वो एक डॉक्टर था!
इस महामारी के चुंगल में फंसा हुआ!
छटपटाता हुआ,
निराशा के सागर में डूबता-उबरता,
एक बेबस इंसान!
कुछ न कर पाने की विवशता से हताश,
अंधकार की दलदल में धंसता ही जा रहा था।
चारों ओर दावानल की तरह फैली ये बीमारी,
इसमें फंसे निरह बेबस इंसान,
चींख, पुकार के इस माहौल में,
विकराल रूप धारण करती अर्थव्यवस्था!
चरमराया हुआ सिस्टम!
अवसरवादी लोग!
वो ये सब देखने को विवश था।
वो चाहता था; कुछ करूँ?
मर रही इंसानियत को पुनः जीवित करूँ!
फिर से लोगों में विश्वास की लौ जलाऊं!
खत्म हो रही इस सृष्टि को पुनः गठित करूँ!
"पर कैसे??"
"कैसे"???
"अचानक!!!"
अचानक! वो फरिश्ता अपना दर्द भूलकर,
लोगों को बचाने निकल पड़ा!
उसके बुलंद हौसलों ने करामात दिखाई!
लोग उसकी बातें मानने लगे!
उसके प्रयोग आजमाने लगे!
उसकी आवाज़ से अमृत बरसता था!
उसकी दवाइयों ने जादुई काम किया,
लोग इस महामारी से निज़ात पाने लगे!
इस कैक्टस के जंगल से निकलने लगे!
लगा, अब जल्दी सवेरा होगा।
लेकिन....
लेकिन, एक दिन वो मानवता का पुजारी,
लोगों को जीवनदान देता हुआ,
खुद इस रोग में गले तक फंस गया...
इस कठिन वक्त में,
उसने किसी का सहारा न खोजकर;
अपनी जादुई दवा से,
खुद का इलाज करके,
इस महामारी से मुक्त हुआ!!
उसकी जीत हुई,
वो पुनः एक बार,
संधर्ष करने,
इस लड़ाई में;
एक विजेता की तरह,
निकल पड़ा...
जिनके हौसले आसमां को छूते हैं
उनका साथ ईश्वर भी देता हैं..
ओर ऐसे लोग मानव जाति,
के लिए उदाहरण बन जाते है।
--दर्शन के दिल से