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रविवार, 28 मई 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 5 )



*यात्रा जगन्नाथपुरी*

भाग-- 5

कोणार्क मंदिर भाग --2   


ध्वज श्री जगन्नाथ मंदिर का .. फोटू गूगल बाबा  



31 मार्च 2017 

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28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 

आज मुझको पुरी आये दो दिन हो गए ,कल हमने जगन्नाथ मंदिर देखा और पुरी के अन्य धार्मिक स्थल देखे ,शाम को हमने पुरी का समुन्दर बीच भी देखा और रात को थके हारे सो गए। ... अब आगे ----

आज हमने कोणार्क मंदिर देखा  .. और चंद्रभागा समुन्द्र बिच पर  मटरगस्ती भी की। .. दिन के 3 बज रहे थे भूख जोरो से लग रही थी सुबह के खाये परांठे पता नहीं कहाँ गुम हो चुके थे ,पर यहाँ खाने को कुछ खास नहीं था इसलिए हमने बिस्कुट और नमकीन खाकर ही काम चलाया थोड़ा सहारा तो हुआ पर इतना भी नहीं की चल सके खेर, आगे जाकर नारियल पानी पिया और नारियल की मलाई खाई।  गर्मी और धुप अपनी  चरम सीमा पर थी।   

अब आगे ;---

कोणार्क का सूर्य मंदिर देखकर हम बाहर निकले तो सामने ही बड़ा बाजार लगा हुआ था यहाँ से सबने कुछ न कुछ हैंडमेड चीजे खरीदी बहुत ही प्यारे छोटे- छोटे हाथी,घोड़े,ऊंट और हिरण बिक रहे थे मैंने भी  दो हिरण खरीदे , आगे एक दुकान पर चिड़ियों का घोंसला बिक रहा था मुझे बहुत पसंद आया एक छोटा घोंसला मैंने भी खरीदा। ..समुन्द्र की सीपों से बने घर और आईने बिक रहे थे पर वो बॉम्बे भी मिलते है , फिर हम  आँटो में बैठ आगे चल पड़े। 

आगे हमको वो एक मंदिर में ले गया जो दुर्गा माता का मंदिर था पीछे नदी थी उसमे मोटर बोट चल रही थी , मंदिर सड़क से काफी दूर और नीचे था , मैं बहुत थक गई थी इसलिए अंदर नहीं गई वही बैठकर गन्ने का रस पिया ,हमारे टीम के लीडर लोग मोटर बोट का किराया वगैरा पूछने नदी के पास चले गए।  वापसी में वो लोग मुझे  मुंह लटकाकर आते हुए दिखे ,आकर उन लोगो ने बताया की बोटिंग बहुत महंगी है हम सबका वो लोग 1500 सो रुपये मांग रहे है।  एक घंटा नदी में घुमाएंगे। .. इतना महंगा ! हमको नहीं चलेगा, सबने वही बैठकर गन्ने का जूस पिया और एक गिलास ऑटो वाले को भी पिलाया फिर हम आगे चल पड़े ....  

4.30 तक हम जगन्नाथ मंदिर पहुँच गए ,फटाफट मोबाईल , पर्स,बेल्ट और जूते हमने काउंटर पर जमा किये और मंदिर के अंदर पहुँच गए हमको 5 बजे से शुरू होने वाला ध्वज प्रोग्राम मिस नहीं करना था क्योकि हमारे घुमक्क्ड़ी ग्रुप की प्रतिमा ने बोला था की कुछ भी हो ये मिस नहीं होना चाहिए। 
हमारा मोबाईल जमा हो गया इसलिए आगे के फोटू नहीं खींच सकी.... 
पता नहीं क्यों हमारे देश में मंदिरो और पौराणिक स्थलों पर फोटू नहीं खींचने देते  ?

