मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 19 दिसंबर 2015

मैं तुमसे फिर कब मिलूंगी ?


फिर मिलूंगी कब ????











शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

मनिकरण यात्रा 4

# मणियों की घाटी#
मनिकरण
भाग =4
हम शिमला से कल चले थे रास्ते में  2 बार हमारी कार का टायर पंचर हुआ । रात करीब 11 बजे तक हम मनिकरण पहुंचे अब आगे :-----
सुबह होटल के गरम पानी के कुण्ड में हम सबने स्नान किया और तैयार हो पैदल ही  गुरद्वारे चल दिए  ।इक्का- दुक्का दुकाने ही थी चाय और नाश्ता की ज्यादा होटल वगैरा नहीं थे । हम पहले गुरद्वारा गए तीसरी मंजिल पर बना गुरद्वारा बहुत ही सिम्पल था चारोँ और अनेक देवी देवताओ के फोटु लगे हुए थे हम माथा टेक् कर नीचे आ गए ----
नीचे शिवजी का छोटा सा मन्दिर था वही पास में कुण्ड बना हुआ था जिसमें तेज पानी उबल रहा था चारोँ और रेलिंग भी लगी हुई थी और उस कुण्ड में अनेकों पोटलियाँ बंधी हुई थी जिसमें चावल और आलू लटके हुए थे ।वही पता चला की लोहे के बड़े बड़े हंडो में गुरद्वारे का लंगर भी पक रहा है ।
हमने भी आलू लेकर एक पोटली में लटका दिए 15 मिनट में आलू उबल जायेगे।15 मिनट हमने कुछ फोटु खिंचने में गुजारे और आलू तैयार हो गए ।
अब भूख लगने लगी थी सुबह होटल में सिर्फ बेड टी पी थी तो हम लंगर झकने गुरुद्वारे साहेब के लंगर हॉल चल दिए।आलू भी वही खायेगे।
कहते है मनिकरण आकर यदि गुरद्वारे का लंगर नहीं छक्का तो आनन्द अधूरा रह जायेगा क्योकि यहाँ सारा खाना गर्म पानी की भाप में पकता है
कहते हैं की एक बार जब गुरु नानक जी अपने भ्रमण के दौरान यहाँ आये थे तो शिष्य मर्दाना को भूख लगी तो गुरूजी ने कहा की राशन इक्कठा करो शिष्य राशन ले आये पर आग नहीं थी तो गुरुजी बोले एक पत्थर हटाओ पत्थर हटते ही गरम पानी का स्त्रोत फुट पड़ा जिसमें गुरूजी के कहने पर रोटियां बेल कर डाली गई जो पक कर बाहर आ गई तभी से यहाँ खाना भाप में पकता है।
लेकिन हमने वहां रोटियां भाप में पकती हुई देखी जब पंगत में बैठे तो खाने की इतनी वेरायटी देखकर ढंग रह गए क्योकि हमारी थाली में छोले ,राजमा, आलू की सब्जी,चावल,मीठी खिचड़ी, चने की भाजी और चपाती थी। पेट भर लंगर छक कर हम वहाँ से चल दिए अपने गतांक की और ...
और हम मनाली की और चल पड़े ...



रविवार, 8 नवंबर 2015

#मनिकरण#

# मणियों की घाटी #
मनिकरण -- भाग 3

हम शिमला से कार द्वारा मनाली जा रहे थे रास्ते में मनिकरण के दर्शन भी करने की सोची अब आगे::--
मनिकरण कुल्लू से 45 Km है ।भुंतर इसका नजदीकी एयरपोर्ट हैं । भुंतर के पास ही पार्वती नदी और व्यास नदी का संगम है यही पार्वती नदी का पुल पार्वती घाटी और कुल्लू घाटी को जोड़ता हैं 35 किलोंमीटर का ये विहंगम और खतरनाक रास्ता दिलकश नजरो से भरपूर है।

हम रात को 11 या 12 बजे तक मनिकरण पहुंचे।पुरे मनिकरण में कहीं लाईट नहीं थी अँधेरा ही अँधेरा व्याप्त था। ड्रायवर ने एक होटल में एक रूम दिला दिया 3 पलंग लगे थे सब बगैर कपड़े उतारे ही लेट गए क्योकिं लाइट नहीं थी जागकर भी क्या करते सब सो गए ---

