मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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रविवार, 24 जुलाई 2011

मुम्बई की सैर :--मेरी नजर में ( 4)


" ये है बाम्बे मेरी जान " 

जुहू -चौपाटी 





मुंबई में स्थित एक प्रमुख सागर तट हैं।  जुहू -चौपाटी... 
मुम्बई मैं  हर समुंदर तट पर लोगो की भीड़ होती हैं  -जिन्हें चोपाटी कहते हैं --  इनमे कुछ तो काफी प्रसिध्य हैं जैसे ---
जुहू -चोपाटी -- जो सांताक्रूज़ (अँधेरी )में हैं  !यहाँ हर समय पर्यटकों की भीड़ लगी रहती हैं |
दूसरी हैं--गिरगांव चोपाटी --जो मेरिन ड्राईव पर हैं !यहाँ गणेश विसर्जन होता हैं ! 
तीसरी हें --दादर चोपाटी !यहाँ भी गणेश विसर्जन होता है !
चोथी-- चोपाटी बहुत खतरनाक हैं  --यहाँ  उपनगर मलाड से होकर जाया जाता हैं इसे मार्वे -चोपाटी कहते हैं --यहाँ का समुंदर कटा-फटा होने से कई बार दुर्धटनाऐ हो जाती हैं !
पांचवी चोपाटी--गोराई बीच कहलाती है --भाईंदर (उपनगर ) से जाया जाता हैं -- एकदम साफ !कम भीड़ वाली जगह मुझे बहुत पसंद हैं यह बीच !इसी बीच पर फेमस खेल घर ' एसेलवर्ड 'हैं !  

और यह मैं ,ठंडी हवाओं का आनन्द लेते हुए 





चलिए आज आपको जुहू -चौपाटी की सैर करवाती हूँ :---

 यह बीच मुंबई का एक मुख्य पर्यटन स्थल होने के साथ ही फिल्म निर्माताओं की विशेष पसंद हैं। इस सागर तट को कई हिंदी एवं अन्य भाषाओं की फिल्मो में दिखाया गया हैं। जुहू बीच के साथ जुहू चौपाटी भी काफी प्रसिद्ध है।
जुहू बीच मुंबई (मुंबई) के केंद्रीय उपनगर में एक खूबसूरत स्थान है. इस बीच विले पार्ले, Santa Cruz और अंधेरी से पहुँचा जा सकता है. जुहू बीच मुंबई के लिए विश्राम स्थल के रूप में माना जाता है ...

दूर~~~ चाट और भेल की  दुकाने 

भेलपूरी मुम्बई की शान समझी जाती हैं यहाँ जैसी भेल कही नहीं मिलती ..यह मेरा अनुभव हैं...बारिश मैं दुकानो तक सागर का पानी आ जाता हैं 


रगडा  पेटीज ---यहाँ का एक फेमस चाट   


बंदर का नाच 


गंदगी का साम्राज्य 

जुहू -बीच पर बहुत गंदगी रहती हैं 

कलाकार भी है  यहाँ 
रेत की कलाकारी 

चौपाटी बीच छोटे दुकानों से भरा स्थल है. भेल पुरी, पानी पुरी और पाँव -भाजी मुख्य नाश्ता हैं , समुद्र तट विक्रेताओं, खिलौने की बहुतायत दुकाने होती हैं यहाँ सिप के गहने और सजावटी समान भी मिलते है ..यहाँ आप ऊंट की सवारी का मजा ले सकते है ..


ऊंट की सवारी और बग्गी की सवारी 


बारिश में अपने रास्ते से भटका एक जहाज  जुहू बीच पर अटका 
 
हमारी फौज लहरों का मजा लेते हुए 

लौटती लहरे 

यहाँ का रोमांच ही अलग हैं  


पानी में खड़े होकर जब लहरे लौटती है तो जो एहसास होता है वो बया नही किया जा सकता ...पैरो से सरकती बालू का एक अलग ही अनुभव होता हैं ..ऐसा लगता हैं जैसे धरती पैरो से निकल रही हो ....  

