मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

जिंदगी का सफर



जिंदगी का सफर
---~~~~💝--~~~
कैसे कटा 21 से 60
तक का यह सफ़र,
पता ही नहीं चला ।

क्या पाया, क्या खोया,
क्यों खोया,
पता ही नहीं चला !

बीता बचपन, 
गई जवानी
कब आया बुढ़ापा,
पता ही नहीं चला ।

कल तक बेटी थी,
कब सास बन गई,
पता ही नहीं चला !

कब मम्मी से
नानी-दादी बन गई
पता ही नहीं चला ।

कोई कहता सठिया गई,
कोई कहता छा गई
क्या सच है?
पता ही नहीं चला !

पहले माँ बाप की चली,
फिर पति की चली,
फिर चली बच्चों की,
अपनी कब चली,?
पता ही नहीं चला !
        
दिल कहता जवान हूँ मैं,
उम्र कहती है नादान हूँ मैं,
इस चक्कर में कब
घुटनें घिस गये?
पता ही नहीं चला !

झड़ गये बाल, 
लटक गये गाल,
लग गया चश्मा,
कब बदली यह सूरत?
पता ही नहीं चला !

समय बदला,
मैं बदली
बदल गई मित्र-
मंडली भी
कितने छूट गये,
कितने रह गये मित्र,
पता ही नही चला।

कल तक अठखेलियाँ
करती थी मित्रों के साथ, 
कब सीनियर सिटिज़न
की लाइन में आ गई
पता ही नहीं चला !

बहु, जमाईं, नाते, पोते,
खुशियाँ आई,
कब मुस्कुराई उदास
ज़िन्दगी,
पता ही नहीं चला ।

जी भर के जी लो प्यारो
फिर न कहना कि ..

मुझे पता ही नहीं चला।
🥰🥰😂😂😂🥰
---दर्शन के दिल से

     

गुरुवार, 15 सितंबर 2022

Gds के साथ वैष्णोदेवी की यात्रा

मेरी वैष्णोदेवी की यात्रा
15 -18अगस्त 2021
लॉक डाउन के चलते घर में घुसे घुसे एक अरसा बीत गया था...तन के  साथ- साथ मन भी पगलोट हो गया था... पागलपन अपनी चरम सीमा लांघने ही वाला था कि अचानक चारु के फोन ने रिमझिम फुहार बिखेर दी..."ग्रुप का प्रोग्राम बन रहा हैं बुआ वैष्णोदेवी चलोगी" ? पूछ रही थी। 

अंधा क्या मांगे 2 आंखें 😜😜😜 मैंने बगैर घर में पूछे "हा" में अपनी मोटी गर्दन हिला दी।
टिकिट बुक हो गए तब ध्यान आया कि वैष्णोदेवी की कठिन चढ़ाई अब मेरे बूते के बाहर हो गई हैं.. ? तुरंत अचंभे की स्थिति में खुद को घिरा हुआ पाया।क्या करूँ!क्या न करूं!!!

आखिर बहुत सोचने के बाद मैंने बुझे मन से टिकिट कैंसिल करवा दी।
लेकिन माता का बुलावा था तो जाना तो तैय था ही फिर फटाफट 2 दिन में मिस्टर ने आने-जाने की टिकिट करवा दी।टिकिट कंफर्म भी मिली और जाना भी पक्का हो गया।😀

"चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया हैं... जय माता दी😂"

आखिर जीत माता की हुई और मैं ओर चारु नियत समय 15 अगस्त को घर वालों को टा-टा बॉय-बॉय बोलकर निकल पड़े।

11बजे जब बॉन्द्ररा स्टेशन से हमारी ट्रेन निकली तो खुशी के बादल  हंसकर हमारा फूलों से स्वागत कर रहे थे।😂 यानी कि बारिश जोरों पर थी।
धुंआधार बारिश ने मौसम को बेईमान बना दिया था और मैं खिड़की से अपना चेहरा बाहर निकालकर गिरती हुई बूंदों का अभिवादन स्वीकार कर रही थी।
रास्ते में जमकर मस्ती की।हमारे साथ-साथ डिब्बे में भी हंसी के गोले फूट रहे थे।😀
रात 11 बजे कोटा स्टेशन आया और हम 2 सदस्यों में एक ओर सदस्य जुड़ गया, वो थी सरोज...
सरोज से कुछ देर गपशप करने के बाद सब अपनी -अपनी बर्थ पर सोने चले गए।
इधर बारिश का नामोनिशान नही था..इसलिए गर्मी बहुत थी लेकिन रात को ठंडक हो गई थी... सुबह 5 बजे दिल्ली से नन्दिनी ओर 7बजे  पानीपत से सचिन का आवगमन हुआ। अब हमारी पंचौडी(5 सदस्य) ट्रेन में धमाचौकड़ी मचा रही थी।
अम्बाला में हमारे ग्रुप का एक सदस्य विमल मिलने आया और ढेर सारे खाने के पैकेट थमा गया।

