मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

पुणे का सफ़र --- भाग 3


  पुणे का सफ़र --- भाग 3
( शिर्डी के साईं बाबा )





" मेरी आवारगी में  कुछ कसूर तुम्हारा भी है दोस्तों !
जब तुम्हारी याद आती है तो घर में अच्छा नहीं लगता-- !! "  

हम तो घुमने  के आदि है भाई ...



शिर्डी  का रेलवे -स्टेशन  


शाम के  4 बज गए अपने पुलिस कमिश्नर दोस्त (अशोक राय  ) से मिलकर हम चल दिए बस स्टेशन की तरफ ...अशोकजी ने हमें अपनी जीप में दो इंस्पेक्टरों के साथ बस- स्टॉप पंहुचा दिया--और अटेंड करने को भी बोल दिया क्योकिं हम को शिर्डी पंहुचने में रात के दस बज जाना था ओर हम दोनों अकेली थी । वैसे  तो शिर्डी में किसी प्रकार का डर नहीं था ..पर हमसे दूर बैठे घर वालों को कौन समझाए ....

बस स्टेशन पहुँचकर हम को शिर्डी की बस में बैठाकर दोनों पुलिस वाले चले गए ...शाम का वक्त था और ठंडी हवाए मन को सुकून दे रही थी ..हम भी ऐ सी बस में बैठे गप्पे मर रहे थे --फिल्म भी चल रही थी "तेज" और बस भी चल रही थी तेज ...रास्ते में कई  बार इंस्पेक्टर सावंत का फोन आता रहा की ...मेडम आप कहाँ तक आई है ..थोडा व़ी आई पी ट्रीटमेंट मिल गया था हा हा हा हा हा ...



 रात को करीब 10 बजे शिर्डी आया ...हमको लेने आये इंस्पेक्टर ने हमे रेलवे स्टेशन  पर बने रिटायरिंग रूम में पंहुचा दिया ...यह रूम भी अशोक जी ने पूना से ही हमारे लिए रिजर्व करवाया था ..किराया था सिर्फ 80 रूपये ...... पूरा रिटायरिंग रूम सुनसान पड़ा था ..क्योकि शिर्डी का यह रेलवे स्टेशन अभी नया ही बना है ...मैने और इंस्पेक्टर ने  रजिस्टर भरा और रूम पर चल दिए ..एक लड़का हमारा सामान रूम तक रख गया ..अब इंस्पेक्टर ने भी जाने की इजाजत चाही और कल  कोई सेवा हो तो याद कीजियेगा कहकर चल दिए .. मैने रूम का मुआवना किया  ..रूम बहुत ही साफ़ सुधरा और बड़ा था ..दो बेड अलग -अलग लगे थे साथ ही डायनिंग टेबल और सोफा रखे थे पास ही टी वी चालू था ...ऐ सी चल रहा था ...मुझे अपने पुलिस इंस्पेक्टर पापा की याद आ गई जिनके ज़माने में हमने ऐसे मज़े खूब किये थे ... खेर, हम फ्रेश हुए और कपडे बदलकर टी वी का प्रोग्राम देखने लगे

"टिन्न ...टिन्न ..टिन्न .. जब रूम की बेल बजी तो हम दोनों की धिग्धी बन गई भला रात के 11 बजे कौन होगा.हम दोनों का डर के मारे बुरा हाल हो रहा था ...रेखा ने कहा तुम पूछो कौन है ? मेरा तो वैसे ही डर के मारे प्राण निकले पड़े थे फिर भी अपने पुलिसिये खून को धिकारते हुए थोडा जोर से बोली -- 'कौन ?'