  
हम जल्दी ही मंदिर के अंदर पहुँच गए, अंदर काफी भीड़ थी ऊपर से धूप भी बहुत तेज थी लेकिन हवा ठंडी चल रही थी ,काफी लोग अभी से मंदिर के प्रगांढ़ में अपनी अपनी जगह रोककर बैठे थे ,हमने भी एक बढ़िया जगह रोककर वही अपनी धूनी रमा ली हलाकि धुप सीधे मुंह पर आ रही थी पर इतना त्याग तो एक बढ़िया चीज देखने के लिए करना ही था ,मेरे सामने मंदिर दिख रहा था और ऊपर लहराता ध्वज। मैं यही सोच रही थी की कैसे कोई आदमी इतने बड़े मंदिर पर उल्टा होकर चढ़ सकता है यही आश्चर्य दिखने को मन बहुत बेताब था।सबकी निगाहें ऊपर मंदिर के उड़ते हुए झंडे पर लगी थी , मैंने देखा  सचमुच् पंछी मंदिर के ध्वज के पास नहीं उड़ रहे थे ,कहते है की कोई विमान भी ऊपर से नहीं उड़ता। 

कहावत है की यदि इस मंदिर में एक दिन भी झंडा नहीं बदला तो मंदिर 18  सालो के लिए बंद हो जायेगा। 

5 बज चुके थे अचानक एक बादल का टुकड़ा सूरज महाराज को ढ़कने पहुँच गया और मेरे चेहरे पर आ रही धूप से मुझे निजात मिली मेरे दिल से एक आवाज़ निकली -- जय जगन्नाथ। 

हम जब आकर वहां बैठे थे तो कुछ बंदरो के झुण्ड पास के मंदिर पर चढ़ कर घमाचौकड़ी मचा रहे थे हम भी उनकी मस्ती देख आनंदित हो रहे थे आखिर कुछ तो टाईम पास हो। 

ठीक 5 ;20 पर ध्वज का बड़ा सा गठ्ठरा लेकर एक युवा पुजारी हमारे सामने से निकला और मंदिर पर चढने लगा धीरे  धीरे वो कंधे पर गठ्ठर उठाये हमारी तरफ देखता हुआ ऊपर चढ़ने लगा ,पूरा मंदिर छोटी -छोटी सीढ़ियों जैसा बना था वो मंदिर की सीढ़ी पकड़ता और निचे से पैर अगली सीढ़ी पर रखता और ऊपर चढ़ जाता वो धीरे -धीरे ऊपर जा रहा था और बंदरो का झुण्ड अपने आप निचे आ रहा था मानो किसी ने उनको डांट दिया  हो और ऊपर से भगा दिया हो ,देखते -देखते सारे बंदर नीचे आ गए और  युवा पंडित 45 मंजिला ऊँचा मंदिर के बुर्ज पर चढता रहा , न किसी रस्सी के सहारे न किसी चीज को पकड़े हुए ऊपर से इतना बड़ा गठ्ठर लिए;
उफ़ ! मेरे तो पैरों में सिहरन होने लगी वो दृश्य ऐसा था की हर इंसान आँखे फाडे मुंह खोले सिर्फ देख रहा था। ये दृश्य ऐसा था जिसे शब्दों में पिरोना मूर्खता है बस देखकर ही अहसास होता है। काश, मेरे पास मोबाईल होता तो ये शमा कैद कर लेती अफ़सोस !!!!

खेर, वो युवा पुजारी बड़ी निपूर्णता से अपने कार्य को अंजाम दे रह था ,मंदिर के बुर्ज पर पहुंचकर वो और ऊपर जंजीर की मदद से चढ़ने लगा अब वो हमको बहुत छोटा खिलौने की तरह नजर आ रहा था उसने ऊपर जाकर अपना काम शुरू कर दिया था वो एक -एक कर पुराने झंडे खोलता जा रहा था और उनकी वैसी ही घड़ी करता जा रहा था और कंधे पर ही रखता जा रहा था , सम्मान इतना था की उसने एक भी झंडा नीचे नहीं रखा. अब वो और ऊपर चढ़ गया जहाँ सुदर्शन चक्र लगा  हुआ था उस चक्र के ऊपर लगा सबसे बड़ा ध्वज उसने बदला और खोल कर लहरा दिया (ऊपर का चित्र देखे )  निचे सभी ने तालियां बजाई और भगवान जगन्नाथ की जय -जयकार की ,ये सारा कार्यक्रम आधा घंटा चला। ये दृश्य इतना आनंदमयी और उत्सुकतापूर्ण था की मुझे अपनी सम्पूर्ण जगन्नाथ यात्रा का आनंद इस आधे धंटे में आ गया। मेरी यात्रा सफल हो गई।    
   
