*।।केरला-डायरी।।*
भाग--1
27 दिसम्बर 2024
जैसे ही हमारी ट्रेन कोच्चीवेळी पहुँची हम सब अलग अलग कोच के मुसाफिर स्टेशन पर उतरकर बाहर की ओर निकल पड़े... सभी 18 मेम्बर (कुछ को छोड़कर)एकदूसरे से अनजान...?
वैसे कहने को हमसब 4 महीने से व्हाट्सएप की आभासी दुनियां के जरिये एक दूसरे को जान चुके थे या कोशिश की थी।पर असली धरातल पर मिलन आज हो रहा था।
कुछ संकोच!कुछ अनजानापन! शर्म ओर सत्कार की मिलींजुली भावनाओ से ओतपोत हमारी सवारी यानी कि बस चल पड़ी अपने आगे के सफर पर...
ओर फिर बीच मे आया एक झरना ! सब छलांग मार कर झपट पड़े। जैसे वो कोई रसगुल्ला हो जिसे हर कोई गटकना चाहता हो। वो अलग बात है कि वहाँ रसगुल्ला तो मिला नही पर सबने पाइनएप्पल को ही रसगुल्ला समझ झपट्टा मार दिया।अब हर आदमी के हाथ मे पाइनएप्पल की एक2 पुड़िया थी और सब उसको चूस चूस कर ऐसे खा रहे थे जैसे ये अनोखी चीज इन्होंने जिंदगी में पहली बार खाई हो😂😂🤣
विशेषकर सोनाली की तो पो- बारह थी। उसको तो ये फल किसी दूसरी दुनियां का लग रहा था जो यहाँ से जाते ही गुमनामी के दलदल में गुम होने वाला था ,तभी तो मैंने पूरे 8 दिन बेचारे सन्दीप जी को उसकी हजूरी में एक एक्स्ट्रा पैकेट हाथ मे लिए एक पैर पर खड़े देखा था।बेचारे मेरे पप्पूकुट्टी☺️
हम सब यानी कि मैं 1दिन ओर बाकी सब 2 दिन के सफर से बिल्कुल बेहाल नही थे बल्कि पूरी तरह फ्रेश बगैर नहाए धोए एकदम शाहरुख की तरह बाहें फैलाये दूर से वाटरफॉल के पोज ले रहे थे जैसे कि अभी अभी फॉल का ठंडा पानी हमारे ऊपर आने वाला हो और हम उसी के सहारे फ्रेश होकर अपनी आगे की यात्रा शुरू करेंगे। परन्तु इन ख्याली पुलावों में कोई टेस्ट नही था और हम उसी तरह बासी कपड़े ओर बिना लिपिस्टिक के लौटकर आ गए अपनी-अपनी सीट पर आगे के सफर के लिए।
अब हम सब बस में नींद के झोको के साथ चुपचाप आगे बढ़ रहे थे बगैर कोई हंगामा किये हुए क्योकि अभी तक हम सब एकदूसरे से अनजान थे सब जानते हैं वेल एजुकेटेड लोग हंगामा नही करते😂🤣😂🤣😂
अचानक एक जगह हमको एक बड़ी सी भेसवा दिखी साथ ही एक चूहा भी ओर फिर सभी वेल एजुकेटेड लोग चिल्ला उठे–– "रुको"
अचानक नींद की खुमारी से जागे हमारे एडमिन ने बस रुकवा दी और हैरत से सबको देखने लगे।सबने भेसवा के साथ फोटू खिंचवाने की सिफारिश कर डाली। अब भला,भेसवा के साथ भी कोई फोटू खिंचवाता हैं ?😷🤦वैसे मैंने भी खिंचवाई थी पर आजतक मिली नही🙆
खेर, दिल पर पत्थर रख के हम आगे स्पाइसी गार्डन को चले ....एक काला सा मजबूत मद्रासी हमको वही चीजो के पेड़ बता रहा था जो उसके पास बेचने को रखी थी ।मैं समझ गई ये अपना उल्लू सीधा कर रहा है वैसे मेरे साथ के सभी लोग समझ गए थे ये बात मुझे बाद में पता चली जब कोई भी उसके झांसे में नही आया और सबने किनारा कर के बढ़िया मसालेदार चाय पीकर उस मसाले वाले को अलविदा कहा।बेचारा सोच रहा होगा कि आज किस का मुंह देखकर उठा था जो एक भी ग्राहक नही फंसा😂🤣😂😂
रात हो चली थी हम सब पंछी अपने डेरे में लौट रहे थे उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजरते आखिर हमारी आज की मंजिल आ चुकी थी । एक छोटे से होटल के आंगन में हमारी बस रुकी ओर हम सब अपने अपने बड़े -बड़े कमरों में घुस गए ।
कल के अगले सफर के लिए ।
क्रमशः🙋
बाकी अगले एपिसोड में हम लोग।