*मन्दसौर का पशुपतिनाथ मन्दिर*
पशुपतिनाथ भगवान
आज मैँ आपको अपने बचपन के शहर मंदसौर ( मध्य प्रदेश ) की सैर करवा रही हूँ :---
मैँ मन्दसौर 4 साल रही हूँ, जब मैँ 9th में थी तब इस शहर में मेरे पापा का ट्रांसफर हुआ था .. मेरे पापा पुलिस डिपार्टमेंट में थे यहाँ के नई आबादी पुलिस स्टेशन पर अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे । ,वही पीछे हमारा छोटा सा सरकारी बंगला था। .....आजकल यहाँ पुलिस हेड क्वार्टर बना हुआ है ।
पुलिस विभाग जिला मन्दसोर संभाग को माल वाला संभाग कहते है क्योकि यहाँ अफीम की खेती होती है और जब अफीम उगती है तो तस्करी भी होती है ।
पुलिस विभाग जिला मन्दसोर संभाग को माल वाला संभाग कहते है क्योकि यहाँ अफीम की खेती होती है और जब अफीम उगती है तो तस्करी भी होती है ।
1974 में (Ncc कैप्टन ) उस समय के S P पुलिस और केंद्रीय नेता के साथ मैं
मध्यप्रदेश जिसे भारत का दिल कहते है ,,,,, यह शहर इसी राज्य का जिला है ..... बड़ा शहर है..... इसको गेहूं और लहसुन की बड़ी मण्डी के रूप में जाना जाता है । यहाँ प्राकृतिक खनिज सम्पदा भी बहुत है सफ़ेद पेन्सिल स्लेट यहाँ की खनिज सम्पदा है और पेन्सिल बनने के कारखाने भी काफी है ।
यहाँ 2 चीजे बहुतयात में होती है एक तो लहसुन जिसे सफ़ेद सोना कहते है और दूसरी अफीम जिसे काला सोना कहते है .....कई लोग सफ़ेद स्लेट को भी सफ़ेद सोना कहते है ।
अफ़ीम की खेती करने के लिए सरकार की परमिशन जरूरी होती है ,जब अफ़ीम के पट्टे सरकार देती थी तब हमारे स्कूल की छुटियां होती थी (पट्टे देना मतलब अफीम की खेती करने की परमिशन देना ) क्योकि स्कूलों में ही लोगों को पट्टे दिए जाते थे उसके बगैर खेती करना गैर क़ानूनी था ........ काफी मात्रा में किसान अपनी बैलगाड़ियों से आते थे तब हम छुट्टियों का मजा लेते थे ।
अफ़ीम की खेती करने के लिए सरकार की परमिशन जरूरी होती है ,जब अफ़ीम के पट्टे सरकार देती थी तब हमारे स्कूल की छुटियां होती थी (पट्टे देना मतलब अफीम की खेती करने की परमिशन देना ) क्योकि स्कूलों में ही लोगों को पट्टे दिए जाते थे उसके बगैर खेती करना गैर क़ानूनी था ........ काफी मात्रा में किसान अपनी बैलगाड़ियों से आते थे तब हम छुट्टियों का मजा लेते थे ।
जब खेतों में अफ़ीम के फूल आते थे तो तबियत खुश हो जाती थी। ...क्योकि रंग बिरंगे फूलों से सारे खेत सज जाते थे ....फूल के बाद उसमे फल लगते थे जिन्हे डोडे कहते है । जब डोडे कच्चे ही रहते है तो उनमें ३ या ४ लाईने खींच देते है जिनसे दूध सा निकलता है और धीरे धीरे वो दूध जम जाता है ,जब अच्छी तरह से दूध जम जाता है तो डोडे तोड़ लेते है और उस जमे हुए दूध को निकलते है जो अफीम होती है। ....
