मेरे अरमान.. मेरे सपने..


Click here for Myspace Layouts

रविवार, 30 अप्रैल 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI --2 )




*यात्रा जगन्नाथपुरी*

भाग--2 



मंदिर के पास जूते और मोबाईल रखने का स्थान 



30 मार्च 2017 

28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 
सुबह 4 बजे पहुंचने  वाली गाड़ी 7 बजे भुवनेश्वर पहुंची वहां से 8 बजे की दूसरी ट्रेन पकड़कर हम 10 बजे पूरी स्टेशन पहुंचे  हमने 100 रु में एक ऑटो किया और अपने बुकिंग गेस्ट हॉउस की और चल दिए यहाँ  दो बेडरूम और एक हॉल था जिसमे फ्रीज़ भी रखा था और किराया 1800 सो रुपये था हम सबने   A C चलाकर थोड़ा विश्राम किया और तैयार हो मस्त गुलफाम बने अपने गेस्टरूम से निकल पड़े। ...अब आगे -----

12 बजे का टाईम था गर्मी और धूप अपने पुरे शबाब पर थी पर हवा ठंडी चल रही थी बाहर आकर हमने एक ऑटो किया किराया 70 रू 
ऑटो वाला हमको मंदिर के पास छोड़कर चला गया मंदिर थोड़ी दूर था और हमको दूर से ही दिखाई दे रहा था ,कहते है इस मंदिर के ऊपर कोई पक्षी नहीं उड़ता और हवाई जहाज भी कभी ऊपर से उड़कर नहीं जाता | हम पैदल  ही मंदिर के पास चल पड़े , चारो और दूर दूर दुकाने बनी थी बीच का रोड काफी चौड़ा था शायद रथयात्रा  के कारण इतना खुला मैदान जैसा रास्ता था खेर, मंदिर के पास पूजा सामग्री की दुकाने थी नजदीक ही 4 -5  गेट बने हुए थे जहाँ पुलिस की भीड़ नजर आ रही थी जहाँ मुस्तैदी से चेकिंग हो रही थी हम भी भीड़ के साथ ही  गेट पर चले गए वहां एक लेडी इंस्पेक्टर ने हमको बताया की आप मोबाईल अंदर  नहीं ले जा सकते , मोबाईल को पास ही काउंटर पर जमा करवाना पड़ेगा हममें से एक आदमी बाहर निकला और सबके मोबाईल काउंटर पर जमा करवा आया 5 रु  एक मोबाईल का किराया लगा साथ ही बेल्ट भी जमा करवानी पड़ी सबकी रसीद लेकर वो दोबारा लाईन में लगा। ..  हमारे पर्स और पानी की बोतल लेकर हम जाँच  प्रक्रिया से गुजरकर मंदिर के अंदर बढ़ चले  | मंदिर के द्वार के सामने ही एक 16 कोणों का स्तम्भ है  जिसे अरुण स्तम्भ कहते है  यह पहले सूर्य मंदिर के सामने था बाद में  1 8 वी सदी में इसे पूरी लाया गया मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही हमको भगवान जगन्नाथ ,सुभद्रा और बलराम की बड़ी बड़ी मूर्तियां नजर आई ये डमी मूर्तियां थी जो विदेशी सैलानियों के लिए थी उनको इन्ही मूर्तियों के दर्शन करने होते है क्योंकि मंदिर में उनका प्रवेश निषेद है | 

हम अंदर आ गए यहाँ कई पुजारी घूम रहे  थे  हमको अंदर आता देख कई पंडित मच्छरों की तरह हमारे आगे पीछे मडराने लगे कोई पूजा अर्चना करवाने का बोल रहा था , कोई गाईड का बोल रहा था। .. मैंने पैसे पूछे तो बोला  कुछ भी दे देना पर मैंने कहा पहले पैसे बताओ तो उसने 100 रु बताये हमने आपस में सलाह की और 50 रु बोले ताकि वो सुनकर चला जाये लेकिन आश्चर्य हुआ जब उसने ओके बोला  और हमको लेकर अंदर की तरफ चल दिया |वैसे पुजारी या गाईड का कोई काम ही नहीं था  खेर,

