उमर का हैं ..हा हा हा हा .. )




(अरविन्द भट्ट....बहुत हंसमुख और खुशमिजाज़ इंसान .. )




(विनोद शर्मा....शांत और प्रतिभावान  )




(और आखरी दोस्त अल्ज़िरा लोबो ...मस्त,बेफिक्र, जिंदादिल..मुझसे अक्सर  पूछती हैं  की-- 'मुझ में क्या हैं जो इतनी जल्दी  भा गई'--तो उसको मेरा एक ही जवाब हैं :---


" जिन्दगी से यही गिला हैं मुझे 
      की तू बहुत देर बाद मिली हैं मुझे .."


*********************************



तो यह रहे हमारे दोस्त और यह रहे हम 






*अलविदा दोस्तों *


"वो दोस्ती क्या जिसको निभाना पड़े .
 वो प्यार क्या जिसको जतलाना पड़े. 
ये तो एक खामोश अहसास हैं दोस्तों-- 
वो अहसास क्या जो लफ्जों में बतलाना पड़े ."   





बुधवार, 25 जनवरी 2012

प्यार और दिल्लगी *****





चाहते ,प्यार, मस्ती  और  दिल्लगी 
अब ये  सब बाते गुजरे जमाने की लगती  
हमें कौन चाहेगा ..?
अब तो यह बातें झूठे फसाने की हैं ..!

 वो रूठना ,वो मनाना वो खिलखिलाना 
अब तो इन चीजों का नहीं कोई ठिकाना ..!


वो गलियों से गुजरना 
वो लड़कों का पीछे आना 
तिरछी निगाहों से उन्हें तकना 
फिर खुद ही शरमा जाना ...
अब कहाँ हैं वो बिजलियाँ गिराना 
अब कहाँ हैं  वो सब रूठना मनाना.....?

लटों को लहराकर बालों को झटकना 
फिर अदा से उन्हें जुड़े में फसाना 
पलकों की चिलमन से किसी को गिराना  
कभी निगाहों से किसी को सजदा करना 
अब कहाँ हैं वो अँखियो का लड़ाना ... 
कभी हंसना कभी खिलखिलाना .....
अब कहाँ हैं  वो सब रूठना मनाना ......? 











वो जलती दुपहरियां में कॉलेज को जाना
हमें देख लडको का सिटी बजाना 
गुस्से से नकली गुस्सा दिखाना 
फिर अपने ही अहम पर खुद मर जाना  
कभी किसी का समोसा खा जाना  
कभी किसी का प्रेम -पत्र  दिखाना  
कभी किसी की हवा को निकालना  
 कभी  भागकर साइकिल पर उड़ना 
वो मौजे -बहारे वो खिलखिलाना ..
अब कहाँ हैं वो रूठना मनाना .....?

पापा से बहाने बनाकर फिर पैसे  ऐठना 
चुपके से सिनेमा जाकर पिक्चर देखना 
भाभी की चम्मच बनकर गोलगप्पे खाना 
फिर मिर्ची का ठसका और आँखों का बहना 
 भैय्या से शाम को आइसक्रीम मंगाना   
कहाँ हैं वो बचपन वो हँसना- हँसाना 
वो कसमें -वादे वो खुशियों का खजाना 
अब कहाँ हैं वो रूठना मनाना .....?













आज  सबकुछ हैं पर वो साथ नहीं ?
साथी तो बहुत हैं पर वो बात नहीं ?

न वो प्यार न वो चाहतें ...
न वो हंसी न वो ठाहकें...

अब नहीं रही वो सुहानी जिन्दगी ...?
न कालेज का जमाना न खिलखिलाना  ...?
न कागज की नाव न बारिश का बरसना ...?
न दादी की कहानी न परियो का फसाना ..?
न सुबह की चिंता न शाम का ठिकाना ...?
न चाँद की चाहत न तितलियों का  दीवाना ..?
न खुशियों की बहार न हंसने का बहाना ...?
कहाँ गुम हो गया वो बचपन सुहाना ....?
वो वादे -बहारे वो अपना चहचहाना .......!!!









* कहाँ गुम हो गया वो बचपन का जमाना  *   



बुधवार, 11 जनवरी 2012

अनमोल -पल ....पिकनिक



उम्र का बदलाव तो दस्तूर -ऐ -जहाँ हैं !
अगर महसूस न करो तो, बुढ़ापा  कहाँ हैं !!

(*सदा प्रफुल्लित मैं और पतिदेव*) 


**जेष्ठ --नागरिकों के साथ एक दिन---पिकनिक **

ज्येष्ठ --नागरिक  कल्याणकारी -संध ..वसई 


(गणमान्य लोग --बस में सवार )


आज मुझे 'जेष्ठ -नागरिकों के साथ एक पिकनिक में जाने का सु-अवसर प्राप्त हुआ --पतिदेव उस समिति के गणमान्य  सदस्य हें --पिछले साल की पिकनिक मुझसे 'मिस' हो गई थी ,पर इस बार-- 'मैं जरुर जाउंगी' ऐसा फरमान मैने जारी कर दिया ---अब बेचारे पतिदेव की कहा बिसात जो टाल दे --थोड़ी ना -नुकुर के बाद आखिर 'यस ' हो ही गया ---


सुबह सात बजे निकला बसों से हमारा काफिला --सब में काफी जोश भरा हुआ था --कुछ तो ८५ के भी थे --लगता ही नहीं था की बुजुर्ग हैं --सब टिप -टाप! कुछ अकेले थे --कुछ पत्नियों के साथ थे !