सरोज,सचिन ओर नन्दिनी के लाये पकवानों पर हाथ साफ करते -करते कब कटरा स्टेशन आ गया पता ही नही चला...
 शाम को जब सब कटरा स्टेशन उतरे तो घड़ी में 6 बज रहे थे।
स्टेशन पर करोना नाम के भूत की तफ्तीश चल रही थी ..करीब 1 घण्टे बाद सब भूतों को पछाड़कर हम स्टेशन से बाहर निकले।

यहां ग्रुप के 2 ओर सदस्य नितिन ओर रोमेशजी जुड़ गए...सबका काफिला एक होटल में रूका, फ्रेश होकर हमारा काफिला दो भागों में बट गया 1 जो घोड़े से जा रहे थे और दूसरे जो पैदल जा रहे थे।

काफिला नम्बर एक:--
मैं ओर सचिन।
हम दोनों घोड़े से जा रहे थे।
हमने दर्शन ड्योढ़ी पर यात्रा पर्ची की चेकिंग करवाई ओर 1100 ₹ में दो घोड़े अर्ध्यकुवारी तक किये और माता रानी का जयकारा करते- करते रात 10 बजे अर्ध्यकुवारी फतेह कर ली।

अर्ध्यकुवारी पहुँचकर हमने राजमा चावल का भक्षण किया ओर  रूम में आकर लंबी तान लगाकर सो गए। उधर...
काफिला नम्बर 2:--
का 5 सदस्यों वाला ग्रुप रात 8 बजे कटरा से पैदल चलते हुए सुबह 4 बजे भवन के नजदीक पहुँच भी गया। जबकी हम स्वप्नलोक में विचरण कर रहे थे😀 

अचानक सचिन का फोन खड़खडाया..उधर से नितिन ने बोला कि हम भवन पहुंचने वाले हैं तो हमारी नींद रफ़ूचक्कर हो गई ओर हम फटाफट  नहाधोकर बाबूजी बन के बैटरी कार को ढूंढने निकल पड़े। सारा रास्ता सुनसान पड़ा था.. यदाकदा एक आध बन्दर उन्ध रहा था, करीब 1 किलोमीटर चलने के बाद हमको एक इंसान नजर आया जिससे बैट्री गाड़ी का पता पूछा तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खसक गई क्योंकि इतनी मशक्कत के बाद जो मैं 1km चली थी वो बेकार हो गई,मैंने घूरकर सचिन को देखा तो वो हड़बड़ाकर मेरा हाथ पकड़े रिटर्न मुद्रा में चल दिया😀😀

 अब हम वापस उसी रास्ते पर चल रहे थे जिधर से अभी -अभी आये थे। करीब 1km से भी ज्यादा चलने के बाद हम नियत स्थान पर पहुँचे तो पता चला कि बैट्री कार तो 8 बजे चलने वाली है  और अभी 6 बज रहे थे...तो हम बैटरी कार को जय रामजी की बोलकर  दोबारा आधा किलोमीटर ऊपर को चले और घोडों पर सवार हो गए ...लेकिन इन फालतू चीजों में हमारा 2 घण्टा खराब हो गया जिसकी बदौलत हम काफ़िला नम्बर 2 से 2घण्टा पीछे हो गए। इस बार घोड़े पर हमारा 1200 ₹ खर्च हुआ। अब हमारा घोड़ा डगबग-डगबग करते करते भवन की ओर चल दिया।

सुबह 8 बजे जब हम भवन पर पहुँचे तो काफिला नम्बर 2 माता जी के दर्शन कर के हमारा इंतजार 
 कर रहा था। थोड़ी बहस के बाद उनको भेरोबाब के रास्ते में छोड़कर हम माताजी के दर्शन करने लाईन में लग गए।

करीब साढ़े नो बजे हम मातारानी के दर्शनों का लाभ उठाकर बाहर निकले। मन एकदम शांत था अब मेरा यहां आना सार्थक लग रहा था क्योकि मातारानी के  इतने अच्छे दर्शन हुए थे कि मन प्रसन्न था। 
अब पेट में चूहे दौड़ने की बारी आई तो सोचा कुछ खा लिया जाए। वही पास के एक रेस्तरां में बैठकर मैंने फिर से थोड़े राजमा चावल खाये। क्योंकि वहां मिलने वाले छोले भटूरे या तेल में भीगी पूरियो से चावल खाना मुझे ज्यादा अच्छा लगा।
नाश्ता कर के हम क्लार्क रूम की ओर चल दिये.. वहां से समान निकालकर हम वही बैठकर आराम करने लगें कि  काफिला नम्बर 2 का फोन आया कि "हमने भैरोनाथ के दर्शन कर लिए है और अब नीचे उतर रहे हैं।"
अब हमारे सामने ये विकट समस्या उत्पन्न हो गई कि हम भैरो के दर्शन करें या नीचे उतर जाए?
अचानक मेरी नजर हेलिकॉप्टर के बैनर पर गई, नजदीक जाकर पूछा तो टिकिट मिल रही थी। लेकिन तुरंत 1घण्टे के अंदर उड़ान भरनी थी।
अब ,क्या करे, क्या न करे? बड़ी परेशानी थी,क्योकि मैं घोड़े से वापस जाना नहीं चाहती थी 😀 मेरा पूरा शरीर दुख रहा था...घोड़े की लगाम थामे दोनों हथेलीयां दर्द कर रही थी ...सारे रास्ते बूत की तरह बैठी  माता रानी का जाप करती हुई आई थी ...यादगार के लिए एक भी फोटु उतारी नही थी...अब मैं रिस्क नही लेना चाहती थी। तुरंत हम दोनों ने डिसाईट किया कि अब हम सीधे हेलिकॉप्टर से ही वापस जायेगे और तुरंत हमने भैरोनाथ की यात्रा स्थगित कर के 3600 ₹ के 2 टिकिट खरीद लिए। जय माता दी🙏