सीढियाँ चढ़कर हम जिस भाग में आये वो था भोग - भवन यानि भगवान को चढाने वाला भोजन | यहाँ भगवान को 5 बार नाश्ता और 4 बार भोजन का भोग लगता है। .. रसोईघर से भोग भवन को एक अंदरुनी रास्ता  जाता है जहाँ आम पब्लिक का जाना मना है , रसोईघर से भोग भवन तक खाना कांवड में रखकर रसोइयों के सहयोगी लाते है  जिन्हे हम दूर से देखते है | 

भगवान के भोग में 56 पकवान होते है जिसमें दाल ,चावल,चटनी और सब्जीयां प्रमुख होती है खाना बिलकुल वैष्णव तरिके का बनता है जिसमें लहसुन और कांदे का प्रयोग नहीं होता  सिर्फ नारियल और सूखे मेवे ही डाले जाते है | सारा खाना मिटटी के बर्तनो में ही बनता है जिन्हे दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता | सारा खाना लकड़ी के चूल्हे पर बनता है  खाना 7 बर्तनो में पकता है जो एक दूसरे के ऊपर रखे होते है  सबसे ऊपर के बर्तन का का खाना सबसे पहले पकता है  फिर नीचे का और अंत में सबसे नीचे के बर्तन का खाना पकता है | 

यहाँ पानी दो कुंडो से आता है जिसे गंगा - जमुना कुंड कहते है ये प्राकृतिक कुंड है और इनमें पानी कभी ख़त्म नहीं होता | कहते है मंदिर का प्रसाद कभी ख़त्म नहीं होता चाहे कितने भी भक्त आ जाये लेकिन ,मंदिर का द्वार बंद होते ही प्रसाद भी ख़त्म हो जाता है 

अब हम भोग भवन से मेन मंदिर की तरफ मुड़ गए हमारे पुजारी गाईड ने हमको प्रसादी भवन के सामने रोक दिया यहाँ से हमको भगवान को चढ़ाने वाला प्रसाद  खरीदना था, प्रसाद का मेनू देखा तो  चक्कर  आ गए इतना महंगा प्रसाद ? खेर, हमने सबसे सस्ता प्रसाद खरीदा सिर्फ 221 रु वाला। .. प्रसाद की रसीद बनने के टाईम वहां बैठे एक मोटे  पेट वाले आदमी ने इतनी बातें पूछी की मैं हैरान हो गई मुझे लगा की कहीं मैं दूसरे देश की जासूस तो नहीं हूँ  यानी की मेरा नाम, पति का नाम , बच्चो के नाम,बहु का नाम, पोते का नाम, दामाद का नाम, गोत्र, जाति, धर्म , ससुर का नाम, पिता का नाम, ससुर का धर्म, पिता का धर्म इत्यादि ||| और ये सारी जानकारी उसने उस रसीद में लिखकर प्रसाद के साथ हमको सोप दी और बोला ये साथ ले जाना गुम हो जाने पर अंदर घुसने नहीं दिया जायेगा उफ्फ्फफ्फ्फ़ !!!!!

अब हम मेन मंदिर की क्यू में लग गए भीड़ ज्यादा नहीं थी हम आराम से मंदिर के अंदर प्रवेश कर गए लेकिन ये क्या भगवान की मूर्ति हमसे 50 फीट दूर थी दिखाई तो दे रही थी पर सुना था की आप अंदर जाकर मूर्ति को स्पर्श कर सकते हो लेकिन यहाँ मंदिर का काम चल रहा था इसलिए किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं थी हमने वही बाहर से प्रभु के दर्शन किये और प्रार्थना की  मन में बहुत मलाल था इतनी मुश्किलों से आना हुआ और भगवान के दर्शन नहीं के बराबर हुए खेर,  दूर से ही सही भगवान को देखने का मेरा सालो पुराना सपना पूरा हुआ |

