सफर और हमसफ़र
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ट्रेन चलने को ही थी कि अचानक कोई जाना पहचाना-सा चेहरा जनरल बोगी में आ गया... मैं अकेली सफर कर रही थी... सब अजनबी चेहरे थे.. स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जनरल डिब्बे में ही बैठना पड़ा...
मगर यहां ऐसे हालात में उससे मिलना...अजीब हालत थी मेरी ...लेकिन जिंदगी में ये पल मेरे लिए एक संजीवनी के समान थे।
जिंदगी भी कमबख्त कभी-कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है... ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना भी इंसान नही कर पाता।
वो आया और मेरे पास ही खाली पड़ी सीट पर बैठ गया...ना मेरी तरफ देखा,ना पहचानने की कोशिश की... कुछ इंच की दूरी बना कर चुप चाप पास आकर बैठ गया...बाहर सावन की रिमझिम लगी थी...बारिश जोरदार हो रही थी और ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया था...इस कारण वो कुछ भीगा हुआ लग रहा था..मैने कनखियों से नजर बचा कर उसको देखा....उम्र के इस पड़ाव पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही खूबसूरत था..हां, कुछ भारी हो गया था..मगर इतना ज्यादा भी नही की पहचान भी न सकूं।
फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया।
चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ...उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था...चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे।
मैंने जल्दी से सर पर स्कार्फ बांध लिया...बालों को डाई किए काफी दिन हो गए थे... वैसे भी आलस के कारण आजकल मैंने बालों को रंगना कम कर दिया था.. लेकिन मेरे सर में ज्यादा तो नही पर थोड़े-से बाल सफेद दिख रहे थे।
थोड़ी देर बाद मैं उठकर बाथरूम चली गई... हैंड बैग से फेसवाश निकाला चेहरे को ढंग से धोया फिर शीशे में चेहरे को गौर से देखा; उसको देखकर मेरे चेहरे पर एक अजीब-सी खुशी नाच रही थी...मैने खुश होकर शीशा वापस बैग में रख लिया और अपनी सीट पर आ गई।
लेकिन ये क्या? वो साहब तो खुद खिड़की के पास मेरी सीट पर अपना आसान लगाए बैठे हुए थे...मुझे आया देख, मेरी तरह देखा भी नही बस बिना देखे ही कहा--- "सॉरी, भाग कर चढ़ा था तो पसीना आ गया था...थोड़ा सुख जाए फिर अपनी जगह पर बैठ जाऊंगा।"
वह फिर अपने मोबाइल में लग गया... उसने मेरी इच्छा जानने की कोशिश भी नही की...मुझे उसकी यही बात हमेशा बुरी लगती थी...।
ख़ेर, कुछ भी हो! पर ना जाने क्यों मैं आजतक उसको भूला नही सकी थी...एक वो था जो सिर्फ दस सालों में ही मुझे भूल गया था...फिर मैंने सोचा शायद उसने अभी तक मुझे गौर से देखा नही हो, देखेगा तो जरूर पहचान लेगा..थोड़ी मुटिया गई हूँ...पर इतनी भी नही की वो मेरा चेहरा ही भूल जाये.. मैं ओर उदास हो गई ..जिस शख्स को जीवन में कभी भुला नही पाई उसको मेरा चेहरा ही याद नहीं😔
वो शादीशुदा है...मैं जानती हूँ..मैं भी विवाहिता हूं, मग़र इसका मतलब यह तो नही कि अपने खयालों को, अपने सपनों को जीना ही छोड़ दूं...कितनी तमन्ना थी कि कुछ पल उसके साथ गुजारूं...।