सुबह 8 बजे ड्रायवर ने उठाया की जल्दी दर्शन कर लो ताकि टाईम से निकलकर मनाली पहुँच सके वरना कल जैसा हाल होगा । हम भी कल के वाकिये को याद कर के डर से गए और नहाने चल दिए; नहाने के लिए होटल के अंदर ही कुण्ड बना था जिसमें नलों के द्वारा गर्म पानी और ठंडा पानी आ रहा था नजदीक ही बाल्टी और मग रखा था हम सब कपड़े पहने ही कुण्ड में उतर गए  दोनों पानी के मिलन से पानी ज्यादा गरम नहीं लग रहा था  खूब नहाये सब थकान उतर गई । होटल मालिक ने पहले ही बता दिया था की ज्यादा देर तक मत स्नान करना वरना चक्कर आ जायेगे ।मैँ तो फटाफट निकल कर बाथरूम में चली गई पर मिस्टर और बच्चे देर तक नहाते रहे जिससे उनको चक्कर आने लगे ।

कहते है ये गन्धक का पानी होता है जो अत्यधिक गरम होता है जिसमें चर्मरोगों के उपचार की अद्भुत क्षमता बताई जाती है।
हम सब तैयार हुए गर्मी बहुत लग रही थी पर हवा ठंडी थी । मैंने कमरे की बालकनी में कपड़े सुखाये ताकि जब हम वापस आये तो कपड़े सुख जाये।

फिर हम गुरद्वारे निकल पड़े ।रास्ते भर हमको छोटी छोटी नालियों में से भाप निकलती हुई दिखाई दे रही थी फिर हमने देखा सभी दुकानो पर आग नहीं जल रही है नालियो के जरिये गर्म पानी पहुँच रहा है और भाप में सबकुछ पक रहा है।यहाँ ज्यादा होटल और ढाबे नहीं है।और जो है वो भी साधारण ।

गुरद्वारे में भी गर्म पानी और ठन्डे पानी के कुण्ड बने थे लेडिस और जेन्स के अलग अलग बाथरूम बने थे पानी की मोटी धार भी आ रही थी जिसमें मर्द लोग स्नान कर रहे थे ।पास ही शिवजी का मन्दिर भी हऐ

फिर हम मेन गुरद्वारे में गए जो 3री मंजिल पर था ।
क्रमशः---

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

फिर मिलूंगी कब ???



फिर मिलूंगी कब ???
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मैं तुमसे फिर कब मिलूंगी ?
 कब ! कब ???
जब चन्द्रमा अपनी रश्मियाँ बिखेर रहा होगा तब ।
या जब जुगनु टिमटिमा रहे होंगे ?
या जब रात का धुंधलका छाया होगा ?
या जब दूर सन्नाटे में किसी के रोने की आवाज़ होगी तब ?
या कहीं पास पायल की झंकार  होगी ?
या चूड़ियों की कसमसाहट होगी तब  ?
क्या मैँ तुमसे मिल  पाउंगी ---?


तीसरे पहर की वो अलसाई हुई सुबह ---
उस सुबह में पड़ती ओंस की नन्ही नन्ही बूंदें---
 दूर~~पनघट से आती कुंवारियों की हल्की सी चुहल--
या रात की रानी की बेख़ौफ़ खुशबु ---
 नींद से बोझिल मेरी पलकें और
उस पर सिमटता मेरा आँचल...?
बोलो ! क्या मैं तुमसे तब मिल पाउंगी ..?


सावन की मस्त फुहारों के बीच 
झूलों की ऊँची उड़ानों के साथ
पानी से भीगते दो अरमानों के साथ 
या हवा में तैरते कुछ सवालों के साथ
क्या, तब मैं तुमसे मिल पाउंगी ?


थरथराते होठों के साथ
सैज पर बिखरी कलियों के साथ
मिलन के मधुर गीतों के साथ 
ढ़ोलक पर थिरकती उँगलियों के साथ
या गूँजती शहनाई की लहरियों के साथ
क्या सच में ! मैं तुमसे मिल पाउंगी ----?

इन्हीं उधेड़े हुए कुछ पलो के साथ

 कुछ गुजरी ,कुछ गुजारी यादों के साथ
खामोश गाती ग़ज़लों के साथ 
आँखों से बह निकले तिनकों  के साथ 

कुछ यू ही अलमस्त ख्यालों के साथ
क्या हम फिर मिल पायेगे....