वो युवा पुजारी ऊपर से नीचे बड़े आराम से उतर गया मानो सीढ़िया लगी हो जबकि उसके कंधे पर अभी भी पुराने ध्वज का गठ्ठर लदा था ,चढ़ना जितना कठिन था उतरना भी उतना ही कठिन था। जब वो नीचे आया तो श्रद्धालु उसके पैर स्पर्श करने लगे।  और वो वही मंदिर के मेन गेट के पास बैठ गया सारी भीड़ उधर ही दौड़ पड़ी मैंने उत्सुकता से उधर देखा तो लोग हाथो में पैसे लिए ध्वज खरीद रहे थे शायद छोटे बड़े 40 -50  ध्वज तो होंगे ही उस युवा पुजारी की मदद दो अन्य पुजारी भी कर रहे थे ,जब भीड़ कुछ कम हुई तो हमारे भी दोनों जग्गा जासूस उधर चल पडे और सारी रिपोर्ट आकर बताई की सबसे बड़ा ध्वज  2100 सो रुपये में बिका जो सुदर्शन चक्र पर चढ़ता है और बाकि  के 100 रु में बिक रहे थे। मुझे इस तरह ध्वज बिकना पसंद तो नहीं आया पर ठीक है मंदिर के पण्डो की आमदनी और ऊपर चढ़ने वाले पंडे की जान की कीमत से बहुत सस्ता लगा।  मैंने भी एक झंडा 100 रु में मंगवा लिया। 
बाद में हम लोग मंदिर के प्रगांढ़ में बने अन्य मंदिरो के दर्शन करने गए वहां हमने एक ग्यारस का मंदिर भी देखा जिसे खुद भगवान ने उल्टा कर दिया था और वो उलटी ही लटकी हुई थी पुरोहित कहते है की हम लोग ग्यारस का व्रत नहीं करते और ग्यारस वाले दिन जो चावल खाना निरषेध्य है पर हम लोग चावल खाते है। 

फिर हम लोग लक्ष्मी मंदिर गए वहां 4 -5 पुरोहित खड़े थे उन्होंने हमको बड़े आदर से अंदर बुलाया ,मामला गड़बड़ लग रहा था मुझे ;और था भी !
हुआ यू की हम जैसे ही अंदर गए तो हमको 3 युवा पुरोहितों ने घेर लिया ,इतने पैसे दो तो माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलेगा ,घर धन्य धान्य से भर जायेगा वगैरा -वगैरा ! पर हमने कोई इन्ट्रेस नहीं दिखाया तो वो एक चाँदी जैसा लक्ष्मी का पैर ले आये जिसका वो 200रु मांग रहे थे  मारु जी ने 100 रु बोला तो वो तैयार हो गए और उनको दे भी दिया ,तब तक मेरी सहेली बाहर निकल चुकी थी और मैंने भी कदम बढ़ाये तो एक युवा पुरोहित बोला -- ''आप इधर आये।  मैं उसके पीछे चल दी, देखना चाह रही थी की ये क्या करता है उसने एक अलमारी के पास जाकर ताला खोला और बोलने लगा की ये लीजिये ,मैंने देखा तो वो एक बड़ी-सी चाबी थी उसपर सोने का पॉलिश चढ़ा हुआ था मैंने हाथ में ले ली सोचा आज तो लक्ष्मी जी मेहरबान है पर असलियत तो तब खुली जब व पुरोहित ने 500 रु मांगे;  मैं हैरान हो गई की सोने की चाबी सिर्फ 500 रु में ! फिर ध्यान से देखा तो पता चला की ये तो प्लास्टिक की 20 रु वाली चाबी है धत तेरी की ----
 बाद में जब मैंने नहीं खरीदी तो वो पुरोहित 300 रु मांगने लगा --- अब तक मैं उसके जादू  से दूर आ चुकी थी।          