भीड़ ने मुझे जबरजस्ती किनारे पटक दिया ,मैं दोबारा भगवान के दर्शन करने मूर्ति के आगे आ गई अब थोड़ी भीड़ हो गई थी और धक्कामुक्की चल रही थी मेरे हाथो में भाई के और बेटे के दिए पैसे थे जिनको चढ़ाने के लिए मैंने ताला लगा दानपात्र ढूंढा पर वहां कही दिखाई नहीं  दिया अब मेरा ध्यान मूर्ति से अलग होकर नीचे गया तो वहां तीन बड़े -बड़े थाल रखे थे जिनके  पीछे तीन मोटे-मोटे  पुजारी खड़े हुए थे जिनके शरीर पर काफी सोना था और हाथो में नोट पकड़े थे वो लोगो से पैसे छीन रहे थे और अपने सामने पड़े थालो में रख रहे थे मुझे ये देखकर हिंदी फिल्मो के वो  दृश्य याद आ गए जब विलेन के गुर्गे लोगो को मारकर पैसे इकठ्ठा करते है वही स्थिति यहाँ भी थी अंतर् सिर्फ यह था की यहाँ लोग हाथ जोड़कर पैसे दे रहे थे | खेर, मैंने भी अपने हाथ का पैसा जैसे ही एक थाल में डालना चाहा वहां खडे  पुजारी ने मेरा हाथ पकड़ लिया। .. मैं जोर से चिल्लाई--- ''हाथ नहीं पकड़ना ''  वो धबरा गया उसने मेरा हाथ छोड़ दिया हा हा हा हा मैंने एक विजय मुस्कान भगवान की मूर्ति पर डाली नमन किया  और पैसे अपने हाथ से थाल में सरका दिए। ..  

इस मंदिर में भी अन्य मंदिरो की तरह लूटपाट होती है मंदिर के पुजारी लोगो के हाथो से पैसे छीनते है ये देखकर मन बहुत खराब हुआ | भगवान इन लोगो को कोई सजा क्यों नहीं देते |

बाहर निकलकर हम थोड़ी देर सीढ़ियों पर बैठ गए पास ही मंदिर की विशाल बुर्ज दिख रही थी जिसपर झंडा फहरा रहा था कहते है मंदिर की छाया किसी भी टाईम नीचे नहीं दिखती। ..  कुछ देर आराम कर हम  मंदिर के अंदर के अन्य मंदिरो के दर्शन करने चल दिये सभी मंदिरो में लूटखसोट जारी थी पर हमने सभी मंदिरो में सिक्के या 10 रु चढा  कर इतिश्री की | 

इन सब कामो में हमको 2  बज गए अब पेट पूजा की जाय ,रुक्मा मेरी सहेली पहले भी एक बार आ चुकी है इसलिए वो हमको भगवान का भोग खिलाने आनंदबाजार ले गई......  आनंदबाजार में कई दुकाने सजी हुई थी सभी दुकानों पर दाल - भात -सब्जी- चटनी मिल रही थी हमने भी 150  रु में एक छोटा चावल का सकोरा जो पाव कीलो जितना था खरीदा दाल 100 रु की चटनी 50 रु की और दो सब्जियाँ क्रमशं 75 -75 की और स्ट्रा दाल 50 रु की और ली इस तरह कुल  खाना हमको 500 में मिला साथ में पत्तल भी मिली ,हम  आनंद बाजार में बैठने की जगह तलाश करने लगे काफी भीड़ थी और सब जगह दाल चावल बिखरे पड़े थे  मुझे नीचे बैठकर खाना कुछ अजीब लगा ,फिर एक जगह कुछ साफ़ जगह दिखी  वही बैठकर खाना खाया मुझे खाना काफी कम लग रहा था और भूख बहुत तेज लग रही थी लेकिन थोड़ा थोड़ा खाना ही काफी हुआ हमारा पेट इतना भर गया की कुछ पूछो मत ,खाना बचा भी नहीं और खाने में जो आनंद आया की सारा गुस्सा और मलाल बह गया जय जगन्नाथ !!!!