(खुशगवार मौसम ---अभी सूरज की लालिमा फैल  रही हें )



( वो देखो ....भास्कर का उदय हो  रहा हें ) 


पहले गणेश वंदना की गई --फिर किसी ने भजन गाया ---तब तक बिस्कुट का  वितरण शुरू हो गया --एक जनाब ने गीत शुरू किया --" माना जनाब ने पुकारा नहीं --क्या मेरा प्यार भी गवारा नहीं ,मुफ्त  में बन के चल दिए तन के वल्लाह जबाब तुम्हारा नहीं "वाह !वाह !! का शोर शुरू हो गया --वैसे वो खुद भी देव साहेब के जरा ज्यादा ही प्रशंसक थे--क्योकि उनके कपडे ,केप और गले का मफलर यही कहानी कह रहा था --"ख़्वाब हो तुम या कोई हकीकत कौन हो तुम बतलाओ ...."    सब मस्ती में ताली बजने लगे --"दुखी मन मेरे  सुन मेरा कहना ,जहाँ नहीं चैना ....?????" इतना गाते ही सब चिल्लाने लगे दर्दीले  गीत नहीं --ख़ुशी भरे गीत गाओ ---" मैं  हूँ झूम --झूम --झूम --झूम झुमरू फक्कड बन के घुमु ......"


(देवसाहेब की अदा  )


रास्ते में एक मंदिर विश्वकर्मा आया सब उतर गए दर्शन करने चल दिए -----


(मंदिर के बाहर धुप सेकते विशिष्ठ जन )




( मंदिर के बाहर स्वागत करती कठपुतली  )




( गणेशजी की प्रतिमा )




( मंदिर में जगन्नाथ ,सुभद्रा ,बलराम की मूर्तियां ) 




(मंदिर में बुजुर्गो की प्रतिमाए  )






(दिलकश सुबह का मंज़र ) 



(जंगल में मंगल  )  



खुबसुरत रास्तो से गुजरते हुए आखिर हम रिसोर्ट पहुँच ही गए --बहुत अच्छा समां था--चारो और ठंडी -ठंडी पुरवैया बह रही थी --दिल मगन हो रहा था  ---हमारा स्वागत किया इस मेंडक जी ने ....




(देखिए हमें देख कितना खुश हो रहे  हैं ---मिस्टर मेंडक जी --फुले नहीं समां रहे हैं ---)

सबसे पहले रिसोर्ट पहुँच कर हमको नाश्ता दिया गया --गरमा -गरमा पोहें ,उपमा और वडे  ..छककर  नाश्ता किया फिर गर्म चाय पीकर चल पड़े ऊपर की तरफ जहां पानी की बड़ी -बड़ी स्लाइड लगी थी -पर शायद हममे से कोई वहां  जाने का साहस नहीं कर पाएगा --हाँ , रेन डांस और स्विंगपूल का सबने मज़ा लिया ----चलिए चलते हैं --- 






  (नाश्ता -हाल )


(मिस्टर एक दोस्त के साथ )




(रिसोर्ट का रास्ता )


(मिस्टर अपने दोस्तों के साथ )


(हम भी चले --ऊपर की तरफ .. जहां पानी के बड़े -बड़े स्लाइड लगे हैं )




(यह खुबसुरत काटेज हैं  ..जो किराए से मिलती हैं ) 




(और यह मैं हूँ  )


( ठंडे पानी से चींख निकल गई  )


(रेन -डांस का मजा ही कुछ और हैं )




(मजा ही मजा )










( "ओ--ओ -- सजना ..बरखा बहार आई ---रस की फुहार लाई --अखियों में प्यार लाई ---ओ ओ ओ सजना" )


(चलिए ,बहुत रैन -डांस हुआ ...थोडा धुप सेक ले ... बड़ी ठंडी हैं ..)




(नहाकर खाने का इन्तजार )


 खाना बहुत टेस्टी था ---छोले,पूरी आलू और मटर पनीर साथ में दाल- चावल और श्रीखंड ---वाह !  लंच के बाद  कुछ बुजुर्ग लोग आराम करने लगे ..वही बिछी हुई खटियो पर --कुछ गुट बना कर बतियाने लगे --और मै जमकर  झुला झूलने लगी --


( झुला झूलते हुए --सुहाने मौसम का मज़ा )


(खाने के बाद ....मनोरंजन के कुछ पल ..)



( कविता कहते हुए पाटिल साहेब --संचालक )




लंच के बाद रंजना जी ने  गीत गया ----

"हें ,नीले गगन के तले --धरती का प्यार पले --
ऐसे ही जग में आती हैं सुबह ही ऐसे ही शाम ढले .."

 गीत के बोल ऐसे थे --सच में हम नीले गगन के तले बैठे हुए थे --बहुत अच्छा लगा ...कई लोगो ने कविता -पाठ  किया ---फिर सबने गरबा भी खेला --चुटकुलों का दौर भी चला --हंस -हंस कर पेट दुखने लगा ..
५ बजे चाय आ गई ..और हम चल  पड़े वापस --एक अनमोल यादगार के साथ अपने -अपने घर ........जयहिंद !