क्या हम मिल पायेगे ...💓 







गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

मणियों की घाटी "मनिकरण"

# मणियो की घाटी #


भाग 2
कल शिमला से चले थे और रात हो गई मनिकरण पहुँचने में अब आगे :--
जैसे ही पहाड़ी पर पंचर हुआ हमारी सबकी नींद खुल गई - हम सब गाडी से उतर गए ...
बियाबनं जंगल सर सर की आवाजें बिलकुल फ़िल्मी स्टाइल में ;नदी का शोर , झिंगरुओ की आवाज़ माहौल को और भी भयानक बना रहे थे । दिल घबरा रहा था -"कहाँ फंस गए "?
उस पर आगे को झुके पहाड़ ,रास्ता भी सीमित ! सचमुच डर तो था पर रोमांच भी कम नहीं था ।पहाड़ी जंगल में फिर दौबारा आना कहाँ होगा ।बच्चे  तो मस्त खेलने लगे ।नीचे बहती पार्वती नदी खूब शोर मचा रही थी ।
ड्रायवर बोल रहा था -"मैडम ,यह पार्वती नदी जितनी दिन में शांत होती है रात में उतनी ही भयानक हो जाती है।"मुझे भी लगा दिन में ये पहाड़ कितने खूबसूरत लगते है और रात में उतने ही भयानक ...
पंचर लग गया था (अब ठीक है ) और हम सब फटाफट चल दिए।
मनिकरण के पास जब पहुंचे तो दूर से ही काफी भाप दिखाई दे रही थी । एकदम अंधकार ! कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ।सिर्फ सफ़ेद सफ़ेद धुँआ दिखाई दे रहा था।चारों और अंधकार
ड्रायवर ने बताया शायद लाईट नहीं है शहर में ;आपको कहाँ उतरना है अब अंधकार में कुछ सूझ नहीं रहा था 11बजे ही पूरा शहर सोया हुआ था ।हमने भी उसी को बोला कोई होटल में ले चल वही रुकते है।वो एक होटल में ले गया ।बड़ी मुश्किल से टॉर्च की सहायता से कमरें में पहुंचे  । रात गुजारनी थी सो सब थके हुए फटाफट सो गए।
कल दिन में मनिकरण का वर्णन ...
क्रमशः ---




मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

# मनिकरण #

#मणियों की घाटी#
मनिकरण

भाग 1
हरी भरी घाटियां,कल-कल बहते झरनें, शांत झीलें ,आसमान से होड़ लगाती चोटियां । फूलों की चादर ओढे वादियां और देवदारों से घिरे धने रास्ते ....प्रकृति की अद्भुत कारीगिरी के बीच बसा है देवभूमि हिमाचल प्रदेश का रमणीय तीर्थस्थल --- "मणिकरण "

ऊँचे ऊँचे पर्वतों के बीच बहती पार्वती नदी और व्यास नदी । इन्ही नदियों के बीच बसा है मणिकरण ...
हम 1994 में जब शिमला से मनाली जा रहे थे तो रास्ते में ड्रायवर के कहने पर मणिकरण जाने को तैयार हो गए।तब हमको इसके बारे में खास जानकारी नहीं थी ।सिर्फ ड्रायवर के कहने पर की "वहां आप लोगों का शानदार गुरद्वारा है और गर्म पानी के कुण्ड है।" इतनी जानकारी काफी थी सुबह 11 बजे नाश्ता कर के हम शिमला से निकल पड़े पर मंडी आते आते हमारी कार का पहिया पंचर हो गया । पंचर बनवाने में काफी वक्त निकल गया । सुंदर नगर जब पास से निकला तो दूर बर्फ के पहाड़ दिखाई देने लगे जिन्हें देखकर बच्चे चिल्लाने लगे 'सफ़ेद पहाड़ सफ़ेद पहाड़' नजदीक आये तो लगा ये तो बर्फ के पहाड़ है । उस समय बर्फ देखने का हम सबका पहला मौका था।हलाकि पहाड़ काफी दूर थे पर चोटियां चमक रही थी ।मुझे तो सारी कायनात बड़ी ही रंगीली लग रही थी । ठंडी हवा के थपेड़े दिलों दिमाग को तरो ताज़ा कर रहे थे ।सुंदर नगर अपने नाम को सार्थक कर रहा था। पास ही बहती नदी कल- कल ध्वनि निकालती निरन्तर बह रही थी ।