  
एक खुबसुरत यादगार 



यहाँ आप बग्गी में बैठ कर सागर का मजा ले सकते हैं ~~~~सावधान ! यह बग्गी वाले ऊँट वाले बहुत लुटेरे हैं .....मोलभाव करके ही बैठे ...



आजकल यहाँ से दुकाने हटा दी गई हैं ..पूरा समुंदर स्पष्ट दिखाई दे जाता है


अपने दोस्त डॉ दिलीप के साथ --जुहू पर ..




२५ साल पुराना ! जुहू का नजारा !! मिस्टर और मैं ..





नारियल पानी का अपना ही मज़ा हैं जनाब ...








अगला सफर हरे रामा  हरे कृष्णा मन्दिर (जुहू )

जारी ~~~~~~~~~




सोमवार, 18 जुलाई 2011

* सपनो का महल और मैं *



 * सपनो का महल और मैं *  







सपने देखती वो नन्ही परी...
अपने सपनो मै मग्न --
उड़ानों मैं व्यस्त,
अपने घर की खिड़की मैं बैठी--
बाहर बच्चो को खेलते देखती रहती ???

अपनी उदास आँखों से नभ को ताकती रहती !
मजबूर थीं बेचारी !
माँ जो न थी उसकी !!

उसका दुःख कोई नहीं जानता था ?
अपने अकेलेपन से वो खुश न थी ?
पर उमंगे कम न थी --
बादलो पे सवार --
अपनी ही दुनिया मैं खोई हुई --
वो हमेशा आकाश में विचरण करती रहती थी --

सपनों में रहती ! सपनो मैं खाती ! सपनो मैं सोती थी !

चाँद को बांहों में भरने की ललक थी उसमें !





समय अपने पंख पसार उड़ता रहा ---एक दिन ---

अपनी बगियाँ में बैठी फूलो से बाते कर रही थी --
शाम का झुरमुट फैल रहा था --
सूरज की लालिमा और
रात की कालिमा के बीच
अचानक --
उसे महसूस हुआ --
कोई देख रहा हैं --
नजरे घुमाकर देखा --
 "यह वो था "
वो मुझे 'अपलक' निहार रहा था ?
वो 'शायद'  मुझसे प्यार करता था ?
दीवाना था वो मेरा --
पर मैं हमेशा उसे मायूस करती--
मुझे भ्रम था की --'जो मुझे चाहेगा '--
वो मुझसे दूर चला जाएगा --

मेरी माँ की तरह !
मेरे पापा की तरह !!






पर विधि का विधान कुछ ही और था --

धीरे -धीरे हमारी मुलाकाते होने लगी --
मैं 'शायद' उसे प्यार करने लगी --??????
 यह दुनियाँ  हसीन लगने लगी-----
हम दोनों की एक अलग ही दुनिया थी --
जहां प्यार--और सिर्फ प्यार था --?

पर होनी को कौन  टाल सकता हें--
फिर एक बार मेरी किस्मत ने मुझे धोखा दिया ..
मेरे रेत के धरोंदे को किसी ने बेदर्दी से तोड़ दिया --
काल के धिनौने पंजे --
मेरी तकदीर पर पंख पसार चुके थे ..?
'उसको' अपने खुले जबड़े मैं फंसा चुके थे ..??
उसको मुझसे दूर ~~~ले जा चुके थे..?????





मैं बहुत रोई ! गिड़गिड़ाई --
पर किसी पत्थर की मूरत को ,
मुझ पर दया न आई ---

मेरी उमंगे !मेरी हसरते !मेरी ख्वाहिशें !!!!!

सब धरी रह गई ......
और मैं ठगी -सी --
अपनी दुनिया लुटती देखती रही --

पंख कुतर चुके थे मेरे ???????
और मैं कठोर धरातल पर आ गिरी !!!!