बाहर से एक लड़के की आवाज आई --"मेडम में हूँ ,आपके लिए चाय लाया हूँ " धत तेरे की ---हम  ख्वामखा डर रहे थे  ..दरवाजे पर एक 12 साल का लड़का खड़ा था  हाथो में ट्रे लिए हुए ..."मेडम साहेब बोल कर गए थे चाय के लिए " अबे तो एक घंटे बाद लाया है ..मैने आँखें दिखाते हुए कहा--- " मेडम दूध नहीं था वो जाकर शहर से लाया हूँ"उसने डरते हुए जवाब दिया । मैने भी उस मासूम को ज्यादा डराना  उचित नहीं समझा क्योकिं वाकई में शहर दूर था ....हमने चाय पी क्योकि उसकी बहुत तलब महसूस हो रही थी ...कुछ देर बाते करते हुए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला .....
         
सुबह 8 बजे मेरी नींद खुली ..बाहर निकल कर देखा तो कोई नहीं था सारा रिटायरिंग हॉउस सुनसान पड़ा था मैंने किचन ढूंढ लिया और वहां  दो चाय का आर्डर दे आई ..थोड़ो ही देर में चाय आ गई तो हमारा काम हो गया ..हम दोनों तैयार होकर बाहर आ गए --हमारा सामान हमने वही रख दिया अब हमको शहर जाना था जो यहाँ से करीब 3-4 किलो मीटर था शायद -- हम रेलवे स्टेशन पर चल दिए क्योकि वहां  काफी टेम्पो और रिक्शे खड़े थे ...दो ट्रेन भी खड़ी थी ...हमने मुंबई जाने के लिए स्टेशन पर इनक्वारी  की तो मुंबई की किसी भी ट्रेन में जगह नहीं थी ..और लटककर जाना यानी बिना रिजर्वेशन के जाना मेरी तोहीन  थी ..इसलिए बस से ही मुंबई जायेगे यह सोचने के बाद एक खाली  टेम्पो में बैठ गए किराया था सिर्फ 10 रुपये---लो जी, आने के टाइम तो हम 100 रु देकर आये थे ...पहला चुना लगा ....खेर ,,,


रेलवे रेस्ट हाउस की कुछ झलकियाँ 



 पहुँच गए बाबा के मंदिर :-- यहाँ कई गेट है ...वी आई पी गेट भी है जहाँ से आप जल्दी दर्शन कर  के आ सकते है  --- पर हमें कोई जल्दी नहीं थी ...और हम सीधे -साधे  ढंग से ही दर्शन करना चाहते थे इसलिए इंस्पेक्टर साहेब को सुबह नहीं बुलाया ....
अब हमने प्रसाद ख़रीदा तो लगा दूसरा चुना ..सिर्फ प्रसाद का ही उसने हमारा 495 का बिल बना दिया ..अरे,यह क्या दुकानदार ने न जाने क्या-क्या रख दिया था ...'अरे भाई .साईं ने कभी खीर नहीं खाई तुम उसको पैड़े खिला रहे हो ' हा हा हा हा

हुत सारा सामान निकल कर फैंका और सिर्फ मुरमुरे और रेवड़ी ली जो साईं को बहुत अजीज थी ..
हमारे मोबाईल और कैमरा वही जमा कर दिए गए क्योकि हमे डरा दिया था की आगे चेक पोस्ट पर चेक हो गया तो वापस आना पड़ेगा ...हमने भी दुकानदार के अंडर में सारी चीज़े सेफ  में  जमा की और ताला लगाकर चाबी अपने अंडर  में की और चल पड़े मंदिर के  अन्दर ....
इस कारण आगे कोई फोटू नहीं है ...


प्रवेश द्वार  नम्बर 3  फेमिली वालो के लिए 



हम 3 नंबर गेट से अन्दर गए जिसे दुकानदार ने कहा था की यहाँ भीड़ नहीं होती पर ऐसा कुछ नहीं था यहाँ काफी भीड़ थी हम भी नंबर लगाकर खड़े रहे ..साइड में बेन्चेस भी लगी थी प्योर स्टेनलेस स्टील की जहाँ आप यदि थक जाये तो बैठ सकते है ..पर मैंने प्रतिज्ञा  की थी की जब तक साईं के दर्शन न होगे मैं बैठुगी नहीं ...हालाकि यह भीष्म प्रतिज्ञा नहीं थी पर अपने राम ने सोचा की खड़े रहते है जब ज्यादा थक जायेगे तो बैठ  जायेगे ...पर 2 घंटे में नंबर आ ही गया और हम अलग -अलग लाईनो से गुजरते रहे ...पहली बार सोचा की गलती की ज्यादा भक्त बनने की  उस इंस्पेक्टर को बुला लेते और रोब से दर्शन करते ....

