एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
भाग 3
हम सब आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी एक्सप्रेस से पठानकोठ जा रहे थे । 29 को हम सुबह पठानकोठ पहुंचे फिर कार से डलहौजी फिर वहां से रात को खजियार अब आगे :---
30 ऑक्टोबर 2014
रात भर आराम से गुजरी सुबह देखा तो मंजर सुहाना था । सुबह रूम की बालकनी से पीछे का दृश्य देखा तो मुंह से 'वाह' निकल पड़ा । बहुत खूबसूरत दृश्य था । पीछे सीढ़ी नुमा खेत थे जंहाँ आलू की खेती होती है दूर कई औरते और आदमी खेतों में काम करते हुए दिखाई दे रहे थे। इतना सुंदर लग रहा था की आँखें ठहर सी गई.…काफी देर तक हम सब ये नजारा देखते रहे जब ठण्डी लगने लगी तो अंदर आ गए वैसे हम सब ऊपर से नीचे तक गरम कपड़ों से लेस थे रात को मोटे मोटे कम्बलों के कारण ठंडी भी नहीं लगी थी ----
इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया खोलकर देखा तो मन्दिर का सेवक हाथ में गरमा गर्म चाय लेकर खड़ा था हम सबने अपने 4 मेंबर के हिसाब से 4 गिलास उठा लिए , गिलासों में भरी चाय पीकर शरीर में गर्मी का संचार हुआ और दिमाग ने कहा अब मैँ तैयार हूँ हा हा हा हा
हम सब फटाफट नहाकर तैयार हुए ।गरम पानी का गीजर लगा हुआ था आराम से नहाये सारी थकान दूर हो गई । अब तक सूरज देवता भी अपनी किरणों के साथ अठखेलियां खेलते हुए पधार चुके थे और सर्दी रानी अपनी दुम दबाकर भाग खड़ी हुई थी ।
जब हम सबने कमरे से बाहर कदम निकाला तो बजरंगी सेना ने हमारा स्वागत किया।एकदम हट्टे- कट्टे लाल मुंह के बन्दर अचानक दरवाजा खोलते ही प्रकट हुए। हमने तुरन्त दरवाजा बन्द किया और सेना के कुच का इन्तजार करने लगे । इस बीच पीछे की बाल्कनी में भी इन लोगों की घुसपैठ हो गई ।अब हम कमरे में कैद हो चुके थे ।कुछ देर खिड़की से बजरंग सेना को बची हुई रोटी और साथ रखे बिस्कुट दे देकर बहलाते रहे आखिर पेट भरने के बाद बजरंगी सेना भाग खड़ी हुई और हम बाहर निकले..
सीधे मन्दिर की सीढियाँ चढ़ गए। आज माताजी को चुन्नी चढ़ानी थी।
हुआ यू की जब हम 2010 में इस मन्दिर में आये थे तो यहाँ के पुजारी ने कहा था की यहाँ की बड़ी मान्यता है जो मुराद माँगो वो पूरी होती है एक माँ का कोमल दिल होने के कारण मैंने भी बेटे की शादी की मन्नत का धागा बांधा जिसे शादी के बाद आज पूरा करने आई हूँ। बहु बेटे ने माँ को चुन्नी चढाई और पुजारीजी ने पूजा अर्चना की ।
फिर हम चल दिए नाश्ता कक्ष में जहाँ गरम- गरम आलू के परांठे और दही हाजिर था भूख लग आई थी सो लपककर परांठों पर टूट पड़े, कालेज के बच्चे भी नाश्ता कर रहे थे आज वो पेंटिंग करने निकलने वाले थे खेर, जब पेट भर गया तो हमने दोबारा चाय पी और बाहर निकल पड़े .....बाहर बहुत बड़ा खुला स्थान था जहाँ भगवान शिव की बड़ी ताँबे की मूर्ति लगी हुई थी 81 फ़ीट की भगवान भोले की खूबसूरत मूर्ति । यहाँ काफ़ी बजरंगदल मैदान की दीवारों पर चढ़ा था पर हमसे कोई बात नहीं हुई फिर हमने खूब धुआधार फोटु खिंचवाये । तभी सरदारजी आ गए हमने मन्दिर का हिसाब किया 1100 रु की पर्ची फड़ाई और सेवादारो को 500 रु मेहतना दिया सब आपस में बाट लेना बोलकर अपना सामान् ले चल दिए खजियार के फेमस प्लेस पर जिसकी खूबसूरती को देखकर स्विजारलेण्ड की याद आती है। यह पहाड़ पर बना इतना बड़ा मैदान था दूर दूर तक सिर्फ हरियली ही हरियाली दिखाई दे रही थी बीचों बीच बड़ा ही सुंदर रेस्त्रां बना था । पास ही मैदान के बीचो बीच एक झील थी जो प्रकृति थी पर कोई रख रखाव नहीं था बहुत गंदी लग रही थी --पर मौसम बड़ा ही सुहाना था हम मैदान में उतर गए हमको देखकर एक बच्चा दौड़ा हुआ आया उसके पास एक डलिया में नक़ली फ़ूल थे और एक असली खरगोश था जिसके बारे में पूछने पर उसने बताया की एक फोटू खरगोश के साथ खिंचवाने का मैं 10 रु लूँगा ,खेर, हम सबने फोटू खिचवाये और झील की तरफ प्रस्थान किया ।
झील का इतिहास :--
खजियार में एक फ़ेमस झील हैं इस झील का निर्माण उल्कापिंड के टकराने से हुआ हैं ,विश्व में ऐसी 3 झीलें हैं जिनका निर्माण उल्का पिंड के टकराने से हुआ है --->
1. अमेरिका के एरिजोना में स्थित है ।
2. महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित हैं --लुनार झील ।
3. चम्बा ज़िले के खजियार में --खजियार झील ।
यह झील करीब 50 हजार पुरानी हैं और 5 हज़ार वर्गफुट क्षेत्र में फ़ैली हुई हैं --झील के किनारे एक टापू बना हैं जहाँ सैलानियों के बैठने की जगह हैं -- टापू तक पहुँचने के लिए छोटा -सा लकड़ी का पुल बना हैं जो यकीनन अंग्रेजों के टाईम का ही बना था ।
एक कहानी और प्रचलित है " कहते है की भगवान शिव और पार्वती जब धरती के भ्रमण पर निकले तो इस स्थान की खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए कुछ दिन ठहर कर आगे बढ़ने लगे तो खजी नाग का मन आगे जाने का नहीं हुआ तो शिव नाग को वही छोड़ने का विचार किया और उसको पीने के पानी के लिए ये नहर खोदकर आगे बढ़ गए " तब से इस जगह का नाम खजियार पडा ।
हम झील के नजदीक गए और पूल से होते हुए टापू पर पहुँच गए वहां से चारों और का नजारा देखने काबिल था ,काफी लोग वहां बैठे थे मुझे तो थोड़ा डर भी लग रहा था क्योकि कहते है इस झील का कोई अंत नहीं है-- कभी ये लकड़ी का टापू गिर गया तो ???????