आँखों से अश्क सुख चुके थे  --




उसका अक्स आँखों में लिए मैं फिर खिड़की के पास आ बैठी ---
बच्चे अभी भी खेल रहे थे ********

रविवार, 17 जुलाई 2011


जय शिव-शम्भु 
***********************


शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ।
अंत काल को भवसागर में उसका बेडा पार हुआ॥






शिव मेरे अराध्य देवता हैं--
शिव बिन मैं कुछ नहीं ..ऐसा मै मानती हूँ ...


आज सावन का पहला सोमवार हैं ...

शिव को शंकर, भोले, महाकाल, निलकंठेश्वर और भी कितने ही नामों से पुकारा जाता है। शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनका लिंग के रूप में पूजन किया जाता है। माना जाता है कि शिवजी ने कभी कोई अवतार नहीं लिया। मान्यता है कि शिवजी का शिवलिंग के रूप में पूजन करने से जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। कई लोग नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व आराधना कर व कुछ लोग नियमित रूप से मंदिर जाकर शिवलिंग को नैवेद्य अर्पित करते हैं।
सावन मैं शिव पूजा का अपना ही महत्व है

3 जुन  2011 को मैं महाकाल के दर्शन हेतु उज्जैन गई थी ---


उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर १२ वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है । उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से ५५ कि मी पर है. उज्जैन के प्राचिन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मन्दिरो की नगरी है। यहा कई तीथ‍ स्थल है। इसकी जनसंख्या लगभग ४ लाख है।

उज्जयिनी की ऐतिहासिकता का प्रमाण ई. सन600 वर्ष पूर्व मिलता है। तत्कालीन समय में भारत में जो सोलह जनपद थे उनमें अवंति जनपद भी एक था। अवंति उत्तर एवं दक्षिण इन दो भागों में विभक्त होकर उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन थी तथा दक्षिण भाग की राजधानी महिष्मति थी। उस समय चंद्रप्रद्योत नामक सम्राट सिंहासनारूत्रढ थे। प्रद्योत के वंशजों का उज्जैन पर ईसा की तीसरी शताब्दी तक प्रभुत्व था



शिव की पूजा सफल हैं  


मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य यहाँ आया था. उसका पुत्र अशोक यहाँ का राज्यपाल रहा था। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उज्जैन शकों और सातवाहनों की प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन गया।सन १००० से १३०० ई.तक मालवा परमार-शक्ति द्वारा शासित रहा।

दिल्ली के दास एवं खिलजी सुल्तानों के आक्रमण के कारण परमार वंश का पतन हो गया. सन् १२३५ ई. में दिल्ली का शमशुद्दीन इल्तमिश विदिशा विजय करके उज्जैन की और आया यहां उस क्रूर शासक ने ने उज्जैन को न केवल बुरी तरह लूटा अपितु उनके प्राचीन मंदिरों एवं पवित्र धार्मिक स्थानों का वैभव भी नष्ट किया। सन १४०६ में मालवा दिल्ली सल्तनत से मुक्त हो गया और उसकी राजधानी मांडू से धोरी, खिलजी व अफगान सुलतान स्वतंत्र राज्य करते रहे। मुग़ल सम्राट अकबर ने जब मालवा अधिकृत किया तो उज्जैन को प्रांतीय मुख्यालय बनाया गया. मुग़ल बादशाह अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब यहाँ आये थे।

सन् १७३७ ई. में उज्जैन सिंधिया वंश के अधिकार में आया उनका सन १८८० ई. तक एक छत्र राज्य रहा जिसमें उज्जैन का सर्वांगीण विकास होता रहा। सिंधिया वंश की राजधानी उज्जैन बनी। राणोजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोध्दार कराया। इस वंश के संस्थापक राणोजी शिंदे के मंत्री रामचंद्र शेणवी ने वर्तमान महाकाल मंदिर का निर्माण करवाया. सन १८१० में सिंधिया राजधानी ग्वालियर ले जाई गयी किन्तु उज्जैन का संस्कृतिक विकास जारी रहा। १९४८ में ग्वालियर राज्य का नवीन मध्य भारत में विलय हो गया।