आज वही शख्स मेरे पास बैठा हैं,लेकिन अजनबी बनके😪 वो जिसे स्कूल के टाइम से मैंने दिल में बसा रखा था.. आज भी फेसबुक पर उसकी सारी तस्वीरें छुपकर देखा करती हूं ... उसकी हर कविता, हर शायरी में खुद को खोजा करती हूं...खुद को ही पाती हूँ लेकिन, वह तो आज मुझे पहचान ही नही रहा😔 मैं थोड़ी उदास हो जाती हूँ।
हम में प्यार जैसा कुछ था ये तो पता नही,पर वो हरदम मेरे साथ रहता था..मेरी केयर करता था..मुझे भी उसके बगैर एक मिनट अच्छा नही लगता था...हम दोनों का साथ स्कूल से कालेज तक रहा.. कॉलेज में भी हमदोनों मशहूर थे..हमारे ठहाकों से कॉलेज की सुनी बिरादरियां गूंजती रहती थी.. कोई दिन ऐसा नही जाता था कि हम मिलते न हो...हमेशा हर पार्टी या पिकनिक हम दोनों के बगैर सुनी होती थी।
फिर कॉलेज छुटा तो मेरी शादी हो गई और वो फ़ौज में चला गया... कोई गिला या शिकवा नहीं था,मैं खुश थी.. फिर सुना कि उसकी भी शादी हो गई...जब भी मायके जाती तो उसकी कुछ न कुछ खबर मिल ही जाती थी।
बस ऐसे ही जिंदगी गुजरती गई, न कोई मलाल न कोई खुशी।
आधे घण्टे से ऊपर हो गया.. वो आराम से खिड़की के पास मेरी सीट पर बैठा अपने मोबाइल में लगा रहा.. उसने मुझे देखना तो दूर अपना चेहरा तक ऊपर नही किया था😔 सारे मर्द ऐसे ही होते है😠अब मुझे गुस्सा आने लगा था।
लेकिन अब मैं अपने मोबाइल को देखने लगी.. कभी अपने मोबाइल को देखती कभी उसकी तरफ देखती... फेसबुक खोलकर उसकी तस्वीर को भी मिलाया वही था; पक्का वही! शक की कोई गुंजाइश ही नही थी..
वैसे भी हम महिलाएं किसी को पहचानने में कभी धोखा नही खा सकती...20-30 साल बाद भी सिर्फ आंखों से ही पहचान लेती हैं ☺️
फिर और कुछ वक्त गुजरा लेकिन माहौल वैसा का वैसा ही था मैं बस पहलू बदलती रही और वो तटस्थ अपना मोबाइल में उलझा रहा।
इतने में पता नहीं किधर से अचानक टीटी आ गया... सबसे टिकिट पूछ रहा था।
मैंने अपना टिकिट दिखा दिया। उससे पूछा तो उसने कहा--" मेरे पास नही है।"
टीटी बोला-- "फाइन लगेगा"
वह बोला--" ok लगा दो"
टीटी बोला---" कहाँ का टिकिट बनाऊं?"
उसने जल्दी से जवाब नही दिया... मेरे हाथों की तरफ देखने लगा..
मैं कुछ समझी नही।
उसने मेरे हाथ में थमी टिकिट को गौर से देखा फिर टीटी से बोला--- "कानपुर।"
टीटी ने कानपुर की टिकिट बना दी.. और पैसे लेकर चला गया।
अब वो फिर अपने मोबाइल में तल्लीन हो गया।
मैं आवक -सा उसका चेहरा देखती रही...आखिर मुझसे रहा नही गया... मैंने पूछ ही लिया..."कानपुर में कहाँ रहते हो?"
वह मोबाइल में नजरें गढ़ाए हुए ही बोला-- " कहीँ नही"
मैं फिर बोली--- "किसी काम से जा रहे हो"
वह बोला---"हां"
अब मैं चुप हो गई...वह अजनबी की तरह बात कर रहा था उसने अपनी गर्दन एक बार भी नहीं उठाई..
मुझे गुस्सा आ गया और मैं चुप हो गई।
कुछ देर चुप रहने के बाद आखिर मैंने पूछ ही लिया--- "वहां शायद आप नौकरी करते हो?"
उसका जवाब था---"नही"?
अब मुझसे रहा नही गया...मैंने हिम्मत कर के पूछा ही लिया---"तो किसी से मिलने जा रहे हो?"