 दिनभर के भूखे थे अब भूख से आंते भी कुलबुलाने लगी तो हम फटाफट मंदिर से बहार आये  पहले अपना सामान समेटा और मंदिर के सामने जाकर ठेले की चाय -बिस्किट खाई फिर पास ही मिल रही वहां की स्पेशल दही मिठाई खाई जो बहुत टेस्टी थी।रात हो आई थी और हम बहुत थक गए थे।  

हम लोगो ने मंदिर से  ऑटो लिया और सीधे सुबह वाले रेस्टोरेंट आ गए और जमकर खाना खाया फिर पैदल ही अपने गेस्टहाउस आ गए... आज बहुत थक गए थे पर आजका दिन पूरा सार्थक हुआ कल भुवनेश्वर के लिए निकलना है .. 
शेष अगले अंक में ....    

   



लाल निशान से युवा पुजारी मंदिर के ऊपर सीधा ही चढ़ने लगा ,मानो सीढ़ियां लगी हो 
चित्र -- गूगल दादा  






सुदर्शन चक्र 





पुराना जगन्नाथ टेम्पल 










चिड़ियों का घोंसला 


दो सुंदर हिरण 

रास्ते के टेस्टी नारियल पानी और मलाई 

शेष अगले अंक में 
भुवनेश्वर की यात्रा 



रविवार, 21 मई 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 4 )





*यात्रा जगन्नाथपुरी*

भाग--4  
कोणार्क मंदिर भाग 1  

मंदिर के ऊपर कभी चुंबक हुआ करता था  


31 मार्च 2017 
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28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 

आज मुझको पुरी आये दो दिन हो गए ,कल हमने जगन्नाथ मंदिर देखा और पुरी के अन्य धार्मिक स्थल देखे ,शाम को हमने पुरी का समुन्दर बीच भी देखा और रात को थके हारे सो गए। ... अब आगे ----

आज हमको कोणार्क मंदिर देखने जाना है। ..  

सुबह 4  बजे मेरी नींद खुल गई देखा तो ऐ. सी. बंद था गर्मी लगने लगी थी क्योकि पंखा भी बंद था और बाहर शोर सुनाई दे रहा था बाहर निकलकर देखा तो सब गेस्ट हॉउस के टेककेयर से झगड़ा कर रहे थे क्योकि लाईट नहीं थी कोई तार जल गया था चारो और अंधकार और गर्मी थी और मच्छर भी अपनी सेना   के साथ उपस्थित थे ,तो लाजमी था नींद तो आने से रही , कल के थके हुए थे और ८ बजे तक सोने का प्रोग्राम था लेकिन क्या करे मजबूरी थी यदि 7 बजे तक और  नींद आ जाती तो सब फ्रेश हो जाते खेर, सबने सोचा की बैठकर क्या करे तैयार हो कर निकल पड़ते है  आखिर 2 -3 घंटे बाद लाईट आई तब तक हम सब तैयार हो चुके थे , मन ही मन होटल वाले को गलियां देते हुए हम रूम से बाहर निकले। .. 

आज हमको कोणार्क का सूर्यमंदिर देखना था ,हमने पहले नाश्ता करने की सोची और बेड़ी हनुमान के पास के एक रेस्टोरेंट में गए ,ऑटो हमने कल ही नक्की कर लिया था 600  रु में उसको बुलाने की देर थी अब हमने ऑटो वाले को फोन किया और रेस्टोरेंट ही बुलवा लिया और सबने  टेस्टी आलू का पराठा दही नाल खाया तब तक ऑटो वाला भी आ गया था और हम सब अपनी अपनी सीट पर सुकड़कर बैठ गए। कल वाला ही रास्ता था लेकिन आज समुन्दर के किनारे- किनारे सड़क पर हमारा ऑटो चल रहा था जहाँ तेज हवा से हमारे बाल उड़ रहे थे। गर्मी का नामोनिशान नहीं था और हम भी कल की तरह मस्ती करते हुए नारियल पानी पीते हुए अपनी  मंजिल को बढ़ रहे थे  एक सुंदर सी जगह हम पहुंचे बहुत ही प्यारा बीच था हमने ऑटो रुकवाया लेकिन ऑटो वाला बोला की वापसी में आएंगे पर हम कहाँ मानने वाले थे  तुरंत कूद पड़े और बिच पर जाकर ही दम लिया। 