बाद में मैंने एक लड्डू  जो 5 रु का था खाया ,बाकी लोगो ने रबड़ी खाई , खाना खाकर हम मंदिर से बाहर आ गए 3 बज रहे थे अब क्या  किया जाए यही सब सोचने लगे इतने में नजदीक से एक आँटो वाले ने पूछा की कही बाहर घूमने जायेगे और हम मोबाईल वगैरा लेकर उसके ऑटो में बैठकर अन्य मंदिरो की सैर करने निकल पड़े ----

शेष अगले अंक में ----- 
सारे फोटू गूगल से  क्योकि कैमरा नहीं ले जाने दिया  





 गेस्ट हॉउस के बाहर की सजावट 






हमने कुछ इसी तरह का खाना खाया था 
चित्र -- गूगल से 





मंदिर का ध्वज फोटू गूगल से 




पांच रूपये का एक लड्डू और ५ रु का एक मालपुआ 
चित्र -- गूगलबाबा 




प्रशाद का डिब्बा 


मंदिर के पास की सड़क यहाँ से सुदर्शन चक्र सीधा दिख रहा है
 फोटू -- संजय कुमार सिंह 


मंदिर के सामने का दृश्य, यहाँ से भी सुदर्शन चक्र सीधा दिख रहा है 
फोटू -- संजय कुमार सिंह 




मेनगेट के सामने लगा अरुण स्तम्भ 



मंदिर के सामने का दृश्य यहाँ से भी सुदर्शन चक्र सीधा दिख रहा है 
फोटू -- संजय कुमार सिंह 




गेस्ट हॉउस 

































गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI --1 )




* यात्रा जगन्नाथपुरी *
भाग --1 


मंदिर का प्रवेश द्वार 

28 मार्च 2017  

28 मार्च को मेरा जन्मदिन भी था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 
मेरी काफी सालो से ये अभिलाषा थी की एक बार जगन्नाथ पूरी के दर्शन को जरूर जाउंगी , क्योकि मेरा   इतनी दूर जाना मुश्किल ही नहीं असम्भव ही था | और सरदार फैमिली की होने के कारण किसी का झुकाव भी इस मंदिर में  नहीं था ,कोई मुझे इतनी दूर लेकर नहीं जाना चाहेगा , इसलिए मेरा मन बहुत व्याकुल था |

आखिर काफी परिवार वालो की असहमति होने के बावजूद भी मैं निकलने में सफल हुई। ... जय घुमक्क्ड़ी !!!!

12 बजे अपने  निवास स्थल वसई से मैंने लोकल पकड़ी वी. टी. जाने के लिए , वी  टी  मेरे घर से काफी दूर था और मुझे 3 :15 की कोणार्क एक्सप्रेस  पकड़नी थी | पौने 2 बजे मेरी लोकल चर्चगेट स्टेशन पहुंची | वहां से टैक्सी लेकर मैं वी टी (पुराना नाम ) नया नाम छत्रपति शिवजी टर्मिनस C S T  के 14 नंबर प्लेटफॉर्म पर पहुंची  पर अभी तक न मेरी सहेली का पता था ना गाडी का खेर, अभी काफी टाईम था मैं वही एक बेंच पर बैठकर उन लोगो का इन्तजार करने लगी |

3 बजे से पहले ही सब आ गए और गाडी भी अपने राईट टाईम पर प्लेटफार्म पर लग गई और हम सब B 4  के अपने A C कम्पार्टमेंट में आ गए जहाँ आकर बम्बई की गर्मी से कुछ राहत मिली | गाड़ी 20 मिनिट लेट चली और हम सब गप्पे मारने  में मशगूल हो गए |

शाम को सबने ताश खेलने और गप्पे हाकने में निकाल दिया | ट्रेन सब छोटे बड़े स्टेशनों को सलाम करती हुई रेंगती रही ये हमको 36 घंटे में भुवनेश्वर उतार दे तो समझो पार हुए |सारे रास्ते जलेबी के समान शब्दमाला के पोस्टर दिखलाई देते रहे वो तो शुक्र करो की उनके निचे ही अंग्रेजी शब्दों में स्थानीय नाम लिखे थे वरना तो अपने राम जलेबी की गोलाइयों में खो जाते |.