उसका वही संक्षिप्त उत्तर-- "नही"
आखिर उसका जवाब सुनकर मेरी फिर हिम्मत नही हुई कि मैं फिर उससे कुछ पूछूँ ☹️ अजीब आदमी हैं... बिना काम सफर कर रहा था..
मैं भी अपना मुँह फेर कर मोबाइल में लग गई...भाड़ में जा!!😠
काफी देर तक मैंने उससे कुछ नही पूछा...ट्रेन अपनी रफ्तार से भागी जा रही थी और मैं मोबाइल में खोई हुई कोई रोचक कहानी पढ़ रही थी कि अचानक उसकी आवाज़ आई-- "अब ये भी पूछ लो की मैं क्यों जा रहा हूँ कानपुर?"
मैं उछल पड़ी...मेरे मुंह से जल्दी से निकला--- "बताओ, क्यों जा रहे हो?"
फिर अपने ही उतावलेपन पर मुझे शर्म-सी आ गई😀
उसने थोड़ा सा मुस्कराते हुये मुझे देखा और बोला--- " एक पुरानी दोस्त मिल गई थी जो आज अकेले सफर पर जा रही थी.. फौजी आदमी हूँ... सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है... उसको अकेले कैसे जाने देता... इसलिए उसे कानपुर तक छोड़ने जा रहा हूँ। " उसने एक दिलकश मुस्कान बिखेर कर इतनी बातें सहज भाव से बोल दी।
लेकिन उसकी बातें सुनकर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा...मैं आवक हो उसकी शक्ल देखने लगी...फिर मन के भावों को दबाने का असफल प्रयत्न करते हुए मैंने हिम्मत कर के फिर पूछा-- " कहाँ है वो दोस्त?"
कमबख्त फिर मुस्कराता हुआ बोला--" यहीं ! मेरे पास बैठी है ना"
😲😲😲😲😲
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया..
मुझे सबकुछ समझ में आ गया था कि क्यों उसने टिकिट नही लिया? क्योंकि उसे तो पता ही नही था मैं कहाँ जा रही हूं... सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए वह दिल्ली से कानपुर का सफर कर रहा था...ओर मैं न जाने क्या -क्या सोचे जा रही थी... खुशी से मेरीआंखों में आंसू आ गए...दिल के भीतर एक गोला-सा बना और फट गया😢 परिणाम में आंखे तो भिगनी ही थी।
वो बोला--- "रो क्यों रही हो?"
मैं बस इतना ही सोच पाई---"तुम मर्दजात ऐसे ही होते हो... कुछ समझ नही सकते"।
मैंने खुद को संभालते हुए कहा-- "शुक्रिया, मुझे पहचानने के लिए और मेरे लिए इतना टाइम निकालने के लिए"😊
वह बोला---"मैंने तुमको दिल्ली के प्लेटफार्म पर ही देख लिया था...तुम मुझे पहचानोगी या नही, यही सोच रहा था कि ट्रेन का समय हो गया,ओर मैं ट्रेन में घुस गया... प्लेटफार्म पर तुम अकेली घूम रही थी.. मैंने देखा तुम्हारे साथ कोई नही हैं तो मुझे तुमको सुरक्षित घर पहुंचाना ही था... आखिर फौजी हूं और ये मेंर कर्तव्य भी था...।" उसकी रौबदार आवाज़ ओर आवाज़ में अपनापन देखकर मुझे खुशी हुई।☺️ "मैं करती भी क्या ? उनको छुट्टी नही मिल रही थी...और भाई यहां दिल्ली में आकर बस गया... राखी बांधने तो आना ही था।" मैंने अपनी मजबूरी बताई।
"ऐसे भाई को राखी बांधने आई हो जिसको ये भी फिक्र नही कि मेरी बहिन इतना लंबा सफर अकेले कैसे करेगी?" वो थोड़ा गुस्सा हुआ।
" क्या करे, भाई शादी के बाद भाई रहे ही नही, भाभियों के हो गए.. मम्मी पापा जिंदा होते तो ये नोबत ही नही आती...अब तो अपना फर्ज निभाने आ जाती हूँ।" कह कर मैं उदास हो गई।☹️
"तुम अपनी सुनाओ कैसे हो?" मैंने उदासी छोड़कर पूछा।
"अच्छा हूँ, कट रही है जिंदगी" उसका सटीक जवाब।
"मेरी याद आती थी क्या?" मैंने हिम्मत कर के पूछा ही लिया।
वो चुप हो गया...कुछ नही बोला तो मैं फिर बोली---"सॉरी, यूँ ही पूछ लिया...अब तो हम परिपक्व हो गए हैं ऐसी बातें कर सकते है..."मैंने शर्माते हुए बोला।
वो कुछ नहीं बोला उसने अपनी शर्ट के बाजू की बटन खोली और हाथ में पहना तांबे का कड़ा दिखाया जो मैंने ही फ्रेंडशिप -डे पर उसे दिया था वो बोला, " याद तो नही आती पर कमबख्त ये तेरी याद दिला देता हैं।" ओर वो जोर जोर से हंसने लगा।
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कड़ा देख कर मेरा दिल भी बल्लियों उछलने लगा दिल को बहुत शुकुन मिला... की आज भी मैं उसको याद हूं... फिर मैं हंसकर बोली-- "कभी तुमने सम्पर्क क्यों नही किया?"