चंद्रभागा बीच  ;---
चंद्रभागा बीच कोणार्क से 3 किलोमीटर दूर और पुरी से 30 किलोमीटर दूर है ये गोल्डन बीच है और बंगाल की खाड़ी  पर स्थित है ऊँची-ऊँची भयंकर लहरे शोर मचा रही थी और सड़क के पास ही ये बीच था मुझे लगता है की जब समुन्द्र में ज्वार आता होगा तो शायद इसका पानी सड़क पर भी आ जाता होगा,क्योकि मैंने सड़क के पास काफी रेत देखि थी यहाँ की सफ़ेद रेत चांदी के सामान चमक रही थी। 

इतना ब्यूटीफुल बीच मैंने बॉम्बे में नहीं देखा यहाँ का सनसेट बहुत खूबसूरत होता है ऐसा मैंने सुना था पर हम तो यहाँ सुबह ही पहुंच गए थे खेर, हमने यहाँ खूब मस्ती की और फोटू खींचे। फिर हम आगे बढ़ गए।  

कोणार्क के सूर्यमंदिर का इतिहास 

कोणार्क मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइड पत्थरों से सन 1236 -1264 ईसा पूर्व में गंगवंश के राजा  नृसिंह देव द्वारा बनवाया गया था। यह भारत के सबसे प्रसिध्य स्थलों में से एक है इसे यूनेस्को द्वारा 1984 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था। कलिंग शैली में निर्मित सूर्य मंदिर रथ की शक्ल में बना है और सूर्य देव की भव्य यात्रा को दर्शाता है।  इसमें भगवान सूर्य के रथ की तरह ही सात घोड़े जुते हुए है पर अब एक ही घोडा नजर आता है। रथ के 12 पहिये है जो साल के 12 महीने दर्शाते है और  पहियों के अंदर 8 धारिया समय के आठ पहर को दर्शाती है । अब ये पहिये ही इस मंदिर की पहचान बन गए है। 

 इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है जहाँ कुचपुड़ी नृत्य शैली की कई कृतियाँ है जो उड़ीसा की फेमस नृत्यशैली को दर्शाती है, कहते है यहाँ नर्तकियां सूर्य को अर्पण करने के लिए नृत्य किया करती थी यहाँ कई मानव ,गंधर्व,देव, किन्नर आदि की आकृतियाँ उकेरी गई है। 

दूसरी तरफ मुख्य मंदिर के चारों तरफ कामसूत्र को दर्शाती अनेक शिल्प कृतियां है जो उस समय के पारिवारिक जीवन को दर्शाती है। कुछ मुर्तिया मुझे श्रृंगार करती हुई और हाई हिल पहनी हुई भी दिखी।
यह सूर्य मंदिर है तो यहाँ भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएँ भी है जो क्रमशः बाल्यावस्था , युवावस्था और प्रौढ़ावस्था दर्शाती है। सूर्य का ये रूप प्रतिमाओ के जरिये दिखाया गया है जैसे बाल्यावस्था की प्रतिमा 8 फीट है तो युवावस्था की 9.5 फीट और प्रौढ़ावस्था की 3.5 फीट। 
लेकिन अब ये मंदिर खंडहर बन चूका है। उड़ीसा सरकार इसके रखरखाव पर ध्यान दे रही है। 
   