सुबह 4 बजे पहुंचने  वाली गाड़ी 7 बजे भुवनेश्वर पहुंची वहां से 8 बजे की दूसरी ट्रेन पकड़कर हम 10 बजे पूरी स्टेशन पहुंचे उधर हमने 100 रु में एक ऑटो किया और अपने नियत बुकिंग रूम की और चल दिए यह रूम, रूम नहीं था बल्कि सियूट था दो बेडरूम और एक हॉल था जिसमे फ्रीज़ भी रखा था और किराया 1800 सो रुपये पर डे था हम सब  A C चलाकर थोड़ा विश्राम करने लगे फिर एक एक नहाकर तैयार होकर निकलने लगा ठीक 12 बजे सब तैयार होकर मंदिर दर्शन को निकल पड़े। ...

थोड़ी चर्चा जगन्नाथपुरी की :---

भगवान जगन्नाथ का मंदिर श्रीकृष्ण (विष्णु ) का मंदिर है और यह वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है यह मंदिर उड़ीसा राज्य के पूरी शहर में स्थित है | हिन्दू समाज के चारधाम  तीर्थो में एक धाम जगन्नाथ पूरी का भी आता है | गंगोत्री ,यमनोत्री , बद्रीनाथ  और केदारनाथ  के अलावा चार धाम द्वारकापूरी ,रामेश्वरम ,बद्रीधाम और जगन्नाथपुरी ये दोनों चार धाम यात्रा कहलाती है यहाँ से हर साल निकलने वाली रथयात्रा काफी मशहूर है देश विदेश से काफी लोग इसको देखने आते है  इस यात्रा में भगवान कृष्ण उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का ये मंदिर है |
कलिंग शैली में बना ये मंदिर 4 ,00 ,000 स्क्वायर फुट में फैला हुआ है | इस मंदिर के शिखर पर भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र मंडित है जो अष्टधातु से निर्मित है | मुख्य मंदिर 214 फुट लम्बा है | यहाँ का ध्वज बदलने का दृश्य देखने लायक और रोंगटे खड़े करने लायक है क्योकि मंदिर के पंडे  उल्टा मंदिर में चढ़ते  है और बिना किसी सहारे के....इतने बड़े मंदिर पर चढ़कर ध्वज बदलते है वो दृश्य कभी भूल नहीं सकती | यह क्रिया हर शाम को 5 बजे शुरू  होती है और एक घंटा चलती है फिर वो ध्वज नीचे आकर बिकते है , सारा दृश्य स्वप्न की भांति नजर आता है | कैमरा बाहर जमा करवा लेते है वरना वीडियो जरूर बनती |

मंदिर की कुछ अनोखी कहानियाँ :---

1.  इस मंदिर से जुडी अनेक कहानियां प्रचलित हैं कहते है ----'' मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न  को स्वप्न में एक मूर्ति दिखाई दी थी तब उसने कड़ी तपस्या की और भगवान विष्णु ने खुश होकर उसको आदेश दिया की वो पुरी के समुंद्र तट पर जाये जहाँ उसको एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा जिससे उसको बिलकुल वैसी ही मूर्ति बनवानी  है जो स्वप्न में दिखाई दी थी  | राजा ने ऐसा ही किया पूरी के समुन्द्र तट पर तैरता हुआ उसको एक लकड़ी का लट्ठा दिखाई दिया जिसे लेकर वो राजमहल में आ गया पर किसी भी कारीगर से वो लट्ठा हिला तक नहीं राजा आश्चर्य में आ गया किया जाय  तो क्या ?
आखिर भगवान विष्णु बूढ़े  कारीगर के वेश में राजा के सामने उपस्थित हुऐ और मूर्ति  बनाने की इच्छा  व्यक्त की राजा ने स्वीकृति दे दी लेकिन बूढ़े कारीगर की ये शर्त थी की मूर्ति  एक महीने में तैयार हो जाएगी लेकिन वो अकेला एकांत में वो मूर्ति बनाएगा जिसे कोई देख नहीं सकेगा | तब राजा ने उस बूढ़े को एक कमरे में मूर्ति तैयार करने को कहा ,कारीगर कमरे में बंद  हो गया रोज  कमरे से  खट -ख़ट की आवाजें आती रहती थी किसी को भी उधर झाकनें की मनाही थी  लेकिन आखरी दिनों में जब खट - खट की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो राजा ने सोचा की कही बूढ़ा कारीगर मर तो नहीं गया और उसने कमरे में झांक लिया , राजा के झांकते ही बूढ़ा कारीगर बाहर आ गया और बोला  अभी मूर्तियां अधूरी है हाथ नहीं बने है पर अब इन मूर्तियों को ऐसे ही स्थापित करना पड़ेगा जैसी प्रभु की इच्छा ''--- और वो कारीगर चला गया | बाद में राजा ने अंदर देखा तो तीन मूर्तियां बनी थी जिनके हाथ नहीं थे ,,,ये मूर्तियां भगवान जगन्नाथ , श्रीकृष्ण उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की थी  और राजा ने इन्ही मूर्तियों को स्थापित किया |

