उसके और मेरे बींच वो क्या है जो हम दोनों को जोडती है ...
एक अद्रश्य डोर है जो मजबूती से हमे जकड़े हुए है ....
वो इसे प्यार नहीं कहता ---
पर यह मेरे प्यार का एहसास है---
मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ ---
मैं इस एहसास को क्या नाम दूँ ...
समझ नहीं पाती हूँ ...
वो कहते है न---- ' दिल को दिल से राह होती है---'
जब भी वो अचानक मेरे ख्यालो की खिड़की खोल कर झांकता है ...
तो मैं तन्मयता से उसे निहारती हूँ --
तब सोचती हूँ की यह क्या है ? जो हमे एक दुसरे से जोड़े हुए है --?
मैं इसे प्यार का नाम देती हूँ --
तब वो दूर खड़ा इसे 'इनकार' का नाम देकर मानो अपना पल्ला झाड लेता है --
क्यों वो इस 'लौ ' को पहचानता नहीं ----?
या पहचानता तो है पर मानता नहीं ..?
पर इतना जरुर है मेरे बढ़ते कदम उसके इनकार के मोहताज नहीं .......