12 बजे 
हम जब मंदिर पहुंचे तो सूर्य अपनी प्रचंड किरणे फैला रहा था काफी घूप और गर्मी थी पर मंदिर देखने की इतनी बेताबी थी की हम बगैर परवाह किये चल पड़े यहाँ भी टिकिट लेकर हम अंदर गए तो एक गाईड महोदय पीछे पड़ गए फिर ये सोचकर की इनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल है तो हमने पैसे पूछे वो बोला  100 रु पर हमने 50 रु नक्की किये और चल पड़े। 
वो  हमको इतिहास बताता रहा और बारीकी से हर चीज दिखता रहा तब हमको भी लगा की गाईड करना महंगा सौदा नहीं था फिर 50 रु में आजकल क्या मिलता है।  
मंदिर देखकर जब हम निकले तो मन प्रसन्न था  बाहर काफी बड़ा बाजार लगा था जहाँ हैंडमेड चीजे थी और काफी सस्ती भी थी हमने काफी खरीदारी की और चल पड़े अगली डेस्टिनेशन पर। ... 

शेष अगले भाग में। .... 







           


 हमारा हॉलिडे गेस्ट हॉउस 




 नाश्ता करने पहुंची हमारी टीम 



गर्मागर्म पराठा 

   

चंद्रभागा बीच


कोणार्क की नृत्य करती गणिकाएं


प्रवेश द्धार के सामने खड़े दो सिंह 



रथ में जूते घोड़ों में  बचा इकलौता घोड़ा  

हमारी टीम 





प्रवेश द्धार पर लगा पहला पहिया 




सूर्य मंदिर का आखरी पहिया 



अगले भाग में चलेगे जगन्नाथ मंदिर के  ध्वज बदलने का दृश्य। 






सोमवार, 8 मई 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI --3 )



* यात्रा जगन्नाथपुरी *

भाग --3 




साक्षी गोपाल  मंदिर 


30 मार्च 2017 

28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 
सुबह हमने मंदिर के दर्शन किये ,खाना खाया और 3 बजे बाहर निकल गए अब आगे ----

मंदिर के दर्शन कर के हम बाहर निकले 3 ही बजे थे अब दोपहर को कहा जाये यही सोचने  लगे क्योकि आसपास के मंदिर देखने का प्रोग्राम कल का था फिर दोपहर को सागर किनारे भी नहीं जा सकते थे और मंदिर पर ध्वज चढ़ाने का भी प्रोग्राम शाम 5 बजे का था तो क्या करे  ??? 

मैंने कहा वापस रूम पर चलते है थोड़ा आराम करेंगे फिर 5 बजे मंदिर पर ध्वज देखेंगे और रात को समुंदर पर घूमेंगे पर किसी ने नहीं सुना इतने में पास खड़े ऑटो वाले ने हमारी बातें सुनी और बोला  आपको आसपास के मंदिर घूमना है ? थोड़ा मोलभाव किया और 600 रु में वो हमको आसपास के मंदिर दिखाने लेकर चला दिया । ... 

रास्ता बहुत ही सुहाना था सड़क भी एकदम मस्त बनी थी साईड में लहराते खेत और नारियल के पेड़ बहुत ही सुंदर लग रहे थे हरियाली की तो पूछो मत इतना पानी और हरियाली थी की लग ही नहीं रहा था की हम अप्रैल महीने में यहाँ आये है सबको लग रहा था मानो अभी अभी बारिश ख़त्म हुई है और ठंडी हवा के झोके मानो हमको सलामी दे रहे थे  ऑटो में जरा भी परेशानी नहीं हो रही थी और रस्ते में नारियल वालो के ठेले हमको लुभा रहे थे बहुत ही सस्ते नारियल थे मेरे बॉम्बे से भी सस्ते हम कही भी ऑटो रुकाकर नारियल पानी का स्वाद लेते थे फिर उसकी मलाई खाते थे   | 

पर इंसान यहाँ के हमको पसंद नहीं आये सब लूटने के चक्कर में ही रहते थे अब इस ऑटो वाले को ही देखो इसने झूठ बोलै था की 25 km जाना है कुल 50 km हुआ जबकि 18 km ही मंदिर था बाकि तो सारे मंदिर पास ही थे खेर,धार्मिक स्थानों पर तो ये सब होता ही है |   