कार रोककर हमने एक दुकान से कुछ फ्रूट ख़रीदे जो बहुत ही फ्रेश लग रहे थे और वो थे भी फ्रेश ;खाने में भी रस भरे थे कार निरन्तर दौड़ती जा रही थी  उस समय हमने ये कार शिमला से मणिकरण फिर मनाली ,रोहतांग ,ज्वालादेवी होते हुए कालका छोड़ने के लिए 5000 में बुक की थी।

सफ़र बड़ा ही रोमांचक हो गया था रास्ते में कार रोक रोक कर बच्चे किसी पेड़ के गिरे हुए सूखे फूल उठकर रख रहे थे लकड़ी जैसे दिखलाई दे रहे बड़े बड़े फूल बड़े ही खूबसूरत लग रहे थे।इसी कारन रास्ते में ही अँधेरा हो गया ।हम किसी पहाड़ से उत्र रहे थे की फिर गाडी का पहिया पंचर हो गया। घुप अँधेरा !कोई वाहन भी क्रास नहीं हो रहा था और निचे बहती पार्वती नदी का भयानक शोर दिल ही दिल में हम सब डर गए । क्योकि पहाड़ी एरिये में हमारा पहला सफ़र था।बड़ी मुश्किल से टॉर्च के द्वारा पहिया बदला गया और हम करीब 11 बजे मणिकर्ण पहुँचे...
क्रमशः:--

सोमवार, 7 सितंबर 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 4


एक बार फिर डलहौजी की यात्रा

 भाग 4  







28 सितम्बर  2014 

हम सब आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी एक्सप्रेस से पठानकोठ जा रहे थे । 29  को हम सुबह पठानकोठ पहुंचे फिर कार से डलहौजी फिर वहां से रात को खजियार पहुंचे । रात को खज्जियार में गुजरा ; सुबह हम वापस डल्हौजी को निकल पड़े ;अब आगे :---

30 सितम्बर  2014 

दोपहर तक हम खजियार के मैदान में घूमते रहे फिर वहाँ से निकल पड़े । मन तो नहीं था पर क्या करे मजबूरी थी क्योंकि आज हमकों डलहौजी  भी घूमना हैं और कल वापस जलंधर जाना है ।  


हमारी कार खजियार से निकल पड़ी अभी कुछ दूर ही गए थे की पानी आने लगा सारा मज़ा किरकिरा कर दिया ।पानी भी मूसलाधार ! एकदम कुछ दिखाई नहीं दे रहा था चारों और धुंध ही धुंध ....ऊपर से बड़े बड़े ओले भी गिर रहे थे जो कार की छत पर गिर कर एक संगीत- सा माहौल बना  रहे थे मुझे तो बड़ा ही ख़राब लग रहा 
था क्योकि प्रकृति से मिलने वाला सुकून मुझे पहाड़ों  को देखकर ही मिलता था अब ये  बारिश सारा मज़ा ख़राब कर रही थी ।   

कब सारा नजारा चला गया पता ही नहीं चला ।और इसी बारिश के कारण हम पूर्व निर्धारित कालाटोप देखने से वंचित रह गए ।फिर भी हम सरदार अजितसिंह की समाधि तो देखने गए ही और बारिश में भी उस महान क्रन्तिकारी नौजवान को नमन किया।जब हम पंचकुला गए तो बारिश पुरे शबाब पर थी और हमारे पास एक अदद छतरी भी नहीं थी ।मैंने पास की दुकान से 2 छतरी किराये पर लेने को बोला पर बन्दा टस से मस नहीं हुआ बोला --"खरीद लो किराये से नहीं दूँगा ।" अब एक छोटी सी छतरी 250 में खरीदना मुझे थोडा महंगा भी लग रहा था ऊपर से उसको संभालना और भी टेडी खीर था ।पर ,मरता क्या करता -हमको छतरी लेनी ही पड़ी । गालियां तो बहुत दी मैंने पर मन ही मन .... हमारा बॉम्बे होता तो वो छतरियां किराये पर दे देकर काफी कमा चूका होता।
खेर,हम छोटी सी छतरी में एक एक आदमी उतरकर समधि स्थल पर जाते और वापस गाड़ी में बैठ जाते।यहाँ हमने बारिश में भी यादगार के लिए फोटु खिंचे । 

