मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 9 अगस्त 2014

रक्षा- बन्धन



रक्षा- बन्धन 


"भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना --- भैया मेरे ,छोटी बहन को न भुलाना ---" 

सावन की पूर्णिमा को राखी का त्यौहार आता हैं ---- साल भर हम इस दिन का इंतजार करते हैं कब ये दिन आये और हम अपने मायके जाए ---- 
आज बचपन की याद आ गई---
उन दिनों रेडियो पर सुबह से राखी के गीत आतें थे ---मैं एक दिन पहले से ही राखी के लिए हाथों  में मेहँदी लगा लेती थी ---सुबह उठते ही सबसे पहले ये देखना की मेहँदी कैसी रची है ;;फिर स्नान करके नया फ्राक पहनना ,नई  चूड़ियाँ पहनना ,बालो में वेणी बांधना ,नई  चप्पल पहनना और पैरो में पायल पहन कर यहाँ वहाँ  फुदकना --- कितने सुहावने दिन थे बचपन के ---
अम्मा , खाने में खीर पूरी पकोड़े और दही बड़े बनाती थी --तब तक मौसी की बेटी और तायाजी का बेटा भी राखी बंधवाने आ जाते थे --सब पहले खाना खाते थे फिर राखी का प्रोग्राम संपन्न होता था ---  चारो भाइयों को पहले तिलक लगा कर मुंह मीठा करती फिर राखी बांधकर बड़े फ़क्र से पैर पड़वाती थी ,और आज का नेग मांगती थी ---असल मैं मेरे लिए बचपन में राखी का मतलब बस नए कपडे पहनना और गिफ्ट  लेना होता था -- आज भी वो दिन याद आते है तो आँखें भर जाती है --