अब भवन से साँझी छत तक वापस घोड़े पर जाना था, क्योकि पैदल में जा नही सकती थी,तो मरते मरते दिल को तसल्ली दी कि कोई ना, अब तो नीचे ही उतरना हैं।
भवन से हमने वापस सांझीछत तक घोड़े किये यहां भी 800 ₹ में 2 घोड़े हुए।
हेलिकॉप्टर पर चढ़ने से पहले मेरा आधारकार्ड चेक़ हुआ कहीं कोई आतंकी न चढ़ जाए😀😀 और सबसे खतरनाक काम हुआ मेरा मोबाइल छीन लिया दुष्टों ने ☹️😠
मेरे ओर सचिन के मोबाइल उन लोगो ने एक पर्स में रख दिये ओर बोला कि सिक्यूरिटी पर्पज से ऐसा किया जा रहा है। सत्यानाश हो इनका🤦

हम फटाफट हेलिकॉप्टर में सवार हो गए और मिनटों में नीचे आ गए।😍
 बेहद सुखद यात्रा थी हेलिकॉप्टर की,जपनाम!!!
 मैंने कभी सोचा भी नही था कि हेलीकॉप्टर की इतनी मजेदार यात्रा होगी।😂😂
11 बजे हम कटरा में अपने रूम पर आराम कर रहे थे।🤗

दोपहर को काफिला नम्बर 2 आहिस्ता-आहिस्ता एक एक करके आने लगे...सभी थकान से चूर थे और हमारी थकान उतर चुकी थी।
शाम को हमने कटरा बाजार में शॉपिंग की ओर रात को आराम से Ac रूम में सो गए सुबह गाड़ी जो पकड़नी थी😀
इस तरह एक मजेदार धार्मिक यात्रा सबके सहयोग से हंसते खेलते थोड़ा लड़ते -झगड़ते पूरी हुई।
जय माता की🙏



जय माता रानी की 🙏

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

सपनों के रंग

सपनों का रंग
~~~~~~~~~★

मैंने सपनों को चुराकर
तकिये के नीचे छुपा रखे है।
तुम अपनी आंखों को मूंदकर
मेरी अँखियों  में समा जाओ,
मैं तुम्हें सपनों की बस्ती में ले चलूंगी 

पूरे चांद के उजाले में,
अपनी बाहों के झूले में
लोरिया गाकर –
तुम्हें झूला झुलाऊंगी।

तब,
तकिये के नीचे रखे अपने सपनों को 
हकीकत का जामा पहनाऊँगी।।

तुम मेरे आग़ोश में अपना सर रख देना,
मैं अपनी उंगलियों से तुम्हारा ललाट सहलाऊंगी
फिर कोमल लबों से उन्हें चूमकर 
अपने प्यार की मोहर लगाउंगी ।

तब तुम मदहोश हो मुझसे लिपट जाना,
और मैं अपनी समस्त लज्जा खोकर 
अमर बेल बन तुममें सिमट जाऊंगी।।

तब तकिये के नीचे रखे अपने सारे सपनों को आजाद कर दूँगी 👻
ओर खुशी के रंग बिखेर तुम्हारी जोगन बन चिल्लाऊंगी___
"मुझे तुमसे मोहब्बत है!
मोहब्बत है !!
मोहब्बत है!!!"

____दर्शन के दिल से💝

शनिवार, 18 जून 2022

अनजान चित्रकार


ये कौन चित्रकार हैं जो ____
पहाड़ों पर फैला रहा हैं
सफेद कोहरा -सा
मैदानों में हरित क्रांति -सी हैं
आसमान से बहती सुकुन की फुहारे
मेरे जिस्म-ओ जां को भिगो रही है।

ये कौन चित्रकार है जो____
हवा का रुख बदल देता हैं
चांदनी रात में सिमटकर
अपने बाजुओं को फैला
नींद के आगोश में 
सारी कायनात को समेटे
भोर की लालिमा में 
दम तोड़ देता हैं।

ये कौन चित्रकार हैं जो_____
नदी का रुख बदल देता है
पत्थर के सीने से लावा बहाकर
गली कूंचों में कीचड़ उड़ेल देता है।

ये कौन चित्रकार हैं जो ____
मांस के एक नन्हे से लोथड़े को दिल बनाकर,
उसमें सैकड़ों अरमान भर देता है ।

ये कौन चित्रकार हैं ____
ये कौन चित्रकार हैं।।।

---दर्शन के दिल से💝