अब हमको भूख भी लगने लगी थी तो हम सरदारजी से बोले की हमको होटल हॉलिडे प्लाज़ा छोड़ दे । हम पिछली बार भी यही रुके थे ।अब  बारिश भी बन्द हो गई थी ।

वो हमको होटल छोड़कर अपना हिसाब लेकर चले गए।
अब हम होटल की लॉबी में बैठे होटल से सम्बन्धित बाते कर रहे थे जो रूम हमने पिछली बार 900 में लिया था हम वही मांग रहे थे जबकि इस समय वो खाली नहीं था। फिर उसने 1200 रु में हमको नया 2 रूम वाला  सुइट दिया जिसमें 2 रूम थे । पर में सर्फ 1000 देने पर अड़ी थी आखिर बड़ी मुश्किलो के बाद उसने हमको 1 
दिन के लिए रूम दिया और हम सामान रखकर आराम करने लगे। 

कुछ देर आराम करने के बाद हम फ्रेश होकर मालरोड घूमने निकले । भूख खूब जमकर लग रही थी मालरोड पर कई रेस्त्रां घूमने के बाद एक में बैठकर पाँव भाजी खाई ।बेस्वाद पाव भाजी। फिर पास के तिब्बती मार्किट में थोडा घुमा और नजदीक के सेंट जोन्स चर्च में चले गए।चर्च में बड़ा ही शांत वातावरण था कुछ देर वहां की शांति में बिताया वहां से निकल कर बाहर खूब फोटु खिंचे । जब मन भर गया तो गांधी चौक पर आकर कुछ फोटु गांधी बाबा के साथ भी खींचे। यहाँ कुत्ते बहुत है सभी छबरिले पर सड़क छाप । 

 तब तक शाम हो गई थी हमने वही कुछ टूर शॉप पर पठानकोट जाने वाली कारों के बारे में इन्क्वारी की सभी हमको 2 हजार में पठानकोठ तक लेजा रहे थे हमने एक कार बुक की और माल रोड पर ही घूमते रहे।ठण्ड बढ़ने लगी तो मालरोड पर ही गरमा गरम जलेबिया और ममोज खाये । अब तक काफी ठंडी हो चली थी और सबका पेट भी भर गया था तो हम सब होटल की तरफ चल दिये।

थकान की वजय से सभी जल्दी सो गए।

सुबह  12 बजे हॉटेल छोडना था सभी तैयार होकर पेकिंग कर सामान होटल में रखकर हम खाना खाने मालरोड आ गए।पर यहाँ तो एक भी  ढंग का  होटल नहीं था  पिछली बार तो हमने होटल में ही खाना खाया था पर इस बार होटल का खाना बनाने वाला स्टॉप छुट्टी पर था उन्होंने हमको पास ही एक ढाबे का खाना खाने को कहा हम वहां गए तो वो बड़ा ही गंदा सा ढाबा दिखा पर क्या करते खाना तो खाना था ही लेकिन उसका खाना लाजबाब निकला बहुत ही स्वादिष्ट और सस्ता भी हमने पेट भरकर खाना खाया और होटल आकर अपना सामान कार  में रखवा कर डलहौजी से रुखसत हुये  ----
  


 उमड़ - घुमड़ कर आई रे घटा 


भीगा भीगा मौसम 


 सड़क पर गिरते बर्फ के बड़े बड़े टुकड़े  -- ओले ओले --ओले ओले ओले 




 क्रांतिकारी सरदार  भगतसिंह के चाचा  स. अजितसिंह की समाधी 





पिछले साल का चित्र 


 सुबह का नजारा 


सुबह आसमान एकदम खुला था । मदहोश कर देने वाला आलम 

 मेरा होटल 

 सुबह की सैर 

 छबरिले डॉग 

गर्म जायकेदार चिकन ममोज 

गरमा गरम जलेबी 


 गांधी बाबा और मैं 








सेंट जोन्स चर्च 

अलविदा डलहौजी 


और इस तरह हमारी डलहौजी यात्रा ख़त्म हुई 










मंगलवार, 28 जुलाई 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 3

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
 भाग 3 


28 ऑक्टोबर 2014  

हम सब आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी एक्सप्रेस से पठानकोठ जा रहे थे । 29  को हम सुबह पठानकोठ पहुंचे फिर कार से डलहौजी फिर वहां से रात को खजियार अब आगे :---