1 . नरेंदर सरोवर मंदिर ;--

सबसे पहले वो जिस मंदिर में ले गया उसका नाम था  नरेंद्र सरोवर मंदिर | 
यहाँ  पूरी शहर का सबसे बड़ा तालाब है यहाँ हर साल  भगवान की चंदन यात्रा मनाई जाती है गर्मियां  होने से इसका बहुत महत्व है यहाँ भगवान रथयात्रा निकासी के दौरान जब वापस पूरी आते है तब नाव से खेकर नौका -लीला करते है  | फूलों और फलों से बहुत सुंदर नौका का श्रृंगार होता है , दो नाव सजती है एक में भगवान जगन्नाथ और स दूसरे में भगवान राम होते है। .. यह भगवान राम का मंदिर है यहाँ भी मंदिर दर्शन के 5 रु प्रति व्यक्ति टिकिट था  | 

2 . साक्षी गोपाल मंदिर ;---

मंदिर की कथा ;-- ''कहते है जब तक आप साक्षी गोपाल मंदिर के दर्शन न कर लो आपकी जगन्नाथ पूरी यात्रा अधूरी मानी जाती है पूरी से इस मंदिर की दुरी  महज 18 किलो मीटर है यहाँ एक तालाब  भी है जिसमे स्नान किया जाता है कहते है की एक बार एक अमीर ब्राह्मण अकेला यात्रा को  निकला उसके साथ एक गरीब युवा ब्राह्मण भी था जिसने उस ब्राह्मण की तन मन से सेवा की बृंदावन पहुँचने पर वृद्ध ब्राह्मण ने उस निर्धन ब्राह्मण को बोला--''घर लौटकर मैं अपनी बेटी का विवाह तुमसे सम्पन्न करुँगा '' लेकिन बूढ़े ब्राह्मण के पुत्रो ने मना कर दिया और बोला-- 'आपने किस के सामने यह बात बोली थी'-- तब बूढ़े ने गोपाल का नाम लिया पुत्रो ने बोला की 'यदि वो साक्षी दे तो हम विवाह सम्पन्न कर सकते है '-- तब वो निर्धन ब्राह्मण वृंदावन गया और रो रोकर कृष्ण को सारी बाते बताई और साक्षी के लिए चलने को बोला भगवान के कहा --'ठीक है पर तुम आगे आगे चलो मैं पीछे पीछे चलता हूँ किन्तु तुम जहाँ भी रुक गए मैं वही रुक जाऊँगा ' | अब निर्धन आगे आगे चलता रहा और भगवान के घुंघरुओं की आवाज़ पीछे पीछे आती रही ,एक जगह जब  समुन्द्र की रेत के कारण घुंघरुओं की आवाज़ बंद हो गई तो निर्धन ब्राह्मण रुक गया और पीछे मुड़कर देखने लगा भगवान वही स्थापित हो गए ब्राह्मण का काम भी हो गया था | भगवान को साक्षी देने यहाँ तक आना पड़ा  इसलिए ये मंदिर साक्षी गोपाल कहलाया | 
बाद में कटक नरेश ने भगवान गोपाल की मूर्ति उठाकर मंदिर में स्थापित की यहाँ राधारानी का भी मंदिर है |     

3 . गुंदीचा मंदिर 
इस मंदिर तक भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आती है यह मंदिर जनकपुरी के नाम से भी जाना जाता है क्योकि पौराणिक कथाओ के अनुसार इंद्रधुमन राजा के कई बलिदानो के स्वरूप भगवान ने अपने भाई और बहन के साथ उनको दर्शन दिए थे इसलिए रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ यहाँ 9 दिन गुजारते  है और वापस अपने धाम जाते है इसको भगवान का ननिहाल भी कहा जाता है और मौसी का घर भी .....  
 यहाँ हमको एक नन्ही सी ठिगनी मौसी भी मिली | 