आज भी 12  वर्ष बाद जब दो अषाढ़ आते है तो मूर्ति बदली जाती है   इसी तरह राजा को स्वप्न आता है लकड़ी को ढूँढा जाता है इस लकड़ी  ढूंढ़न को दारू खोजन पर्व कहते है लकड़ी का टुकड़ा तैरकर मिलता है और एकांत में मूर्ति का निर्माण होता है फिर दौबारा मूर्तियों की स्थापना होती है |

2. एक और कहानी महाराजा रणजीत सिंह से संबंधित है जिन्होंने इस मंदिर को कई किलो सोना दान में  दिया था और मशहूर हिरा कोहनूर भी देना चाहते थे  परन्तु तब तक अंग्रेजो ने अपना कब्जा पंजाब पर जमा दिया था और वो  हिरा ब्रिटिश ले गए ,वरना आज कोहनूर हिरा जगन्नाथ भगवान के मुकुट की शोभा बनता |

3.  कहते है भगवान जगन्नाथ मंदिर का ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है |

4.  इस मंदिर में विशाल रसोईघर है जिसे 500 रसोइये अपने 300 सहयोगियों के साथ दिनभर में 9 बार बनाते है क्योकि भगवान को 5 बार नाश्ता और 4 बार खाने का भोग लगता है | सारा रसोई मानव निर्मित हाथों से ही बनता है | कहते है रसोई घर में खाना मिटटी के बर्तनो में बनता है , और सात बर्तनो में एक के ऊपर एक बर्तन रखे जाते है और खाना सबसे पहले ऊपर वाले बर्तन में पकता है और  सबसे नीचे वाले बर्तन में सबसे आखरी में पकता है जबकि चूल्हे की आंच सबसे पहले नीचे ही आती है |  रसोई घर साधारण जनता को देखने नहीं दिया जाता |

5. इस मंदिर में विदेशी पर्यटको का प्रवेश वर्जित है साथ ही मुस्लिम और ईसाई सम्प्रदाय के लोगो का भी प्रवेश वर्जित है | कहते है अपने समय में बनी प्रधानमंत्री इंदिरागांधी को इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया था |यहाँ अपना नाम और गोत्र बताने पर ही मंदिर में प्रवेश मिलता है |

6 . भोग लगने के बाद वो सारा  खाना बाहर आनंद बाजार में बिकने को आ जाता है | कहते है जितना भी खाना खरीदो वो कभी व्यर्थ नहीं जाता थोड़ा भी खाना लो तो सारे मेंबर  में खप जाता है | रोज 56 पकवानो से भगवान को भोग लगता है और वो सभी पकवान आनंद बाजार में बिकने को आते है कोई भी खाना कभी बर्बाद नहीं होता न फेंका जाता है  |

7 . कहते है मंदिर की चार  दीवारी के अंदर समुन्द्र की आवाज़ भी नहीं आती और बाहर निकलते ही समुन्दर का  शोर सुनाई देता है |




रास्ते की ग्रिनरी 


टाईम पास 


 भगवान के 56 भोग चित्र -- गूगल दादा से 


आनंद बाजार का दृश्य चित्र -- गूगल दादा से 

जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा मंदिर के सामने से चित्र -- गूगल दादा से 


भगवान जगन्नाथ सुभद्रा और बलराम चित्र --गूगल से 


आज की यात्रा इतनी ही शेष जल्दी ही  ...


______________________________________________-