वर्तमान उज्जैन नगर विंध्यपर्वतमाला के समीप और पवित्र तथा ऐतिहासिक क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23डिग्री.50' उत्तर देशांश और 75डिग्री .50' पूर्वी अक्षांश पर स्थित है।



महाकालेश्वर मंदिर

उज्जैन के महाकालेश्वर की मान्यता भारत के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में है।महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक प्रसिध्द कवियों ने इस मंदिर का वर्णन किया है। लोक मानस में महाकाल की परम्परा अनादि है। उज्जैन भारत की कालगणना का केंद्र बिन्दु था और महाकाल उज्जैन के अधिपति आदिदेव माने जाते हैं।


हम सुबह ही निकल पड़े ---सन्डे के कारण काफी रश था --पुलिश का भी काफी बन्दोबस्त था --पर भाई जो वहाँ का टी.आई (टाउन इंस्पेक्टर ) था सो हमें कोई परेशानी नही हुई---
पर हमे अंदर कैमरा ले जाने नही दिया न मोबाइल ही अंदर ले जा सके----
आज काफी भीड़ थी और सबको दूर से ही दर्शन करा रहे थे--पर  भाई की वजय से हमने अंदर जाकर रुद्राभिषेक किया----


 महाकालेश्वर 


सावन मैं शिव की राधना करने से कहते हैं की सभी मनोरथ पुरे हो जाते हैं---सावन महीने को भगवान शंकर का महीना कहा जाता है।  भगवान शिव की आराधना सावन महीने में उत्साह और उमंग से की जाती है। सावन मास के पहले दिन शिवालयो और मठों में रूद्राभिषेक का दौर शुरू हो जाता है

भारत के सभी शिवालयों में श्रावण सोमवार पर हर-हर महादेव और बोल बम बोल की गूँज सुनाई देती है  । श्रावण मास में शिव-पार्वत‍ी का पूजन बहुत फलदायी होता है। इसलिए सावन मास का बहुत मह‍त्व है।गवान भोलेनाथ को प्रिय श्रावण मास में उनकी जितनी आराधना, भक्ति की जाए कम है। उनकी भक्ति आराधना में ही मानव जीवन की सही कुंजी है जो मनुष्य को अपने सारे पापों से ‍मुक्ति दिलाकर मोक्ष का रास्ता दिखाती है। सावन का महीना, बारिश की फुहारों के बीच शिव पर चढ़ाए जा रहे बिल्वपत्र, धतूरा, दूध और जल इस बात के साक्ष्य है कि सावन में किया गया प्रभु शिव का गुनगान ही मनुष्य को अपने कष्‍टों से मुक्ति दिलाकर मन को अपार शांति से भर देगा।




(शिव जी की 81 फिट की विशाल प्रतिमा ) 
खज्जियार (हिमाचल प्रदेश )

रविवार, 10 जुलाई 2011

प्रेम -सेतु





"जिन्दगी तो मिल गई थी चाही या अनचाही--!
बीच मैं यह तुम कहाँ से मिल गए राही --!!"




हम दोनों नदी के दो किनारों की तरह हैं --

जो आपस मैं कभी नही मिलते --?
दूर~~ क्षितिज मैं भी नहीं--?
जहां जमीन- आसमान एक दिखते हैं --
हमे यू ही अलग -अलग चलना हैं --
पुल का निर्माण ही,
हमारे मिलन की कसौठी हैं !
जो असम्भव हैं ---?

 क्योकि जीवन वो उफनती नदी हें 
जिस पर सेतु बनना ना मुमकिन हैं   
आधा पहर जिन्दगी का गुजर चूका है --
कुछ बाकी हैं --
वो भी गुजर ही जाएगा --???
फिर क्यों महज चंद दिनों के लिए यह रुसवाई --
हमे यू ही सफ़र तैय करना हैं --
अलग -अलग --जुदा -जुदा,




वैसे भी दोनों किनारों मैं कितनी असमानता हैं --

अलग प्रकृति !
अलग शैली !
अलग ख्वाहिशे हैं --!