खेर ,एक बड़े से हाल में आखिर साईं बाबा के दर्शन हो ही गए ....सोने से जड़े हुए साईं बाबा शायद कसमसा रहे थे ..चारो और पुजारियों से धिरे हुए थे और वो सबका लाया हुआ प्रसाद और फूल लगभग फैंक  रहे थे--जिस प्रसाद और फूलो को  मैं पिछले 2 घंटे से हाथो में उठाये हुई थी जिसके कारण मेरा हाथ भी दर्द करने लगा था , उन लोगो ने निर्दयता से फैंक दिया ....खेर, बड़े -बड़े मंदिरों में ऐसी छोटी -छोटी बाते होती  रहती है ....



साईं बाबा का दरबार ( गुगल  बाबा के सोजन्य से )


पर साईं के दर्शन  करते ही मैं सबकुछ भूल गई ...ऐसा लगा किसी और ही दुनियां में आ गई हूँ  ....आँखों से आंसूओ की लड़ी बह रही थी ..और मैं अपनी सुधबुध खो चुकी थी ...एक सेवादार ने जब मेरा हाथ पकड़कर मूर्ति के पास से हटाना चाह तो  मैने उसे कडक आँखों से  ऐसे देखा की वो मुझे छोड़कर दूसरी तरफ चला गया ...मैं  बहुत आस्तिक हूँ ऐसा नहीं है .. न मुझे कभी किसी मंदिर या गुरूद्वारे में जाकर ऐसा कुछ महसूस होता है ..साधारण रूप से मैने हमेशा नार्मल होकर ही भगवान् के दर्शन किये है ,यहाँ भी मैं 2 बार आ चुकी हूँ  पर इस बार पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा की मैं दुसरे ही लोक में आ गई हूँ  ...आराम से मैं निचे बैठकर जी भरकर  साईं के दर्शन किये ,जब तृप्त हो गई तो वापस चल दी बाहर की और .....


बाबा का असली बहुत पुराना फोटू ( गूगल से  ....


सुबह से कुछ खाया नहीं था ---मेरी आदत है किसी धार्मिक स्थान पर जाती हूँ तो पहले दर्शन करती हूँ  फिर कुछ खाती हूँ ---तो जोरदार भूख लग आई थी हमने सुन रखा था की साईं बाबा का भंडारा होता है तो हम भंडारा ढूँढने लगे ..पता चला की यहाँ से  थोड़ी दूर ही है ...तो हम चल दिए, रास्ते  में  दूकान से  मोबाईल और कैमरा लिया --दूकान वाले को 2-4  गालियाँ दी की हमारी सारी पूजन सामग्री व्यर्थ गई ,पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा उसने हमें देखा तक नहीं ..खेर,

थोड़ी दूर प्रसाद के लड्डू मिल रहे थे ...मोतीचूर के लड्डू देखकर नियत खराब हो गई ..अब लाईन में लग गए ....एक आदमी को 2 ही पैकेट मिल रहे थे 10 रु का एक पैकेट .. पैकेट में सिर्फ 3 लड्डू ! सबको प्रसाद तो देना ही पड़ेगा ..हम इंडियंस की आदत होती है जब भी किसी धार्मिक स्थान में जाओ प्रसाद जरुर खरीदते है ....
मैं  भी तीन बार लाईन में लगी  और 6 पैकेट खरीद लिए ..देशी घी के लड्डू भला इतने सस्ते मिलते है क्या ? वैसे, पिछले दिनों साईं बाबा के यहाँ नकली देशी घी का जो जखीरा मिला था उसे शायद सब जानते है ..पापी पेट का सवाल है भाई ....इसी कारण शायद मैं चोथी बार लाईन में नहीं लगी ...हा हा हा हा

लड्डू लेकर हम चल दिए ..भंडारा ढूँढने ....मंदिर के बाहर काफी अमरुद बेचने वाले खड़े थे ..कई ढेरियाँ बनी हुई थी ..हमने भी 2 ढेरियाँ खरीद ली ..60 रु में ! काफी ताजा अमरुद दिख रहे थे  ....   


ताजा -ताजा अमरुद हमारे मध्य प्रदेश  में इसे जाम भी बोलते है  


पैदल चलते - चलते जान पर बन आई ...ऊपर से इतने अमरुद का बोझ ..लालच के कारण 2 ढेरिया  ले ली जो कम से कम 3 किलो से ज्यादा ही होगी ...ऊपर से गर्मी अलग और भूख  सता रही थी सो अलग--खेर, थोडा चलने के बाद आखिर हमको वो स्थान दिख ही गया .." श्री साईं प्रसादालय" । यह काफी सुंदर और काफी बड़े स्थान में था ..साफ़ सुधरा था ..बीच में बड़ा सा बगीचा भी था पर उसमें किसी को  जाने की इजाजत नहीं थी  साईं बाबा का बड़ा सा लंगर बनाते हुए एक स्टेचू लगा था ...आप भी देखे ...



प्रसादालय के बाहर बड़े से देग में साईं बाबा लंगर तैयार करते हुए 



खुबसूरत  बगीचा  


और यह मैं 

मैं और मेरी सहेली रेखा ...अमरुद और लड्डू ओ से लदे हुए   

हम अन्दर की तरफ चल पड़े ..किसी ने बताया था की यहाँ 10 रु में रसीद कटती  है और खाना मिलता है..हमने काउंटर पर जाकर पूछा तो मालुम हुआ अब यहाँ रसीद नहीं कटती सबको फ्री  में खाना खिलाया जाता है खेर , हम  चल पड़े --अन्दर का हाल काफी बड़ा था करीने से टेबल और कुर्सिय लगी थी ..भीड़ भी नहीं थी जबकि मुझे लगा था की यहाँ नीचे बैठने की व्यवस्था होगी जैसी की आमतौर पर होती है ..हम भी एक टेबल और कुर्सी पर बैठ गए ...वहाँ स्टील की थालीयां पहले से ही  लगी थी उनमें एक- एक खोपरे की बर्फी और नमक व् सिकी हुई लाल मिर्च रखी  हुई थी ...खाना बहुत ही स्वादिष्ट था ....

मैं और रेखा ..खाने का इन्तजार 


लंगर -हाल ...करीने से सजी टेबल -कुर्सी ..कोई भागमभाग नहीं 


साईं का खाना (प्रसाद )


यहाँ हमे उस दिन रोटी ,दाल , काले चने की सब्जी ,  आलू -बेगन  की सब्जी और चावल का लंगर मिला ...खोपरे की बर्फी पहले ही मैं आधी खा चुकी थी -----:)

खान खाने से पेट के साथ ही मन भी तृप्त हो गया था अब हम चल दिए वहां से वापस बाज़ार घूमते हुए अपने रेस्ट हॉउस ..थोडा आराम करने का मन था पर रेखा ने कहा की यही से बॉम्बे की बस पकड़ते है शाम तक पहुँच जायेगे तो उसका यह आइडिया पसंद आया ..हमने वही से  एक ऑटो किया जो हमारा  सामान रेलवे स्टेशन  से लेकर हमें बस अड्डे तक छोड़ दे ....ऑटो ने किराया लिया 150 रु .....तीसरा चुना ..
यहाँ एक बात और हो गई हमारे सारे पैसे ख़त्म हो गए थे अब वापसी का ऐ सी का कितना किराया होगा हमें पता नहीं था हमने तुरंत स्टेट बैंक का ऐ टी एम ढूँढा और पैसे निकलने पहुँचे पर यह क्या यहाँ तो ऐ टी एम ही बंद अब दुसरे बैंक की तरफ दौड़  लगाई पर वो भी बंद ,पता चला की सर्वर ही डाउन है पता नहीं कब ठीक होगा यह था चौथा चुना ....बैंक ने लगा दिया --अब क्या करे ..पूना में जो खरीदारी की थी उस पर गुस्सा आ रहा था --ऐसा ही  एक बार मेरे साथ डलहोजी में हुआ था ....अब हम दोनों ने पर्स खंगोले चोर जेबों से पैसे इक्कठे किये तो 550 रु हुए यानी यदि 250 रु किराया हुआ तो हम आराम से ऐ सी बस में जा सकते है और 50 रु का नाश्ता भी कर सकते है ...


बाज़ार की रौनक     

जय हो साईं बाबा की हमें कोई ऐ सी बस नहीं मिली  ..बस अड्डे पर  उस समय कोई बस थी ही नहीं अचानक एक बस हमारे पास आकर रुकी नान ऐ सी थी मुंबई -मुंबई चिल्ला रहा था हमने तुरंत कंडक्टर से किराया पूछा तो उसने 180 रु बताया ..मुझे तो हैरानी हुई की हमारी परेशानी साईं ने  इतनी जल्दी दूर कैसे कर दी .....जय हो ....हम तुरंत दौड़ कर बस में बैठ गए ...अंधा क्या मांगे दो आँखें हा हा हा हा हा हा  


वापसी ... हमारी शाही बस में ...हा हा हा 


और फिर हमने बस पकड ली ..वापसी के लिए ,जबकि बॉम्बे से पूना का  ऐ सी किराया था 250 रु। और पूना से शिर्डी का 200 रु यानी कुल 450 रु और वापसी में सिर्फ 180 रु। हलकी बूंदाबांदी भी हो रही थी और मौसम भी बड़ा  खुशगवार हो गया था    


वापसी का नजारा 


शिव के लिंग के सामान पहाड़ियां .यहाँ की विशेषता है 


रास्ते में हल्की बूंदाबांदी चालू थी 


रात को 10 बजे हम बॉम्बे पहुँच गए ...सकुशल और नाश्ता भी नहीं किया ...सिर्फ चाय ही पी थी..
साईं की समाधी (गूगल से ...



* जय हो साईं बाबा *





सोमवार, 28 जनवरी 2013

लागी छूटे न



लागी छूटे न 






लागी छूटे न अब तो सनम !
  चाहे जाए जिया ,तेरी कसम !!



पर मै जानती हूँ  तेरे दिल में मै नही हूँ    ?
मेरा प्यार , मेरा अहसास !सब खोखला है 
तू मुझसे प्यार नही करता  ?
 मैं  तेरी आरजू इन आँखों में लिए भटकती रहूंगी 
तुझ से मिलने को अब मैं तरसती रहूंगी 

वो खुशनुमा दिन !
वो खुशनुमा राते !

जब हम मिलकर प्यार किया करते थे 
  वो कदम्ब के पेड़ की छाया....
वो रजनीगन्धा के फ़ूल ...
जूही की मदमस्त खुशबू से सराबोर 
वह तेरे दिल का आँगन ........
जहां तेरी मुस्कुराती तस्वीर मेरे मन को हर्षाती थी !
जहां कभी मैं निशब्द चली आती थी ,
तेरे दिल के दरवाजो को झंकृत कर के 
न शोर !
न कोई कोलाहल !
   
खामोशी से लरज़ते वो तेरे अशआर  
मुझे अंदर तक रौंद गए है....


अब वो बात कहाँ .....

तेरी विरह अग्नि में मै, जल रही हूँ ज़ालिम !
बूंद -बूंद पिघल रही हूँ ज़ालिम !  
इस तपिश से मुझे बचा ले ज़ालिम !

कैसे तुझे  चाहू !
कैसे तुझे पाऊ !
कैसे तुझे देखू !

इस दिल की लगी से मुझे बचा ले यारा !
           इस पीड़ा से मुक्ति दिला दे यारा !!


" दूर है फिर भी दिल के करीब निशाना है तेरा "