उन डोडो में भी खसखस भरी होती है जिसे पोस्तादाना कहते है। . कहते है उन डोडो में भी नशा होता है यदि उनको उबालकर प्रयोग किया जाय तो काफी नाश आता है । ,नशा करने वाले इसका प्रयोग करते है वैसे यदि किसी को दस्त लग जाये तो इनको उबालकर पिने से ठीक हो जाते है ।
उन डोडो में भी खसखस भरी होती है जिसे पोस्तादाना कहते है। . कहते है उन डोडो में भी नशा होता है यदि उनको उबालकर प्रयोग किया जाय तो काफी नाश आता है । ,नशा करने वाले इसका प्रयोग करते है वैसे यदि किसी को दस्त लग जाये तो इनको उबालकर पिने से ठीक हो जाते है ।
जिला मन्दसौर यहाँ के फेमस मन्दिर से भी प्रसिध्य है । यह एक शिव मन्दिर है जिसे पशुपतिनाथ मन्दिर कहते है। वैसे नेपाल में भी पशुपतिनाथ (भगवान शंकर ) का मन्दिर है पर उसमें भगवान शिव की चारमुखी मूर्ति है जबकि यहाँ पर अष्टमुखी मूर्ति है जो की लिंग रूप में स्थापित है। ...
यह मंदिर शिवना नाम की नदी के तट पर बसा है। .... यह मंदिर पश्चिममुखी हैं.... इस मन्दिर की ऊंचाई 101 फिट है ... 90 फ़ीट लम्बा और 30 फ़ीट चौड़ा है। मन्दिर के शिखर पर 100 किलो वजनी सोने का कलश है जिस पर 51 तोला सोने का पतरा राजमाता श्रीमती विजयाराजे सिंधियां द्वारा 26 जनवरी 1966 को चढ़ाया गया था.....
और यह एक मात्र ऐसा मन्दिर है जहाँ सावन के हर सोमवार को शिवजी का सर्व मनोकामना सिद्धि अभिषेक होता है जो की विश्व के किसी भी शिव मन्दिर में नहीं होता।
ये शिव मूर्ति 7.5 फिट है और इस मूर्तिपर बाल्यावस्था, युवावस्था, अधेड़ावस्था और वृध्यावस्था की झलक दिखलाई देती है। यहाँ हर साल कार्तिक एकादशी से मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी तक एक मेले का आयोजन होता है जहाँ नाना प्रकार के झूले होते है ।लोग दूर दूर से इस मेले का आनन्द उठाने आते है ।
इतिहास :--
इस मूर्ति का इतिहास 75 साल पुराना है बड़ा ही विचित्र है ...कहते है--- एक धोबी को स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन दिए और कहा की -- ''जिस पत्थर पर तू कपडे धोता है वो मैँ हूँ ! तू यही मेरी प्राण प्रतिष्ठा करवा दे ।"
तब धोबी ने सबको अपने स्वप्न की बात बताई तो लोगो ने पहले तो विश्वास नहीं किया पर उसके अडिंग विश्वास को देखते हुए 19 जून 1940 को उस पत्थर को सीधा किया तब ये 1500 साल पुरानी प्रतिमा के दर्शन हुये पर किसी ने स्थापित नहीं किया। ....
21 साल तक ये मूर्ति शिवना नदी के किनारे ज्यो की त्यों पड़ी रही फिर 23 नवम्बर 1961 को चैतन्य आश्रम के स्वामी प्रत्याक्षा्नन्द महाराज ने इस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई और पशुपतिनाथ नामकरण किया। ....
इस मन्दिर की धारणा यह है की हर बारिश में शिवना नदी अपना प्रचण्ड रूप इख़्तियार कर लेती है और भगवान पशुपतिनाथ के पैरो को छूने मंदिर तक आती है और उस समय शहर में बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है कई बार तो शहर की गलियो में नावे चलने लगती है लेकिन भगवान पशुपति के पैर छूकर पानी तुरन्त उतर जाता है । उस समय पुलिस वाले बेचारे रातदिन लगे रहते है ।
इस मन्दिर की धारणा यह है की हर बारिश में शिवना नदी अपना प्रचण्ड रूप इख़्तियार कर लेती है और भगवान पशुपतिनाथ के पैरो को छूने मंदिर तक आती है और उस समय शहर में बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है कई बार तो शहर की गलियो में नावे चलने लगती है लेकिन भगवान पशुपति के पैर छूकर पानी तुरन्त उतर जाता है । उस समय पुलिस वाले बेचारे रातदिन लगे रहते है ।
॥ जय महाराज पशुपतिनाथ की जय ॥
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