हम काफी देर तक टापू पर मस्ती करते रहे और फोटू खींचते रहे फिर हम मैदान में गए और घूमते रहे धुप और ठंडी हवा का मिलाजुला माहौल मन को तरोताजा कर रहा था ।
यहाँ कई होटल वगैरा तो हैं पर बाजार नहीं हैं रेस्त्रां भी है और ठेले भी है जहाँ गरमा गर्म ममोज और उबले अंडे लोग खा रहे थे कई जगह पर भुट्टे सिक रहे थे और चाय भी मिल रही थी ।पर हमारे पेट में पराठें अब तक विराजमान थे इसलिए हमने सिर्फ कोल्ड ड्रिंक पी ----
मंदिर में आने का रास्ता
मंदिर के कमरे, इसके नीचे और कमरे बने है
पीछे का दृश्य
पीछे का दृश्य
मंदिर की दीवार
बालकनी में वानर सेना
माता की चुन्नी पुजारी को देते हुए
गंदी झील जो फैलती जा रही है
@#$* हम चार *$#@
खजीनाग का मंदिर जिसके नाम पर खजियार नाम पड़ा
2010 का खजियार का मिस्टर के साथ लिया फोटू
वापसी में पहाड़ी के ऊपर से लिया चित्र
खजियार में एक फ़ेमस झील हैं इस झील का निर्माण उल्कापिंड के टकराने से हुआ हैं ,विश्व में ऐसी 3 झीलें हैं जिनका निर्माण उल्का पिंड के टकराने से हुआ है --->
1. अमेरिका के एरिजोना में स्थित है ।
2. महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित हैं --लुनार झील ।
3. चम्बा ज़िले के खजियार में --खजियार झील ।
यह झील करीब 50 हजार पुरानी हैं और 5 हज़ार वर्गफुट क्षेत्र में फ़ैली हुई हैं --झील के किनारे एक टापू बना हैं जहाँ सैलानियों के बैठने की जगह हैं -- टापू तक पहुँचने के लिए छोटा -सा लकड़ी का पुल बना हैं जो यकीनन अंग्रेजों के टाईम का ही बना था ।
एक कहानी और प्रचलित है " कहते है की भगवान शिव और पार्वती जब धरती के भ्रमण पर निकले तो इस स्थान की खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए कुछ दिन ठहर कर आगे बढ़ने लगे तो खजी नाग का मन आगे जाने का नहीं हुआ तो शिव नाग को वही छोड़ने का विचार किया और उसको पीने के पानी के लिए ये नहर खोदकर आगे बढ़ गए " तब से इस जगह का नाम खजियार पडा ।
हम झील के नजदीक गए और पूल से होते हुए टापू पर पहुँच गए वहां से चारों और का नजारा देखने काबिल था ,काफी लोग वहां बैठे थे मुझे तो थोड़ा डर भी लग रहा था क्योकि कहते है इस झील का कोई अंत नहीं है-- कभी ये लकड़ी का टापू गिर गया तो ???????
हम काफी देर तक टापू पर मस्ती करते रहे और फोटू खींचते रहे फिर हम मैदान में गए और घूमते रहे धुप और ठंडी हवा का मिलाजुला माहौल मन को तरोताजा कर रहा था ।
यहाँ कई होटल वगैरा तो हैं पर बाजार नहीं हैं रेस्त्रां भी है और ठेले भी है जहाँ गरमा गर्म ममोज और उबले अंडे लोग खा रहे थे कई जगह पर भुट्टे सिक रहे थे और चाय भी मिल रही थी ।पर हमारे पेट में पराठें अब तक विराजमान थे इसलिए हमने सिर्फ कोल्ड ड्रिंक पी ----
काफी देर तक हम मैदान में घूमते रहे फिर अपनी गाडी में वापस आ गए और डलहौजी जाने को तैयार हो गए
शेष अगले अंक में ------
मंदिर में आने का रास्ता
मंदिर के कमरे, इसके नीचे और कमरे बने है
पीछे का दृश्य
पीछे का दृश्य
मंदिर की दीवार
बालकनी में वानर सेना
माता की चुन्नी पुजारी को देते हुए
गंदी झील जो फैलती जा रही है
@#$* हम चार *$#@
खजीनाग का मंदिर जिसके नाम पर खजियार नाम पड़ा
वापसी में पहाड़ी के ऊपर से लिया चित्र