वह बोला---" डिस्टर्ब नही करना चाहता था... तुम्हारी अपनी जिंदगी है और मेरी अपनी जिंदगी है।"
उसकी ये बात ठीक थी ,हम दोनों की अपनी अपनी गृहस्थी थी।
फिर सहज हो हम आपस में बातें करने लगे काफी देर बाद मैंने डरते-डरते पूछा---" तुम्हें छू लुँ क्या"?
वो मुस्कुराया ओर बोला--- " पाप लगेगा?"
मैं भी मुस्कुराकर बोली---" नही! छूने से पाप नही लगता।"☺️
फिर हम दोनों पहले की तरह बिंदास बातें करते रहे .. कानपुर तक हाथो को हाथ मैं पकड़े बतियाते रहे दिन दुनिया से बेखर...
ये एक दिन मेरी जिंदगी का एक ऐसा यादगार दिन बन गया जिसे आखरी सांस तक नही भुला पाऊंगी।
वह मुझे सुरक्षित घर छोड़ कर चला गया...रुका नही...बाहर से ही चला गया..उसको अपनी डियूटी पर, जम्मू जो जाना था।
उसके बाद उससे फिर कभी मुलाकात नही हुई ...क्योंकि हम दोनों बातों में इतने मशगूल थे कि हमदोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर ही नही लिए थे। 😪😪😪
हांलांकि हमारे बीच कभी भी वैसा प्यार नहीं था...बस एक पवित्र सा रिश्ता था.. जिसका कोई नाम नही था ...ओर हम दोनों को रिश्तों की गरिमा बनाए रखना अच्छे से आता था।
कुछ महीनों बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि वो देश के लिए शहीद हो गया...क्या गुजरी होगी मुझ पर उस वक्त वर्णन नही कर सकती...मेरी आँखों से दो बूंद गिर गई..शायद ये उसके शुक्राने के एवज में थी या एक पाक रिश्ते को श्रद्धांजलि थी😢
फिर लोक लाज के डर से मैं उसके अंतिम दर्शनों पर भी नही जा सकी।
आज उससे मिले एक साल गुजर चुका है.. आज भी रक्षाबन्धन का दूसरा दिन है ओर मैं अकेले ही सफर कर रही हूँ... दिल्ली से कानपुर जा रही हूं। जानबूझकर जनरल डिब्बे का टिकिट लिया है ताकि फिर से उसे देख सकूं आज न जाने दिल क्यों आस पाले बैठा है कि आज फिर वो आएगा और पसीना सुखाने के बहाने मेरी बगल में बैठ जाएगा ...लेकिन ये मेरा भ्रम हैं😢
जाने वाले कभी लौट कर नही आते।
एक सफर वो था जिसमें वो मेरा हमसफ़र था।
एक सफर आज है जिसमें उसकी यादें मेरी हमसफ़र है 😥😥😥
---दर्शन के दिल से