इस तरफ --
प्यार हैं --चाहत हैं,
रंगीन सपने हैं --
मिलन की अधूरी ख्वाहिश हैं --
मर मिटने की दलील हैं --???

उस तरफ --
सिर्फ एहसास हैं --
जिन्दा या मुर्दा --
पता नही --?
पीड़ा देता हैं यह एहसास --!
चुभन होती हैं इससे -- !!
दर्द होता हैं --!!!
यह मृग-तृष्णा मुझे कब तक छ्लेगी --???

सिहर उठती हूँ---





यह सोच कर
कही उसके दिल मैं ' कुछ ' नहीं हुआ तो ?
कैसे रह पाउंगी --उसको खोकर ?
कैसे सह पाउंगी --उसका वियोग ?
यह मृत्यु -तुल्य बिछोह ???
मुझे अंदर तक तोड़ जाएगा ----!
"तो छोड़ दूँ"  
ज़ेहन में  उभरा एक सवाल ?
पर मन कहा मानने वाला हैं --
मन तो चंचल हैं !

समर्पित हैं ! 

उस अनजानी चाह पर,
यंकी हैं,उस अनजाने आकार पर ....   
 जो बसा हैं एक अनजाने नगर में --
दिल जिसे ढूंढता हैं एक अनजानी डगर पें--
तो चलने दूँ --- 
इस सफर को -- इस सिलसिले को ..
निरंतर --यु- ही --अलग -अलग --
कम से कम साथ तो हैं --?

अलग -अलग ही सही ???  





जिन्दगी से यही गिला हैं मुझे !
तू बहुत देर से मिला हैं मुझे  !

सोमवार, 4 जुलाई 2011

सागर और चंद आंसू !!





' कोई सागर इस दिल को बहलाता नही '




   कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं 
जिन्दगी की कश्ती  लगी है दांव पर 
     क्यों कोई मांझी आकर पार लगाता नहीं  ?
  कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं  --


गलती हमारी थी क्यों की कश्ती तूफां के हवाले !
पतवारे फैंक कर क्यों हो गए इन हवाओं के सहारे !
क्यों कोई आकर आज इस तूफां से हमें बचाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 






जब घर से चली थी तो ये मंजर सुहाना था !
मंजिल तक पहुंचने का इक बहाना था !
सनक थी तुझे पाने की, 
तुझसे मिलने का इक ख़्वाब था,
क्यों कोई आकर आज हमे मंजिल तक पहुंचता नहीं ?  
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --


साथ पाकर तेरा राह में गुनगुनाना चाह था मैने !
आँखों की गहराइयाँ नापकर यह एहसास जताया था मैनें !
हर परेशानी,हर मुश्किलों में सहचर्य चाहा था मैने !
क्यों कोई आकर आज हमकदम बनके राह दिखलाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 






जिन्दगी के इस तूफां से कैसे खुद को बचाऊं ?
कैसे समेंटू अपना कांरवा ? कहाँ नीड़ बनाऊं ?
कश्ती टूटी,घर टुटा, गुम हो गई पतवारे 
बहे जा रही हूँ जीवन के इस सैलाब में,
थक गई हूँ इस बोझ को ढ़ोते -ढ़ोते,
अश्को से नफरत !खुशियों से नफरत !
नफरत हैं अपने वजूद से --
क्यों कोई आकर आज इस दिल को दिलासा दिलाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --  



  

  
आंधियो में भी कभी चिरांग जलते हैं --सोचा नही था ?
सेहरा में भी कभी फूल खिलते हैं --सोचा न था ? 
जुगनू भी कभी दिन में चमकते हैं --सोचा न था ?
कांटो पर भी कभी गुलाब खिलते हैं --सोचा न था ?
भटकाव से भी कभी राहे मिलती हैं --सोचा न था ?
दरख्सतों पर भी कभी कमल खिलते हैं --सोचा न था ?
क्यों कोई आकर आज इन सवालों को सुलझाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --