मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

मनिकरण यात्रा 4

# मणियों की घाटी#
मनिकरण
भाग =4
हम शिमला से कल चले थे रास्ते में  2 बार हमारी कार का टायर पंचर हुआ । रात करीब 11 बजे तक हम मनिकरण पहुंचे अब आगे :-----
सुबह होटल के गरम पानी के कुण्ड में हम सबने स्नान किया और तैयार हो पैदल ही  गुरद्वारे चल दिए  ।इक्का- दुक्का दुकाने ही थी चाय और नाश्ता की ज्यादा होटल वगैरा नहीं थे । हम पहले गुरद्वारा गए तीसरी मंजिल पर बना गुरद्वारा बहुत ही सिम्पल था चारोँ और अनेक देवी देवताओ के फोटु लगे हुए थे हम माथा टेक् कर नीचे आ गए ----
नीचे शिवजी का छोटा सा मन्दिर था वही पास में कुण्ड बना हुआ था जिसमें तेज पानी उबल रहा था चारोँ और रेलिंग भी लगी हुई थी और उस कुण्ड में अनेकों पोटलियाँ बंधी हुई थी जिसमें चावल और आलू लटके हुए थे ।वही पता चला की लोहे के बड़े बड़े हंडो में गुरद्वारे का लंगर भी पक रहा है ।
हमने भी आलू लेकर एक पोटली में लटका दिए 15 मिनट में आलू उबल जायेगे।15 मिनट हमने कुछ फोटु खिंचने में गुजारे और आलू तैयार हो गए ।
अब भूख लगने लगी थी सुबह होटल में सिर्फ बेड टी पी थी तो हम लंगर झकने गुरुद्वारे साहेब के लंगर हॉल चल दिए।आलू भी वही खायेगे।
कहते है मनिकरण आकर यदि गुरद्वारे का लंगर नहीं छक्का तो आनन्द अधूरा रह जायेगा क्योकि यहाँ सारा खाना गर्म पानी की भाप में पकता है
कहते हैं की एक बार जब गुरु नानक जी अपने भ्रमण के दौरान यहाँ आये थे तो शिष्य मर्दाना को भूख लगी तो गुरूजी ने कहा की राशन इक्कठा करो शिष्य राशन ले आये पर आग नहीं थी तो गुरुजी बोले एक पत्थर हटाओ पत्थर हटते ही गरम पानी का स्त्रोत फुट पड़ा जिसमें गुरूजी के कहने पर रोटियां बेल कर डाली गई जो पक कर बाहर आ गई तभी से यहाँ खाना भाप में पकता है।
लेकिन हमने वहां रोटियां भाप में पकती हुई देखी जब पंगत में बैठे तो खाने की इतनी वेरायटी देखकर ढंग रह गए क्योकि हमारी थाली में छोले ,राजमा, आलू की सब्जी,चावल,मीठी खिचड़ी, चने की भाजी और चपाती थी। पेट भर लंगर छक कर हम वहाँ से चल दिए अपने गतांक की और ...
और हम मनाली की और चल पड़े ...



रविवार, 8 नवंबर 2015

#मनिकरण#

# मणियों की घाटी #
मनिकरण -- भाग 3

हम शिमला से कार द्वारा मनाली जा रहे थे रास्ते में मनिकरण के दर्शन भी करने की सोची अब आगे::--
मनिकरण कुल्लू से 45 Km है ।भुंतर इसका नजदीकी एयरपोर्ट हैं । भुंतर के पास ही पार्वती नदी और व्यास नदी का संगम है यही पार्वती नदी का पुल पार्वती घाटी और कुल्लू घाटी को जोड़ता हैं 35 किलोंमीटर का ये विहंगम और खतरनाक रास्ता दिलकश नजरो से भरपूर है।

हम रात को 11 या 12 बजे तक मनिकरण पहुंचे।पुरे मनिकरण में कहीं लाईट नहीं थी अँधेरा ही अँधेरा व्याप्त था। ड्रायवर ने एक होटल में एक रूम दिला दिया 3 पलंग लगे थे सब बगैर कपड़े उतारे ही लेट गए क्योकिं लाइट नहीं थी जागकर भी क्या करते सब सो गए ---

सुबह 8 बजे ड्रायवर ने उठाया की जल्दी दर्शन कर लो ताकि टाईम से निकलकर मनाली पहुँच सके वरना कल जैसा हाल होगा । हम भी कल के वाकिये को याद कर के डर से गए और नहाने चल दिए; नहाने के लिए होटल के अंदर ही कुण्ड बना था जिसमें नलों के द्वारा गर्म पानी और ठंडा पानी आ रहा था नजदीक ही बाल्टी और मग रखा था हम सब कपड़े पहने ही कुण्ड में उतर गए  दोनों पानी के मिलन से पानी ज्यादा गरम नहीं लग रहा था  खूब नहाये सब थकान उतर गई । होटल मालिक ने पहले ही बता दिया था की ज्यादा देर तक मत स्नान करना वरना चक्कर आ जायेगे ।मैँ तो फटाफट निकल कर बाथरूम में चली गई पर मिस्टर और बच्चे देर तक नहाते रहे जिससे उनको चक्कर आने लगे ।

कहते है ये गन्धक का पानी होता है जो अत्यधिक गरम होता है जिसमें चर्मरोगों के उपचार की अद्भुत क्षमता बताई जाती है।
हम सब तैयार हुए गर्मी बहुत लग रही थी पर हवा ठंडी थी । मैंने कमरे की बालकनी में कपड़े सुखाये ताकि जब हम वापस आये तो कपड़े सुख जाये।

फिर हम गुरद्वारे निकल पड़े ।रास्ते भर हमको छोटी छोटी नालियों में से भाप निकलती हुई दिखाई दे रही थी फिर हमने देखा सभी दुकानो पर आग नहीं जल रही है नालियो के जरिये गर्म पानी पहुँच रहा है और भाप में सबकुछ पक रहा है।यहाँ ज्यादा होटल और ढाबे नहीं है।और जो है वो भी साधारण ।

गुरद्वारे में भी गर्म पानी और ठन्डे पानी के कुण्ड बने थे लेडिस और जेन्स के अलग अलग बाथरूम बने थे पानी की मोटी धार भी आ रही थी जिसमें मर्द लोग स्नान कर रहे थे ।पास ही शिवजी का मन्दिर भी हऐ

फिर हम मेन गुरद्वारे में गए जो 3री मंजिल पर था ।
क्रमशः---

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

फिर मिलूंगी कब ???



फिर मिलूंगी कब ???
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मैं तुमसे फिर कब मिलूंगी ?
 कब ! कब ???
जब चन्द्रमा अपनी रश्मियाँ बिखेर रहा होगा तब ।
या जब जुगनु टिमटिमा रहे होंगे ?
या जब रात का धुंधलका छाया होगा ?
या जब दूर सन्नाटे में किसी के रोने की आवाज़ होगी तब ?
या कहीं पास पायल की झंकार  होगी ?
या चूड़ियों की कसमसाहट होगी तब  ?
क्या मैँ तुमसे मिल  पाउंगी ---?


तीसरे पहर की वो अलसाई हुई सुबह ---
उस सुबह में पड़ती ओंस की नन्ही नन्ही बूंदें---
 दूर~~पनघट से आती कुंवारियों की हल्की सी चुहल--
या रात की रानी की बेख़ौफ़ खुशबु ---
 नींद से बोझिल मेरी पलकें और
उस पर सिमटता मेरा आँचल...?
बोलो ! क्या मैं तुमसे तब मिल पाउंगी ..?


सावन की मस्त फुहारों के बीच 
झूलों की ऊँची उड़ानों के साथ
पानी से भीगते दो अरमानों के साथ 
या हवा में तैरते कुछ सवालों के साथ
क्या, तब मैं तुमसे मिल पाउंगी ?


थरथराते होठों के साथ
सैज पर बिखरी कलियों के साथ
मिलन के मधुर गीतों के साथ 
ढ़ोलक पर थिरकती उँगलियों के साथ
या गूँजती शहनाई की लहरियों के साथ
क्या सच में ! मैं तुमसे मिल पाउंगी ----?

इन्हीं उधेड़े हुए कुछ पलो के साथ

 कुछ गुजरी ,कुछ गुजारी यादों के साथ
खामोश गाती ग़ज़लों के साथ 
आँखों से बह निकले तिनकों  के साथ 

कुछ यू ही अलमस्त ख्यालों के साथ
क्या हम फिर मिल पायेगे....

क्या हम मिल पायेगे ...💓