30 ऑक्टोबर 2014 

रात भर आराम से गुजरी सुबह देखा तो मंजर सुहाना था । सुबह रूम की बालकनी से पीछे का दृश्य देखा तो मुंह से 'वाह' निकल पड़ा । बहुत  खूबसूरत दृश्य था । पीछे सीढ़ी नुमा खेत थे जंहाँ आलू की खेती होती है दूर कई औरते और आदमी खेतों में काम करते हुए दिखाई दे रहे थे। इतना सुंदर लग रहा था की आँखें ठहर सी गई.…काफी देर तक हम सब ये नजारा देखते रहे जब ठण्डी लगने लगी तो अंदर आ गए वैसे हम सब ऊपर से नीचे  तक गरम कपड़ों से लेस थे रात को मोटे मोटे कम्बलों के कारण  ठंडी भी नहीं लगी थी ----

‌इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया खोलकर देखा तो मन्दिर का सेवक हाथ में गरमा गर्म चाय लेकर खड़ा था हम सबने अपने 4  मेंबर के हिसाब से 4 गिलास उठा लिए , गिलासों में भरी चाय पीकर शरीर में गर्मी का संचार हुआ और दिमाग ने कहा अब मैँ तैयार हूँ हा हा हा हा


‌हम सब फटाफट नहाकर तैयार हुए ।गरम पानी का गीजर लगा हुआ था आराम से नहाये सारी थकान दूर हो गई । अब तक सूरज देवता भी अपनी किरणों के साथ अठखेलियां खेलते हुए पधार चुके थे और सर्दी रानी  अपनी दुम दबाकर भाग खड़ी हुई थी । 

जब हम सबने कमरे से बाहर कदम निकाला तो बजरंगी सेना ने हमारा स्वागत किया।एकदम हट्टे- कट्टे लाल मुंह के बन्दर अचानक दरवाजा खोलते ही प्रकट हुए। हमने तुरन्त दरवाजा बन्द किया और सेना के कुच का इन्तजार करने लगे । इस बीच पीछे की बाल्कनी में भी इन लोगों की घुसपैठ हो गई ।अब हम कमरे में कैद हो चुके थे ।कुछ देर खिड़की से बजरंग सेना को बची हुई रोटी और साथ रखे बिस्कुट दे देकर बहलाते रहे आखिर पेट भरने के बाद बजरंगी सेना भाग खड़ी हुई और हम बाहर निकले..
सीधे मन्दिर की सीढियाँ चढ़ गए। आज माताजी को चुन्नी चढ़ानी थी।


हुआ यू की जब हम 2010 में इस मन्दिर में आये थे तो यहाँ के पुजारी ने कहा था की यहाँ की बड़ी मान्यता है जो मुराद माँगो वो पूरी होती है एक माँ का
कोमल दिल होने के कारण मैंने भी बेटे की शादी की मन्नत का  धागा बांधा जिसे शादी के बाद आज पूरा करने आई हूँ। बहु बेटे ने माँ को चुन्नी चढाई और पुजारीजी ने पूजा अर्चना की । 
‌ फिर हम चल दिए नाश्ता कक्ष में जहाँ गरम- गरम आलू के परांठे और दही हाजिर था भूख लग आई थी सो लपककर परांठों पर टूट पड़े, कालेज के बच्चे भी नाश्ता कर रहे थे आज वो पेंटिंग करने निकलने वाले थे  खेर, जब पेट भर गया तो हमने दोबारा चाय पी और बाहर निकल पड़े .....बाहर बहुत बड़ा खुला स्थान था जहाँ भगवान शिव की बड़ी ताँबे की मूर्ति लगी हुई थी 81 फ़ीट की  भगवान भोले की खूबसूरत मूर्ति । यहाँ काफ़ी   बजरंगदल मैदान की दीवारों पर चढ़ा था पर हमसे कोई बात नहीं हुई फिर हमने खूब धुआधार  फोटु खिंचवाये । तभी सरदारजी आ गए हमने मन्दिर का हिसाब किया 1100 रु की पर्ची फड़ाई और सेवादारो को 500 रु मेहतना दिया सब आपस में बाट लेना बोलकर अपना सामान् ले चल दिए खजियार के फेमस प्लेस पर जिसकी खूबसूरती को देखकर स्विजारलेण्ड की याद आती है। यह पहाड़ पर बना इतना बड़ा मैदान था  दूर दूर तक सिर्फ हरियली ही हरियाली दिखाई दे रही थी बीचों बीच बड़ा ही सुंदर रेस्त्रां बना था । पास ही मैदान के बीचो बीच एक झील थी जो प्रकृति थी पर कोई रख रखाव नहीं था बहुत गंदी लग रही थी --पर मौसम बड़ा ही  सुहाना था हम मैदान में उतर गए हमको देखकर एक बच्चा दौड़ा हुआ आया उसके पास एक डलिया में नक़ली  फ़ूल थे और एक असली खरगोश था जिसके बारे में पूछने पर उसने बताया की एक फोटू खरगोश के साथ खिंचवाने  का मैं 10 रु लूँगा ,खेर, हम सबने फोटू खिचवाये और झील की तरफ प्रस्थान किया ।     
झील का इतिहास :--