4 . बेड़ी हनुमान मंदिर 
यह मंदिर हनुमानजी का है इसको बेड़िया हनुमान जी इसलिए कहते है क्योकि इसकी भी एक रोचक कहानी है ;-- उड़ीसा का यह समुन्द्र तट बहुत ही प्रचंड माना जाता है और इसका पानी हमेशा मंदिर के किनारे बने जगन्नाथ मंदिर में घुस जाता था तो भगवान ने हनुमान जी को आदेश दिया की वो इन प्रचंड लहरों को रोक कर रखे और मंदिर की रक्षा करे ताकि मंदिर में इसका जल प्रवेश न कर सके ,परन्तु हनुमान जी हमेशा ये कार्य छोड़कर अयोध्या भाग जाते थे इसलिए भगवान ने उनको बेड़ियों में जकड़ दिया तभी से इस मंदिर को बेड़िया हनुमान मंदिर कहा जाता है | यह पूरी के मंदिर से पश्चिमी छोर पर बना है |  

हर मंदिर में 5 रु टिकिट थे हम बहुत परेशां हो गए फिर हर मंदिर में जुते  उतारकर जाना मेरे लिए बड़ा कष्टकारी था खेर, अब हम अपने रूम में आ गए और थोड़ा आराम कर शाम को समुन्द्र की और निकल पड़े  .... 

शाम का मौसम सुहाना था 70 रु देकर हम समुन्द्र किनारे चले गए ,काफी भीड़ थी लोग आपस में मस्ती कर रहे थे कुछ लोग पानी की लहरों से खेल रहे  थे ,ऐसा लग रहा था मानो जुहू बीच पर आ गई हूँ लेकिन यहाँ का समुन्द्र सड़क के बहुत पास था जबकि हमारे बॉम्बे में शाम को समुन्द्र काफी दूर  चला जाता है और दूर तक रेत का साम्राज्य रहता है और रेत भी इतनी नहीं होती ,यहाँ रेत में पैर गड़े जा रहे थे चलना भी मुश्किल हो रहा था। .. सब लोग समुन्द्र के पास कुर्सियों पर बैठे थे मैंने एक आदमी से पूछा की कितने की एक कुर्सी होगी तो वो बोला -- 20 रु में एक घंटा बैठने को मिलेगा ; मुझे समुन्द्र को देखने में कोई इंट्रेस नहीं था इसलिए मैं दुकानों की और मुड़ गई ,बहुत ही सुंदर मोतियों की मालाये मिल रही थी और बहुत ही सस्ते में ,मैंने कुछ गले की मोतियों की माला खरीदी | बाकि सीप की वस्तुएं तो बॉम्बे में भी मिलती है |  

आठ बजे तक हम समुन्द्र किनारे घूमते रहे वही छुटपुट खाते रहे बहुत थक गए थे इसलिए  दोबारा ऑटो किया और हमारे हॉलिडे गेस्टहाउस में लौट आये | 

कल कोणार्क टेम्पल जायेगे ---




  
ऑटो में हमारी सवारी 




रास्ते की हरियाली ---- ये हरियाली और ये रास्ता ...






नरेंदर सरोवर मंदिर 




चंदन यात्रा फोटू -- गूगल दादा से 



गुण्डिचा मंदिर और हमारी टीम मेम्बर 






गुण्डिचा मंदिर और धूप  की चांदनी 



छोटी नन्ही मौसी मेरी सखी के साथ गुंडिचा मंदिर 




चाय का भक्षण करते हुए साक्षी मंदिर के पास 



साक्षी मंदिर का सिंह 




बेड़ी हनुमान मंदिर का गेट 



 समुन्द्र भ्रमण === पुरी चौपाटी 




समुन्द्र की भयंकर लहरें 





मैं और पुरी  का समुन्द्र तट 



मारू साहब के साथ  चाय और पुरी  का समुन्द्र तट 



दो जासूस करे महसूस  ---हमारी टीम के दो जग्गा जासूस ! पुरी चौपाटी