खजियार में एक फ़ेमस झील हैं इस झील का निर्माण उल्कापिंड के टकराने से हुआ हैं ,विश्व में ऐसी 3 झीलें हैं जिनका निर्माण उल्का पिंड के टकराने से हुआ है ---> 
1. अमेरिका के एरिजोना में स्थित है । 
2. महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित हैं --लुनार झील । 
3. चम्बा ज़िले के खजियार में --खजियार झील । 
यह झील करीब 50 हजार पुरानी हैं और 5 हज़ार वर्गफुट क्षेत्र में फ़ैली हुई हैं --झील के किनारे एक टापू बना हैं जहाँ सैलानियों के बैठने की जगह हैं -- टापू तक पहुँचने के लिए छोटा -सा लकड़ी का पुल बना हैं  जो यकीनन अंग्रेजों के टाईम का ही बना था । 
एक कहानी और प्रचलित है " कहते है की भगवान शिव और पार्वती जब धरती के भ्रमण पर निकले तो इस स्थान की खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए कुछ दिन ठहर कर आगे बढ़ने लगे तो खजी नाग का मन आगे जाने का नहीं हुआ तो शिव नाग को वही छोड़ने का विचार किया और उसको पीने के पानी के लिए ये नहर खोदकर  आगे बढ़ गए  " तब से इस जगह का नाम खजियार पडा ।  

हम झील के नजदीक गए और पूल से होते हुए टापू पर पहुँच गए वहां से चारों और का नजारा देखने काबिल था ,काफी लोग वहां बैठे थे मुझे तो थोड़ा डर भी लग रहा था क्योकि कहते है इस झील का कोई अंत नहीं है-- कभी ये लकड़ी का टापू गिर गया तो ???????

हम  काफी देर तक टापू पर मस्ती करते रहे और फोटू खींचते रहे फिर हम मैदान में गए और घूमते रहे धुप और ठंडी हवा का मिलाजुला माहौल मन को तरोताजा कर रहा था ।
यहाँ कई होटल वगैरा तो हैं पर बाजार नहीं हैं रेस्त्रां भी है और ठेले भी है जहाँ गरमा गर्म ममोज और उबले अंडे लोग खा रहे थे कई जगह पर भुट्टे सिक रहे थे और चाय भी मिल रही थी ।पर हमारे पेट में पराठें अब तक विराजमान थे इसलिए हमने सिर्फ कोल्ड ड्रिंक पी ----


काफी देर तक हम मैदान में घूमते रहे फिर अपनी गाडी में वापस आ गए और डलहौजी जाने को तैयार हो गए  
शेष अगले अंक  में ------


मंदिर में आने का रास्ता  
मंदिर के कमरे, इसके नीचे और कमरे बने है  
 पीछे का दृश्य 
पीछे का दृश्य  

मंदिर की दीवार  

बालकनी में वानर सेना  

माता की चुन्नी पुजारी को देते हुए  








गंदी झील जो फैलती जा रही है  

 @#$* हम चार *$#@



 खजीनाग का मंदिर जिसके नाम पर खजियार नाम पड़ा 
2010 का खजियार का मिस्टर के साथ लिया फोटू 



वापसी में  पहाड़ी के ऊपर से लिया चित्र